हवलदार कौर सिंह

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हवलदार कौर सिंह भारत के कम जाने माने मुक्केबाज़ हैं। कौर सिंह पंजाब के मलावा क्षेत्र के किसान थे जोकी कुछ समय बाद भारतीय सेना का हिस्सा बन गए थे। उन्होंने १९७७ में भाग लिया था और १९७९ में वरिष्ठ मुक्केबाज़ी चैंपियनशिप में भाग लिया जहां उन्होनें हेवीवेट श्रेणी में स्वर्ण पदक जीता। उनको १९८२ में अर्जुन पुरस्कार और १९८३ पदमश्री से सम्मानित किया गया था। १९७१ में, २३ की आयु में उन्होनें सेवा में हवलदार के रूप में सेना का हिस्सा का बने। कुछ महीने बाद, उन्होनें राजसथान के बाडमेर सेक्टर में भारत- पाकिस्तान युद्ध में भी हिस्सा लिया था। १९८० में, कौर सिंह ने मुक्केबाज़ मुहम्मद अली को पराजित किया था। सन १९८४ में, लौस ऐंजलीस ओलंपिक में कौर सिंह ने आखरी बार मुक्केबाज़ी दस्ताने पेहने थे,जिसके बाद उन्होनें स्ंगरूर में अपने मूल गाँव खानल खुर्द में खेती- बाड़ी के काम में लग गए थे। अब तक ३४ वर्ष हो गए हैं कि उन्होनें नई दिल्ली एशियाई में स्वर्ण पदक जीता था और उन्हे एक लाख रूपये का नकद इनाम देने का वादा किया गया था लेकिन सिंह को अभी तक प्ंजाब सरकार से पैसे नहीं मिले हैं। यहां तक की जब उन्हे दिल की तकलीफ थी और उन्होने सरकार से पैसे नहीं मिले हैं। परंतु भारतीय सेना ने उनको पैसे दिए ताकी वह अपना इलाज करा सकें। इतने छोटे से करियर के बावजूद, उन्होनें अंतराष्ट्रिया प्र्तियोगिताओं में ६ साल स्वर्ण पदक जीता और मुक्केबाज़ी जैसे खेल में भारत का नाम रोशन किया है।तीसरे मैच को हारने से पहले कौर सिंह लॉस एंजिल्स ओलंपिक में दो मुकाबले जीतने में कामयाब रहे - इस तथ्य पर विचार करते हुए कि मुक्केबाजी को क्यूबा, ​​सोवियत, अमेरिकियों और पूर्वी यूरोपियों का प्रभुत्व था।