सदस्य:Ashok0783/प्रयोगपृष्ठ

                                              पनोतिया गांव का ईतहास 

संक्षिप्त परिचय :- बात उस समय कि है।19 वीं सदी सन 1865 ईस्वी मे मेवाड कि रियासत उदयपुर थी । उदयपुर के राजा महाराणा स्वरूप सिंह हुआ करते थे । राजा ने रियासत में बामणी डाक व्यवस्था शुरू कि बामणी डाक व्यवस्था संभवत : बंगाल के हरकारा डाक व्यवस्था से प्रभावित थी । इस व्यवस्था में ब्राहम्ण जाति के लोगो को वार्षिक ठेके के आधार पर डाक वितरण का काम दिया जाता था । उस समय ब्राहम्ण वर्ग के प्रति लोंगो का आदर व दया मान था। यानि साधारण भाषा मे कहा जाए तो ब्राहम्ण को मारना या लुटना पाप कर्म माना जाता था। अतः पैसे व पत्र ज्यादा सुरक्षित रहते थे । ब्राहम्ण को 4 रूपये मासिक वेतन दिया जाता था। उस समय कोई डाकघर नही था। ब्राहम्ण के घर पर ही डाक घर का काम करते थे । एक ब्राहमण भी इसी तरह डाक का काम करता था वो एक दिन राजा के पास गया । ओर राजाजी से थोडी सी जमीन मांगी । राजा ने ब्राहमण को दान मे एक कोश जमीन दे दी । ब्राहमण के चार पुत्र थे । उदयलाल , नरपतलाल, रेखमल , बीलचन्द जो वर्तमान में चार थाम्बो मे विभाजित हुए उदावत ,रेखावत, नरपावत, बीलावत है। गांव मे एक ही पिता की संतान निवास करती है । जिनकी गोत्र व्यास परवाल है। पनोतिया का जन्म  :- राजस्थानी भाषा मे पनोतिया शब्द पन का अर्थ है दान , पुण्य या धर्माद कि हुई वस्तु तिया का अर्थ किनारे यानी कि कोठारी नदी के किनारे शुरू मे पनतिया नाम से कहा जाने लगा । बाद मे धिरे धिरे पनोतिया के रूप मे परिवर्तित हुआ । अब राजस्व रिकार्ड मे भी पनोतिया ही दर्ज किया गया है। प्रस्तावना :- पनोतिया गांव राजधानी जयपुर से 276 किलोमीटर जिला मुख्यालय से 56 किलोमीटर व तहसील मुख्यालय से 13 किलोमीटर नाथडियास से 3 किलोमीटर पर कोठारी नदी के किनारे बसा हुआ । गांव के लोग पुर्णत खेती पर आधारित है। 2011 कि जनगणना के अनुसार 272 परिवार निवास करते है। जिसमे कुल 1295 कि जनसंख्या निवास करती है। 652 पुरूष 643 महिलाए , 102 बच्चे व 74 बालिकाए मध्यम वर्ग के लोग 63 व महिलाए 45 अन्य पिछडा वर्ग के 111 लोग 123 महिलाए लिंगानुपात 59 प्रतिशत है। 90ः 18 प्रतिशत लोग गाव मे ही खेती का कार्य व अन्य मजदुरी का काम करते है। 9ः82 प्रतिशत के लोग गुजरात पंजाब महाराष्ट् मध्यप्रदेश मे अपना व्यवसाय करते है। मुख्यत रूप से हलवाई व स्क्रेप का काम कर अपनी आजिविका चलाते है। अपनी रोजमर्रा के सामान तो गाव मे ही उपलब्ध हो जाते है। लेकिन बडे कार्यक्रम मे भीलवाडा , करेडा , बागोर, गंगापुर से खरीद कर लाते है। यातायात के साधन बस सेवा पास ही नाथडियास से मिल जाती हैं। रेल सेवा भीलवाडा या देवगढ जाना पडता है। एयरपोर्ट उदयपुर है। विकास कि प्रगति  :- जहा गाव मे पाचवी तक विद्यालय हुआ करता था । आज वर्तमान मे दसवी तक विद्यालय एक विशालकाय भवन मे निर्मित है। गांव मे आज सभी मकान पक्के बने हुए है। ओर पक्की सडके बनी हुई है। एक प्राथमिक उपचार केन्द्र है। व दो आंगनबाडी केन्द्र है। ओर सभी घरो मे पानी व लाईट व रोड लाइट व हरियाली से सुसज्जित है। गांव का विकास गाव के हर व्यक्ति के मुह जुबान पर है। गाव के लोगो मे शिक्षा का भी बहुत महत्व रहा है। लोग अपनी प्रतिभा एक सामान्य ज्ञान से ही अपनी प्रतिभा प्रकट करते है। मन्दिर व पुजा का स्थान  :- गांव के लोग भक्ति ओर आस्था से अछुते नही रहै है। गांव मे एक चारभुजा जी व माताजी व हनुमान जी का मन्दिर है। जहा लोगो मे आस्था का प्रत्यक्ष प्रमाण है। लोग अपनी श्रद्वाअनुसार पुजा करते है। मन कि बात :- क्या आपको यह कहानी गलत नही लगती होगी । सबके मन में एक बात तो कांटे कि तरह चुभ रही होगी कि । कितने साल बित गये । कितनी पिढिया गुजर गयी । लेकिन एक बा्रहम्ण इस गावं मे ही क्यो बसा । या फिर बात राजा की कहे तो राजा ने इस जगह ही जमीन दान में क्यो दी । चाहे कोई भी था पर था तो मेरा ही खुन । बात मे यही सार है। उनको सब पता था। कि उसका परिवार कितना बढेगा। उन सब के लिए जमीन,मकान , कि जरूरत होगी । हम उनका यह कर्ज सारी जिदंगी कि कमाई से भी नही उतार सकेगें । वे हमारे लिए पुजनिय है।

            पनोतिया गांव कि सुगंध चहु ओर 
           कोठारी गंगा बहे मिठा बोले कोयल मोर  
                                    लेखक :- अशोक शर्मा