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तुलसी विवाह
कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहते हैं। यह एकादशी दीपावली के 11 दिन बाद आती है। देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का उत्सव भी मनाया जाता है। हिन्दू मान्यता के अनुसार इस तिथि पर भगवान विष्णु के साथ तुलसी का विवाह होता है, क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु चार महीने तक सोने के बाद जागते हैं। चार महीनों के अंतराल के बाद इसी तिथि से हिन्दूओं में शादियाँ आरंभ हो जाती हैं। तुलसी विवाह के दिन व्रत रखने का बड़ा महत्व होता है।
तुलसी विवाह की कथा
संपादित करेंप्राचीन काल में जलंधर नामक राक्षस ने चारों तरफ़ बड़ा उत्पात मचा रखा था। वह बड़ा वीर तथा पराक्रमी था। उसकी वीरता का रहस्य उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रता धर्म था। उसी के प्रभाव से वह विजयी बना हुआ था। जलंधर के उपद्रवों से परेशान देवगण भगवान विष्णु के पास गए तथा रक्षा की गुहार लगाई। उनकी प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग करने का निश्चय किया। उन्होंने जलंधर का रूप धर कर छल से वृंदा का स्पर्श किया। वृंदा का पति जलंधर, देवताओं से पराक्रम के साथ युद्ध कर रहा था लेकिन वृंदा का सतीत्व नष्ट होते ही मारा गया। जैसे ही वृंदा का सतीत्व भंग हुआ, जलंधर का सिर उसके आंगन में आ गिरा। जब वृंदा ने यह देखा तो क्रोधित होकर जानना चाहा कि वह कौन है जिसने उसे स्पर्श किया था। सामने साक्षात विष्णु जी खड़े थे। उसने भगवान विष्णु को शाप दे दिया, "जिस प्रकार तुमने छल से मुझे पति वियोग दिया है, उसी प्रकार तुम्हारी पत्नी का भी छलपूर्वक हरण होगा और स्त्री वियोग सहने के लिए तुम भी मृत्यु लोक में जन्म लोगे।" यह कहकर वृंदा अपने पति के साथ सती हो गई। वृंदा के श्राप से ही प्रभु श्रीराम ने अयोध्या में जन्म लिया और उन्हें सीता वियोग सहना पड़ा़। जिस जगह वृंदा सती हुई वहां तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ।
एक अन्य कथा में आरंभ इसी प्रकार है लेकिन इस कथा में वृंदा ने विष्णु जी को यह श्राप दिया था, "तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है। अत: तुम पत्थर के बनोगे।" यह पत्थर शालीग्राम कहलाया। विष्णु ने कहा, "हे वृंदा! मैं तुम्हारे सतीत्व का आदर करता हूं लेकिन तुम तुलसी बनकर सदा मेरे साथ रहोगी। जो मनुष्य कार्तिक एकादशी के दिन तुम्हारे साथ मेरा विवाह करेगा, उसकी हर मनोकामना पूरी होगी।" बिना तुलसी के शालिग्राम या विष्णु जी की पूजा अधूरी मानी जाती है। शालीग्राम और तुलसी का विवाह भगवान विष्णु और महालक्ष्मी का ही प्रतीकात्मक विवाह माना जाता है।[1]
पूजा की विधि
संपादित करेंतुलसी विवाह के दौरान तुलसी पौधे के साथ विष्णु जी की मूर्ति भी उनके साथ स्थापित की जाती है। तुलसी के पौधे और विष्णु जी की मूर्ति को पीले वस्त्रों से सजाया जाता है। इसके बाद तुलसी के गमले को गेरु से सजाया जाता है। गमले के आस-पास शादी का मंडप बनाया जाता है। इसके पश्चात गमले को वस्त्र से सजाया जाता है और लाल चूड़ी पहनाकर और बिंदी आदि लगाकर श्रृंगार किया जाता है। इसके साथ टीका करने के लिए नारियल को दक्षिणा के रुप में तुलसी के आगे रखा जाता है। भगवान शालीग्राम की मूर्ति का सिंहासन हाथ में लेकर तुलसी के चारों ओर सात बार परिक्रमा किया जाता है। इसके बाद आरती की जाती है। विवाह इसके साथ ही संपन्न हो जाता है। विवाह करवाते समय लोग ऊं तुलस्यै नमः का जाप करते रहते हैं। जो लोग इस दिन व्रत रखते हैं, वे इस दिन अन्न ग्रहण नहीं करते हैं।[2]
तुलसी का महत्व
संपादित करेंतुलसी पौधा धार्मिक, आध्यात्मिक और आयुर्वेदिक महत्व की दृष्टि से एक विलक्षण पौधा है। जिस घर में इसकी स्थापना होती है, वहां आध्यात्मिक उन्नति के साथ सुख, शांति और समृद्धि स्वयं ही आ जाती है। इससे अनेक लाभ प्राप्त होते हैं, जैसे वातावारण में स्वच्छता और शुद्धता बढ़ती है, प्रदूषण पर नियंत्रण होता है और आरोग्य में वृद्धि होती है। आयुर्वेद के अनुसार, तुलसी के नियमित सेवन से व्यक्ति के विचार में पवित्रता व मन में एकाग्रता आती है और क्रोध पर नियंत्रण होने लगता है। आलस्य दूर हो जाता है और शरीर में दिन भर स्फूर्ति बनी रहती है। ऐसा कहा जाता है कि औषधीय गुणों की दृष्टि से तुलसी संजीवनी बूटी के समान है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार देवों और दानवों द्वारा किए गए समुद्र-मंथन के समय जो अमृत धरती पर छलका था, उसी से तुलसी की उत्पत्ति हुई थी। इसलिए इस पौधे के हर हिस्से में अमृत समान गुण पाए जाते हैं। हिन्दू धर्म में मान्यता है कि तुलसी के पौधे की जड़ में सभी तीर्थ, मध्य भाग (तने) में सभी देवी-देवता और ऊपरी शाखाओं में चारों वेद स्थित हैं। इसलिए, तुलसी का प्रतिदिन दर्शन करना पापनाशक समझा जाता है और इसके पूजन को मोक्षदायक कहा गया है।[3] विष्णु भक्त वृंदा की अमर कहानी==सन्दर्भ==
- ↑ http://hindi.webdunia.com/other-festivals/tulsi-vivah-katha-in-hindi-116110700066_1.html
- ↑ https://www.jansatta.com/religion/muhurat-tulsi-vivah-devutthana-ekadashi-2017-puja-vidhi-shubh-muhurat-in-hindi-before-marriage-read-this-katha-is-good-and-know-tulsi-vivah-pooja-timings-here/470751/
- ↑ https://khabar.ndtv.com/news/faith/religious-and-ayurvedic-importance-of-tulsi-plant-and-tulsi-puja-1766302