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चीन में नक्सलवाद और इसकी जड़ें

हालाँकि नक्सलवाद मुख्य रूप से भारत से जुड़ा हुआ है, यह वैचारिक प्रेरणा चीन के क्रांतिकारी आंदोलनों, विशेष रूप से माओवाद से लेता है। मूल रूप में, नक्सलवाद एक कट्टरपंथी वामपंथी विद्रोह है जो वर्ग संघर्ष और सत्ता व संसाधनों के पुनर्वितरण पर आधारित है। नक्सलवाद की जड़ों को समझने के लिए माओवादी विचारधारा के विकास, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) की क्रांति संबंधी रणनीतियों, और भारत के साथ सामाजिक-राजनीतिक समानताओं का अध्ययन करना आवश्यक है। नीचे इस पृष्ठभूमि का संक्षिप्त विश्लेषण प्रस्तुत है।

1. चीन में माओवाद की उत्पत्ति

माओवाद, मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारधारा की एक शाखा है, जो माओ त्से-तुंग के नेतृत्व और लेखन के माध्यम से विकसित हुई, जो चीन के जनवादी गणराज्य (PRC) के संस्थापक थे। 1920 और 1930 के दशक के दौरान, माओ ने महसूस किया कि पारंपरिक रूप से सर्वहारा-आधारित कम्युनिस्ट क्रांति, जैसा कि मार्क्स और लेनिन ने प्रस्तावित किया था, चीन की ग्रामीण और कृषि-प्रधान वास्तविकताओं के लिए उपयुक्त नहीं थी। इसके बजाय, माओ ने एक ऐसी रणनीति विकसित की, जिसमें किसानों को संगठित करना, गुरिल्ला युद्ध को अपनाना, और ग्रामीण अड्डों को क्रांति के आधार के रूप में स्थापित करना शामिल था।

माओवाद के मुख्य सिद्धांत हैं:

जनयुद्ध: एक दीर्घकालिक सशस्त्र संघर्ष, जो ग्रामीण इलाकों से शुरू होकर धीरे-धीरे शहरी केंद्रों को घेरता है।

वर्ग संघर्ष: जमींदारों और राज्य के विरुद्ध किसानों और हाशिए पर पड़े समूहों का संगठित प्रतिरोध।

विकेंद्रीकृत प्रतिरोध: स्थानीय, आत्मनिर्भर समुदायों (आधार क्षेत्रों) का निर्माण, जो धीरे-धीरे राज्य की सत्ता को कमजोर करते हैं।

1949 में चीनी क्रांति की सफलता, जो दशकों के गुरिल्ला युद्ध के बाद आई, दुनिया भर के अन्य क्रांतिकारी आंदोलनों के लिए एक शक्तिशाली आदर्श बन गई, विशेष रूप से उन देशों में जहाँ ग्रामीण गरीबी और दमनकारी शासन प्रचलित थे।

2. भारत में माओवाद का प्रसार और नक्सलवाद का जन्म

माओ की विचारधारा चीन से बाहर फैलकर एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के क्रांतिकारी आंदोलनों को प्रेरित करने लगी। भारत में, यह विचारधारा नक्सलवाद के रूप में विकसित हुई। नक्सलवादी आंदोलन 1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गाँव में शुरू हुआ, जहाँ चारु मजूमदार और कानू सान्याल के नेतृत्व में किसानों के एक समूह ने स्थानीय जमींदारों के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह किया। माओ के कृषि-क्रांति के आह्वान से सीधे प्रेरित होकर, नक्सलियों ने भारत की सरकार को उखाड़ फेंकने और हिंसक विद्रोह के माध्यम से साम्यवादी शासन स्थापित करने का प्रयास किया।

नक्सलियों ने माओ के “जनयुद्ध” की रणनीति को भारतीय परिस्थितियों में अनुकूलित किया, उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जहाँ सरकार की उपस्थिति कमजोर थी और जहाँ जनजातीय आबादी और भूमिहीन किसान सबसे अधिक शोषित थे।

3. संरचनात्मक समानताएँ: ग्रामीण गरीबी और हाशियाकरण

चीनी क्रांति को बढ़ावा देने वाली सामाजिक-आर्थिक स्थितियाँ, भारत के उन क्षेत्रों से काफी मिलती-जुलती थीं, जहाँ नक्सलवाद ने जड़ें जमाईं। दोनों देशों में क्रांति के दौर के दौरान अर्थव्यवस्था कृषि-प्रधान थी, और एक बड़ा हिस्सा जीविका कृषि पर निर्भर था। चीन में किसानों को जमींदारों के अधीन भारी करों और शोषण का सामना करना पड़ा, जिसे माओ ने अपने पक्ष में जनसमर्थन जुटाने के लिए इस्तेमाल किया।

इसी तरह, भारत में नक्सलवाद को उन जनजातीय समूहों और भूमिहीन किसानों के बीच समर्थन मिला, जो निम्नलिखित समस्याओं से जूझ रहे थे:

जमींदारों द्वारा शोषण

भूमि सुधारों की कमी

विकास परियोजनाओं के कारण विस्थापन

दोनों ही मामलों में, ग्रामीण गरीबी और राज्य की उपेक्षा ने सशस्त्र प्रतिरोध की स्थिति उत्पन्न की।

4. नक्सलवाद पर चीन का वैचारिक प्रभाव

विदेशों में वामपंथी आंदोलनों के प्रति चीन के वैचारिक समर्थन ने माओवाद और नक्सलवाद के बीच संबंध को और मजबूत किया। नक्सलवादी आंदोलन के शुरुआती वर्षों में, चीनी प्रचार ने इस विद्रोह को साम्राज्यवाद और पूँजीवाद के खिलाफ वैश्विक संघर्ष का हिस्सा बताया। चारु मजूमदार जैसे नेताओं ने अक्सर अपने घोषणापत्रों में माओ के लेखनों का उल्लेख किया और चीन के अनुभव को भारत के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में देखा।

नक्सलियों का नारा, “चीन का चेयरमैन हमारा चेयरमैन है”, माओवादी विचारधारा के प्रति उनकी निष्ठा को दर्शाता था। माओ के ग्रामीण गुरिल्ला युद्ध के सिद्धांतों की तरह ही, नक्सलियों ने भी हमले-करो-भागो की रणनीति, तोड़फोड़, और दूरदराज के वन क्षेत्रों में “मुक्त क्षेत्रों” की स्थापना पर जोर दिया। इन क्षेत्रों में, भारतीय राज्य की सीमित पहुँच के चलते, समानांतर सरकारें चलाई जाती हैं, जो माओ के समय में चीन के ग्रामीण अड्डों के समान हैं।

5. चीन का रुख बदलना और नक्सली आंदोलन का जारी रहना

हालाँकि माओवाद ने नक्सली विचारधारा को प्रभावित किया, चीन का रुख समय के साथ बदल गया। माओ की मृत्यु के बाद, 1976 में देंग शियाओपिंग के नेतृत्व में CCP ने धीरे-धीरे कट्टरपंथी माओवादी नीतियों को छोड़ दिया और आर्थिक उदारीकरण व राज्य पूँजीवाद की ओर बढ़ा। PRC ने विदेशी क्रांतिकारी आंदोलनों को समर्थन देना भी बंद कर दिया और कूटनीतिक संबंधों व आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित किया।

चीन के वैचारिक बदलाव के बावजूद, भारत में नक्सली आंदोलन जारी रहा, हालाँकि यह कई गुटों में विभाजित हो गया। 2004 में विभिन्न नक्सली गुटों के विलय से गठित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) आज भी सबसे प्रमुख विद्रोही समूह है। यह आंदोलन मुख्य रूप से भारत के पूर्वी और मध्य भागों के आदिवासी क्षेत्रों में सक्रिय है, जिसे “रेड कॉरिडोर” के रूप में जाना जाता है। हालाँकि आधुनिक चीन से अब कोई सीधा वैचारिक समर्थन नहीं मिलता, फिर भी नक्सली आंदोलन अपने अस्तित्व को बनाए रखे हुए है।

6. नक्सलवाद पर चीन का वर्तमान दृष्टिकोण

21वीं सदी में, चीन अब नक्सली या माओवादी आंदोलनों का समर्थन नहीं करता। उसकी प्राथमिकता अब आर्थिक कूटनीति और क्षेत्रीय स्थिरता है। जैसे-जैसे चीन ने भारत के साथ व्यापार और कूटनीतिक संबंध मजबूत किए हैं, उसने भारतीय सीमाओं के भीतर उग्र वामपंथी आंदोलनों को प्रोत्साहित करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है।

भारत, अपने हिस्से में, नक्सली विद्रोह को एक गंभीर आंतरिक सुरक्षा खतरे के रूप में देखता है। भारतीय सरकार ने इस आंदोलन का मुकाबला करने के लिए सैन्य कार्रवाई और विकास परियोजनाओं का मिश्रण अपनाया है, ताकि स्थानीय आबादी को नक्सली प्रभाव से दूर किया जा सके।

7. निष्कर्ष

भारत में नक्सलवाद गहराई से माओवादी विचारधारा में निहित है और यह चीन के ग्रामीण गुरिल्ला युद्ध और वर्ग संघर्ष के अनुभवों से प्रेरणा लेता है। हालाँकि चीन और भारत के सामाजिक-राजनीतिक संदर्भ अलग हैं, दोनों में ग्रामीण आबादी के शोषण ने विद्रोह के लिए उपजाऊ जमीन तैयार की। चीन के क्रांतिकारी अतीत ने नक्सली आंदोलन को रणनीतिक और वैचारिक दोनों ही रूपों में प्रेरित किया, जो आज भी भारतीय राज्य को चुनौती दे रहा है।

हालाँकि आधुनिक चीन अब अपनी क्रांतिकारी जड़ों से दूर हो गया है और आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, नक्सलवाद आज भी भारत में जारी है। यह आंदोलन उन अनसुलझी सामाजिक-आर्थिक असमानताओं की याद दिलाता है, जो कुछ हद तक भारत के हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए माओ के विचारों को प्रासंगिक बनाए रखती हैं।

[1]https://journals.sagepub.com/doi/10.1177/000944558602200302?icid=int.sj-full-text.similar-articles.9

[2] https://www.britannica.com/topic/Maoism

[3] https://www.britannica.com/topic/Naxalite

  1. https://journals.sagepub.com/doi/10.1177/000944558602200302?icid=int.sj-full-text.similar-articles.9 https://journals.sagepub.com/doi/10.1177/000944558602200302?icid=int.sj-full-text.similar-articles.9. गायब अथवा खाली |title= (मदद); |website= में बाहरी कड़ी (मदद)
  2. "Maoism | Definition, Origins, History, & Facts | Britannica". www.britannica.com (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2024-10-14.
  3. "Naxalite | India's Maoist Movement, Causes & Impact | Britannica". www.britannica.com (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2024-10-14.