सदस्य:Akshita Mukati/प्रयोगपृष्ठ
मध्य प्रदेश के लोक गायन
मालवा के लोक गायन
-भिरथरी :मालवा क्षेत्र में प्रातः काल नाथ सम्प्रदाय के लोग एकल या सामूहिक रूप में चिकारा , सितार , तबला आदि वाद्ययंत्रों के साथ भरथरी कथा का गायन करते हैं । चिकारा प्राचीनतम् और पारंपरिक वाद्य यंत्र है जो नारियल की नट्टी , बाँस और घोड़े के बालों से निर्मित होती है । छत्तीसगढ़ में भरथरी गायन की परम्परागत लोकशैली प्रचलित है । भरथरी लोकगायन के अन्तर्गत , मालवा के गाँवों में आज भी नाथपंथी लोग गोपीचंद कथा गोरखवाणी , कबीर , मीरा आदि के भजन गाते मिल जाते हैं
- संजा गीत:मालवा क्षेत्र में संजा गीत किशोरियों की पारम्परिक गायन पद्धति है । इसमें किसी प्रकार के वाद्ययंत्र का प्रयोग नहीं होता है । यह गीत पितृपक्ष में शाम के समय किशोरियों द्वारा गाया जाता है ।
- हीड़ गायन:मालवा क्षेत्र में श्रावण महीने में हीड़ गायन की प्रथा है , जो मुख्यत : अहीरों का अवदानपरक लोक आख्यान है । इसमें कृषि संस्कृति तथा ग्यारस माता की कथा का वर्णन किया जाता है । हीड़ गायन होली , दीवाली , जन्माष्टमी , नवरात्रि और गोवर्धन पूजा के समय किया जाता है । हीड़ गायन उच्च स्वर व शास्त्रीय शैली के अलाप में गाये जाते हैं ।
- बरसाती बारता :इसमें चम्प काव्य ( मालवी गद्य और पद्य ) का चरम उत्कर्ष देखा जा सकता है । बरसाती बरता ऋतु कथागात है , जो बरसात के समय गाया जाता है । इसीलिए इसे बरसाती बारता कहा जाता है
- निर्गुणी गायन :निर्गुणी लोकगायन मालवा की प्राचीन परम्परा है , जिसमें कबीर के अध्यात्म की छाप होती है तथा नश्वर शरीर , आत्मा की अमरता तथा परमात्मा सम्बंधी तत्वों की सरल ग्रामीण प्रतीकों के माध्यम से विवेचना होती है । निरगुणिया गायन के क्षेत्र श्री प्रहलाद सिंह पता टीपणया अत्यंत प्रसिद्ध हैं । जिन्होंने कबीर मीरा रैदास आदि के भक्ति पदों का गायन किया है । निर्गणी गायन को नारदीय भजन भी कहा जाता है ।
-रेलो गीत: यह भील व कोरकू जनजाति का गायन है । रेलो गीत प्रमुख रूप से नवयुवक एवं नवयुवतियों द्वारा गाया जाता है ।
निमाड़ी लोक गायन
कलगी - तुर्रा निमाड क्षेत्र में कलगी - तुर्रा प्रतिस्पर्धात्मक शैली है । यह एक प्राचीन लोकगायकी है , जो निमाड़ क्षेत्र से मालवा तक है । यह रात्रि को ( लकड़ी एवं तारों से निर्मित याच यंत्र ) की थाप की आराधना में गाया जाता है । कलगी - तर्रा के गायन में दो अखाड़े होते कलगी अखाड़ा , दूसरा तुर्रा अखाड़ा । अखाड़े के उस्ताव कहा जाता है ।
संत - सिंगाजी भजन 15वीं सदी में संत सिंगाजी जी एक प्रमुख निर्गुण संत - कवि थे । उनके द्वारा प्रचलित निर्गुण पदों को आज भी भजन के रूप में गाया जाता है । ये भजन आध्यात्मिक साधना युक्त है तथा निवाड़ एवं मालवा क्षेत्र में किसी भी अवसर पर गाये जाते हैं । इन भजनों को मृदंग और झांझ के साथ उच्च स्वर में गाया जाता है ।
मसाण्या निमाड़ मृत्यु गीतों को मसाण्या अथवा कायाखोज निमाड में मत्य गीतों को मसाण्या अथवा कायाखा गीत कहते हैं । ये गीत आत्मा की अमरता और शरीर की नश्वरता सम्बंधी पारम्परिक गीत हैं । ये गीत समूह में गाय जाते हैं
नाथपंथी गायन: निमाड में नाथ जोगियों सबसे भिन्न लोक , पद्धति है । ये प्राय : गोरख , कबीर अथवा भरथरी गाथा का गायन करते हैं
गरबा गरबी :निमाड़ क्षेत्र में गरबा स्त्री परक अनुष्ठानिक लोक है , जबकि गरबी प्रायः पुरुष प्रधान लोकगायन है