सदस्य:Ankita baruah/प्रयोगपृष्ठ
"बोड़ो जनजाति"
बोड़ो, भारत के पूर्वोत्तर भाग के ब्रह्मपुत्र घाटी के एक जातीय और भाषाई आदिवासी समूह हैं। बोड़ो भारतीय संविधान की छठी अनुसूची में एक मैदानी जनजाति के रूप में पहचाने जाते हैं। असम के कोकराझार और उदालगुरि बोड़ो क्षेत्र का केंद्र माना जाता है। ऐतिहासिक दृष्टि से महान बोड़ो जनजाति मैक् के रूप में जाने जाते थे। आज भी पश्चिम बंगाल, नागालैंड और नेपाल में रहने वाले बोड़ो को मैक् कहा जाता है। बोड़ो लोग खुद का वर्णन करने के लिए बोड़ोसा (अर्थात बोड़ो का बेटा) अवधि का उपयोग करते है। जन्संख्या की दृष्टि से भले ही बोड़ो जनजाति अलग हो गये हैं, लेकिन वे लोग एक ही संस्कृति, परंपरा, भाषा और धर्म का पालन करते है।
बोड़ो लोग
बोड़ो, पहले १९ वीं सदी में वर्गीकृत, कछारी समूह (या बोड़ो-कछारी) के भीतर १८ सबसे बड़ी जातीय उप समूहों में से एक का प्रतिनिधित्व करते है। बोड़ो-कछारी लोग उत्तर-पूर्व भारत के अधिकांश क्षेत्रों में और नेपाल के कुछ हिस्सों में बसे है। बोड़ो-कछारीयो में से बोड़ो पूर्वोत्तर भारत के सबसे बड़े जातीय और भाषाई समूहों में से एक का प्रतिनिधित्व करते है। कुछ विशिष्ट बोरो उपनाम है: ब्रह्मा, बोड़ो, बसुमतारी, बसुमता, दैमारी, स्वरगिअरी, गोयारी, खाखलारी, मुशाहारी, मोछाहारी, मोछारी, मोहिलारी, नरज़ारी, हज़ोवारी, हखोरारी, रामछिअरी, बागलारी, इशलारी, बोडो, बोडोसा, बारो, बरगोयारी, बनुअरी, कछारी, सैनारी, ओवारी, लहरी, साइबा, करजी। १९७१ की जनगणना रिपोर्ट ने ये संकेत दिया की बोड़ो भारत के आथवी सबसे बड़ी अनुसूचित-जनजाति (एसटी) समूह है। बोड़ो भाषा तिब्बती-बर्मी परिवार का एक सदस्य है। अतीत में बोड़ो जनजाति लैटिन और असमिया लिपियों का इस्तेमाल करते थे। हाल ही में, उनलोगो देवनागरी लिपि को अपनाया है।
बहुत पह्ले ही, बोड़ो लोगो ने पूर्वोत्तर भारत में चावल की खेती, चाय बागान, सुअर और मुर्गीपालन, और रेशमकीट पालन शुरू किया था। बोड़ो के परंपरागत पसंदीदा पेय ज़ु माई है। (ज़ु: शराब, माई: चावल)। चावल बोड़ो का एक मुख्य भोजन है और अक्सर ही उसके साथ एक मांसाहारी पकवान जैसे कि मछली या सुअर के मांस होता है। परंपरागत रूप से बोड़ो लोग मांसाहारी है।
बुनना बोड़ो संस्कृति का एक और अभिन्न हिस्सा है।