सदस्य:Aneesha.k/प्रयोगपृष्ठ
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' आरुध्रा
जीवन चरित्र
संपादित करेंभगवतुला सदासिव शन्करा शस्त्रि | |
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राष्ट्रीयता | भारतिय |
शैली | रच्यिता,कवि,गितिकाव्य,गाना रच्यिता |
विषय | लेखक |
भागवतुला सदसिव शन्करा शस्त्रि का उपनाम अरुध्रा,उन्होने आदरणीय ग्न्थ्कार हिस् आधुनिक तेलुगु रच्ना मे है।अरुध्रा ने तेलुगु ब्रामिन परिवार मे ज्न्म् लिया,उनका जन्म ३१ अगुस्त १९२५ विसखपतन्म,अन्ध प्रदेश मे हुआ।१९४२ मे उन्का प्रथामिक् शिकशा के बाद वो विज़ियनगरम च्लेगये ।रोनन्कि अप्पलस्वमि आर छगन्टि सोमयजुलु से मिल्ने के बद उन्को साम्य्वाद् से आकर्शित हुआ है।१९४३ मे उन्होने वायु सेना मे बाघ् लिये ।वो मद्रस को छलेगये और उने सम्पाद्क मे काम किया ग्या है।फिल्म मे जाने के बाद उने गितिकव्य,बातचित बहुत सारे लिखे है।उन्को रामलक्ष्मि से शादि हुहि थि ।उन्का पत्नि स्मिक्शिक,आलोच्क् रच्यता हुहि है। ==' ' 'दुसरे सम्पर्क' ' '==
सहित्यिक कार्य
संपादित करेंआरुदरा ने बहुआयामि व्यक्ति है।उने रच्ना,निब्ध,ल्घुक्था,नाट्क,भाशात बहुत सारे काम किया है।त्वमेवहम ,समग्र अन्ध्र सहित्यम उन्का डाडा काम हुआ है।१९६४ मे उने कूनलम्म पदालु पध्य लिखे उस्मे वो विवरण देना चाह्ति है कि सम्कालिन व्यक्ति के समिति को व्यग्य्पुर्ण से लिखा है।उनहोने बहुत सारे रच्नेहोने संस्म्र्ण के बारे मे लिखा है।उने त्मिल् तिरुक्कुरल् को तेलुगु मे भसत्र किये है।वो स्म्पादित छेस्स किलाडि हुए है । उस केल के बारे मे रच्ना किया गया है।आक्स्मात श्रि रग्म् स्रिनिवास राव को बिता था
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समग्र अन्द्रा सहित्य
संपादित करेंउनहोने बहुत सारे तेलुगु रच्ना किये है
- पह्ले या चलुक्य काल
- काकतिया राज्य
- पदमानायका काल
- रेडी राजु काल
- पह्ले विजयनगरा
- बाद्मे विजयनगरा
- नवब्स
- नायका किग्स् आदि
{{Infobox Writer | name =आरुद्रा | image =Arudra felicitating Mr.Menon.jpg
कार्य
संपादित करें- रच्ना या कव्य:त्वमेवहम,सिनिवालि,कूनालम्म पदालु,इन्टीन्टी पजयालु।
- गितिकव्य:गायालु-गियालु,पैलापासिसु,येन्सिना पदयालु,येटीकेड्डी।
- भाशात्र्:वीर तेलघाना, विप्रव गीतलु,वेन्नेल वेसवि,कबहिर ब्वालु।
- नाट्क:उद्गीदा,गेयानटीका,रादारि बन्गला।
- रच्ना:रुक्कुतेस्वर सताकम,मीमी।
- स्न्शोद्क:समग्रान्ध्रा साहित्यम।
- दुस्ररा काम:अरुद्र कथालु
फिल्म भविशय
संपादित करें- बीडाला पट्लु(१९५०)गितिकव्य
- कन्ना त्ल्लि(१९५३)रच्यिता
- पक्क इन्टि अम्मयि(१९५३)
- वीरा कन्कनम(१९५७)
- छेन्छु लक्ष्मी (१९५७)गिथिकव्य
- इल्लरिकम(१९५९)
- जयाभेरि(१९५९)
- अराधना(१९६२)
- मोसगालकु मोस्गालु(१९७९)
- अनुग्रहम(१९७८)
- कोन्दुरु(१९७८)
- पेलमन्छि कुटुम्बम -मनसे अन्दाला ब्रुन्दावनम प्रेमिन्छुट् पिल्लल वन्तु,दीविन्छुट् पेद्दल वन्तु
- १९६५ -प्रेमिन्चि चुडू -मी अन्दाल छेतुलु कन्द -अदिगो नवलोकम वेलसे मनकोसम रम्भ उर्वशि तलदन्ने रामनीललम एवरीमे
- १९६५ -ज़मिन्दार -छुक्कलु पोदिछे वेला मक्कुवु तीरे वेल
- १९६६ -अन्तस्तुलु -विनरा विस्सन्न ने वेदम छेपुत विनरन्न
- १९६७ -भक्त प्रह्लाद -सिरि सिरि लालि छिन्नरि लालि
- १९६७ गुड्छरि ११६ -मनसुतीर नव्वुले नव्वुले नव्वलि
- १९६७ -साक्शि -अम्मा कडूपु छल्लग अत्त कडुपु छल्लग बतकरा बतकरा पच्छग
- १९६८ -बन्दिपोटू दोग्लु -गन्दर गन्द शोग्गदिवन्ट
- १९६८ -रामु -पच्छनि छेटू ओकटि वेच्छनि छिलकलु रेन्डू
- १९७० -अक्क छेल्लेलु -छकछकलाडे पदुछुन्दि
==' ' 'दुसरे सम्पर्क' ' '==thulika.net/wp-content/uploads/Essays/Arudra(2)/ARUDRA.doc www.avkf.org/BookLink/display_author_books.php?author_id=53
क्रुत्रिम् रेशे : प्रयोग्शाला मे विकसित फैशन
प्रक्रुति ने हमे क्पास,सन,ऊन त्था रेशम् इत्यादि पदार्थ दिये है | जो कि दैत्याकार अणुओ से निर्मित हुए है| इन पदर्थो का उपयोग हम अपने शरिर को डकने ओर कहि आवश्यक पदार्थो को बरबादि से बचाने के लिए थैले आदि बनाने मे करते है |लेकिन ये प्राक्रुतिक पदार्थ् हमारि आवश्यकताअओ को धयान मे रखते हुए पर्याप्त् मात्रा मे नहि प्राप्त् होते है |इस्के अतिरित् इन्मे एक अवगुण यह है कि ये पानी त्था सामान्य कार्ब्निक् घोल्को मे नही घुल्ते |
रसायन के ग्यन मे जैसे जैसे व्रुधि होति गयी ,वैसे वैसे उनका ध्यान् प्राक्रुतिक त्न्तुओ कि तुल्ना मे सर्वथा आदर्श् त्न्तु क्रुत्रिम रूप से बनाने के कार्य मे अधिकाधिक ल्गता गया|
इन्हि के प्रयत्नो के फल्स्वरूप आजक्ल दो तरह के मानव निर्मित् रेशे उपलब्ध है| ये है _ (१)प्रक्रुतिक तन्तुओ से प्राप्त किये हुए रेशे :जैसे सेल्युलोज एव्म प्रोटीन आदि से| (२)सरलतर अणुओ सम्श्लेशीत् प्राक्रुतिक त्न्तुओ के समान रेशे :जैसे पालीएमाईड पलिएस्टर ,पालीएक्रिलो नाइट्राइल आदि|
* मनव निर्मित् रेशे
संपादित करें*सेल्युलोज से प्राप्त रेशे: इस समुह् मे दो प्रकार के रेशे आते है| (१) सेल्युलोज के नाइट्ऱॆट तथा एसीटेट, (२) रेयन या पुनरुत्पन्न सेल्युलोज| नीचे इन मह्त्वपूरण् रेशो के विशय मे लिखा जा रहा है|
==* सेल्युलोज नाइट्रेट== इसे सेल्युलोज का नाइट्ऱीकरण करके प्राप्त किया जाता है| इस काम के लिए अधिक मात्रा मे सान्द्र सल्फयुरिक् अम्ल का उपयोग आवश्यक होता है|नाइट्ऱीकरण की विधि को सावधानीपूर्वक नियत्रित किया जाता है जिस्से दिनाइट्रो पदार्थ प्राप्त होता है ,जिसमे नाइट्रोजन का प्रतिशत १०।५ से १२ तक रहता है |
इस प्रकार प्राप्त पदार्थो को पाइराक्सिलिन कहते है |महीन आकार के छिद्रोवाली पिचकारी मे से घोल को बाहर फेक्कर गर्म ह्वा मे घोल्को को उडा दिया जाता है, जिस्से बारिक रेशे प्राप्त हो जाते है| नाइट्रिक्रुत सेल्युलोज बडा ही ज्वल्नशील होता है अतएव इस्का उपयोग नही के बराबर होता है |
==*सेल्युलोज एसोटेट== इसे एसीटिक अम्ल मे बने सेल्युलोज के विलयन को एसीटिक एनहाइड्राइड के द्वारा एसीटिलेट करके ब्नाया जाता है | इस प्रकार बने हुए सेल्युलोज एसीटिलेट को पानी मे डालकर अवक्शेपित कर लिया जाता है | फिर एसीटोन मे इसको घोल बनाकर उससे इसके महीन धोगे प्राप्त कर लिये जाते है |
यह विधि काफी मह्गी पडती है | फिर भि कफि अधिक मात्रा मे सेल्युलोज एसीटेट का उत्पादन किया जाता है | इसका कारण सेल्युलोज एसीटेट की उपयोगिता है|
==उपयोगिता
(१) यह ज्वलन्शील नही होता,
(२) पानी मे भीगने पर अधिक पानी नही सोखता तथा, (३) यह अधिक प्रसरणशील होता है , अतएव इसमे सिकुडन कम पडती है |
उपरोत्त् विधि मे प्राप्त सेल्युलोज एसीटेट का व्यापारिक नाम सेलानीज है | इसका सब्से अधिक उपयोग ओरतो के कपडे बनाने मे होता है |
सेल्युलोज एसीटेट के अतिरित्त् सेल्युलोज के कइ अन्य ईस्टर भी बनाये गये है | ये सेल्युलोज एसीटेट की तुलना मे अधिक मुलायम ओर लचीले होते है | इसके अतिरित्त् सेल्युलोज के कई ईथर ,जैसे एथिल सेल्युलोज ,एलिल सेल्युलोज तथा कारबाक्सीमेथिल सेल्युलोज आदि को भी समभावित रेशो के रूप मे प्रयोग करने की कोशिश कि जा रही है |
==*पुनरुत्प्न्न सेल्युलोज== *इन्हे साधारण्त :रेयन भी कहा जता है | वस्त्र निर्माण मे अधिकता से इनका प्रयोग किया जाता है | इनके बनाने की दो प्रमुख विधिया है : (१) क्युप्रामोनियम विधि, (२) विस्कोज विधि | इन विधियो के द्वारा सेल्युलोज के सर्वथा अनुपयोगी रूप भी बहुमुल्य पदार्थो मे परिवरतित कर दिये जाते है | नीचे इन विधियो का वर्णन किया जा रहा है | ==(१) कयुप्रमोनियम विधि== इस विधि मे सेल्युलोज को पह्ले क्युप्रिक हाइड्राक्साइड के अमोनियाक्रुत विलयन मे घोल लिया जाता है | छनित घोल को पानी मे दबाव के सथ फेका जाता है | इस प्रकार प्राप्त तन्तुओ को म्न्द सल्फयूरिक अम्ल से प्रतिक्रुत किया जाता है जिस्से क्युप्रमोनियम कम्प्लेकस विनश्ट् हो जाता है| ==(२) विस्कोज विधि== सेल्युलोज को १५% से २०% सोडियम हाइड्राक्साइड विलयन को उपसिथति मे कार्बन डाइ सलफ़ाइड मे घोल लिया जाता है , जिस्से सोडियम सेल्युलोज जैन्थेट प्राप्त होता है | इस घोल को कुछ समय तक एसे ही छोड दिया जाता है | तत्पश्चात्त् इस्को मन्द सलफ़्यूरिक अम्ल के बर्तन मे द्बाव के भोतर दिया जाता है , ईस्से पुनरुत्पन सेल्युलोज के रेशे प्राप्त हो जाते है | इसि प्रकार जैन्थेट के घोल से विभिन्न माटाई का चध्दरे आदि भी बनायी जा सकती है | ईन चध्दो को सेलोफेन कह्ते हि ओर इनका उपयोग वस्तुओ के लपेटने ,डकने या आच्छादित करने के लिए किया जाता है | रेशो का उपयोग वस्त्र निर्माण मे किया जाता है |आज्क्ल उपल्ब्द रेयन का अधिक भाग विस्कोज विधि से ही बनाया जाता है | रेयन के उपयोग विभिन्न् प्रकार के त्था अनगिनत है | तरह तरह् के अग वस्त्र ,अधोवस्त्र तथा अन्य प्रकार के सामान हिस्से बनाये जाते है | यही नही ,इसका उपयोग चादर ,मेजपोश,पर्दा ,क्म्बल,दरी,कार्पेट ,रजाई तथा अन्य एसी ही उपयोगी वस्तुओ के निर्माण मे किया जाता है | द्वितीय महायुध्द् के समय मे तरह तरह के सामानो के बनाने मे करोडो पोण्ड् विस्कोज रेयन का उपयोग किया गया|रेयन अत्यन्त चितकर्शक तथा बहुत दिनो तक चलनेवाल होने पर भी अधिक सर्वसुल्भ मूल्य क होता है | यही कारण है कि नागरिक प्रयोगो मे इसका उपयोग दिन प्रतिदिन बडता हो जा रहा है |
antoine.frostburg.edu/chem/senese/101/.../faq/what-is-cellulose.shtml