शाम ढलने को आई, कोई उमीद नही है- काली-अन्धेरी रात से.. वक्त कट रहा है- तो अच्चा नही लग रहा. नही कटता तो भी- अच्चा नही लगता.. बस जिंदगी कट रही है, मानो निराश लुढक रही.. कोमल चेहरे कि मुस्कन चुप-चाप रूठी- बैठी है कही..

उनकी सासो मे अपनी सासो का- सुकुन ढूढता रहता हूं.. जीने कि ख्वहिश तब तक कि है- जब तक उनकी सासो मे सास रहे,, चेहरे मे मुस्कान रहे.. मै महसूस कर उसे जी लूं अपना जीवन.. सपनो की जरुरत न हो जो चाहू वो हकीकत मे हो.. जब वो पास मेरे हों, फिर न कोइ कमी हो.

मै वो और हमारी खुशियां,, घुल-मिल के इक-दूजे को समझ के. खो जाये इस जहां से, जंहा सिर्फ हम हि हम हो उनकी आखें उनके बाल उनकी पायल उनका काजल उनके घुंघरु सबकी झन्कार.. हमारा प्यार कलियो सा निर्मल-कोमल,... मेरा सर पा के उनके- अंजुमन के आंचल को---

पा के पा ले जीने कि वजह.. इक लहर सी चल पडे कमल सी पन्खुडिया सपनो की.. पा के अपने अस्तित्व को. हल्की-हल्की सासे भरतिं मुस्कुरातीं बहतीं जायें. हवा का झोका जब भी हिलोरे लेता है, मन विचलित हो जाता है.. चांदनी रात को पा के-- मन ही मन गुनगुना के---

मै आवारा भवरें सा मडराता रहता हूं.. गाता रहता हूं उन गीतो को जो उनकी यादो से जुडे है.. मेरी सासो से जुडे है.. कह के जो नही कह सकते वो बिन कहे हि, कह देते है.. क्या है हमारे दर्मियां न वो जानते न हम जानते..

मै लोगो से कुछ भी नही कहता,, फिर भी सब समझ जाते है- मेरे सपने को मेरे ख्वाब को मै भी कह ही देता हु, कुछ अपनो से- कुछ यारो से,, उनकी अपनी कहनी. सब कहते है बढिया है.. खूब करो सन्घर्ष- कमल जी..... अपनि कोमल मन्जिल को पा लो,, सारी दुनिया को दिखला दो,, तुममे है दम.. हम भी है फिर साथ तुम्हारे..!!!

अंश कुमार तिवारी K@ml