सदस्य:AasthaAhuja27/ज़ुलु आदिवासी नृत्य

ज़ुलु आदिवासी नृत्य


ज़ुलु आदिवासी समूह

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ज़ुलु जनजाति दक्षिण अफ़्रीका के प्रमुख निवासी हैं। उनकी एक करोड की आबादी उन्हें दक्षिण अफ़्रीका का सबसे बडा जातीय समूह बनाती है। ज़ुलु जनजाती की अधिक्तर रस्में पीढी दर पीढी से चलती आ रही हैं। इन ही कई रस्मों ज़ुलु आदिवासी नृत्य में भी शामिल है। यह नृत्य हर खुशी के अवसर पर प्रदर्शित किया जाता है। समूह में बीतती हुई हर एक महत्वपूर्ण घटना में इसको शामिल करना अनिवार्य है। हर वर्ष कई महत्व्पूर्ण अवसरों पर यह नृत्य दर्शाया जाता है। इन अवसरों में कुछ का उधारण है शादी, बच्चे का जन्म, नए ज़ुलु राजा का स्वागत, आदि। समूह के सभी कुंवारे युवजन इन नृत्यों में भाग लेते हैं। दूसरी ओर, बहुत ही कम मौकों एवं त्यौहारों पर शादी शुदा औरतें नृत्य करती हैं।

ज़ुलु जनों की अहम परंपरा

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ज़ुलु जनों की सबसे अहम परंपरा सितम्बर में आयोजित रीड नृत्य समारोह है। इस समारोह में हज़ारों कुंवारी लड़कियाँ किल्ले में आकर नृत्य करती हैं। इस परंपरा के अनुसार कुंवारी लड़कियाँ नदि से नरकट एकत्र करती हैं। फिर वह महल में जा कर उन नरकटों के साथ नृत्य करती हैं। जिस भी लड़की का नृत्य राजा का मन मोह लेता है, वह उसे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लेता है। रीड नृत्य के अलावा ज़ुलु नृत्य के कई प्रकार हैं। इंगोमा नृत्य इस जनजाति का सबसे शुद्ध नृत्य माना जाता है। इसे ज़ुलु म्ंत्रों के शब्दों पर प्रदर्शित किया जाता है। किसी भी नए कार्य को आरंभ करने के लिए इस नृत्य का प्रयोग लिया जाता है। इंगोमा के लिए तेज़ गति मंत्र चुने जाते हैं जिन पर ज़ुलु जन अत्यंत पागलपन और जोश के साथ नाचते हैं।

जानवरों का प्रयोग

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ज़ुलु नृत्य में बैल नृत्य खूब मशहूर है। इस में सब ही नर्तकियाँ बैल की नकल उतारते हैं। वह अपने हाथों को ऊपर कर अपने पैर ज़ोर से ज़मीन पर पटकाते हैं। यह नृत्य ज़ुलु जनों का प्रकृति के प्रति प्यार दर्शाता है। ज़ुलु शिकारियों की महत्वता और बहादुरी को सम्मान देने के लिए सब ही जन एक शिकार नृत्य का आयोजन करते हैं। यह बहुत ही उग्र और गुस्से वाला नृत्य है जिस्में सारे नर्तकी डंडों का प्रयोग करते हैं।

ढोल का महत्व

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ज़ुलु नृत्य और उत्सवों का मज़ा ढोल के बिना अधूरा है। ज़ुलु नृत्य गानों पर कम और ढोल की ताल पर ज़्यादा निर्भर् रहता है। ज़ुलु जनों का बाहरी दुनिया से बहुत कम नाता है। इसिलिए वे अपने ढोल भी स्वंय ही बनाते हैं। वे मिट्टी के मटकों पर शिकार किए गए जानवरों की खाल लगा के नृत्य में इस्तेमाल किए जाने वाले ढोल को तैयार करते हैं। नृत्य के संगीत की ताल अधिक्तर तेज़ और फुर्तिली होती है। यह सभी नर्तकियओं में जोश और उमंग की किरण जगाती है। आदिवासी नृत्य के ज़्यादातर गानों में उनके पूर्वजों को बहुत सम्मान दिया जाता है। साथ ही साथ वे इन गानों के माध्यम से छोटे ब्च्चों को अपने रीती रिवाज़ सिखाते हैं। वे अपने गानों में धरती और प्रकृति का भी खूब वर्णन करते हैं।

 
ज़ुलु जनों का पहनावा

ज़ुलु पहनावा

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ज़ुलु जन नाचते समय हर रोज़ पहने जाने वाले ही कपदडे पहनते हैं। पुरुष बकरी या किसी अन्य पशु की खाल से अपनी पीठ ढकते हैं। साथ ही साथ वे अपने हाथों और पैरों पर जानवरों की खाल से बने हुए पट्टे बाँंधते हैं। पुरुष अपने सिर पर पंख भी सजाते हैं। कुंवारी औरतें बकरी की खाल से केवल अपना निचला हिस्सा ढकती हैं। वे गले में खूब सारी मालाएँ भी पहनती हैं।

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  1. https://prezi.com/wqslp2sub93r/zulu-dance/
  2. http://www.zulu-culture.co.za/zulu_dances.php
  3. http://www.southafrica.net/za/en/articles/entry/article-zulu-reed-dance
  4. http://www.entertainment-online.co.za/zuludancers.htm