सदस्य:Asmita97/प्रयोगपृष्ठ

अस्मिता डबराल
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Asmita
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जन्म ४ जून १९९७
देहरादून, भारत
राष्ट्रीयता भारतीय
धर्म हिन्दू


व्यक्तित्व जीवन:-
         इस दुनिया में बहुत सारे लोग रहते हैं और सभी एक दूसरे से भिन्न हैं और उनका अपना व्यक्तित्व है। हर किसी का व्यक्तित्व समय रहते बदलता नहीं है और यही उसे खास बनाता है। जहाँ तक मेरा सवाल है मेरा नाम अस्मिता डबराल है जो एक हिंदी का शब्द है और इसका अर्थ गर्व है। मेरी उम्र १८ वर्ष है। मैं देव भूमी उत्तराखंड की रहने वाली हूँ। मेरे परीवार में मेरे माता-पिता और मेरी एक पयारी सी छोटी बहन है। मैं बहुत् ही ज़िम्मेदार, सहानुभूतिपूर्ण और स्वकेन्द्रित व्यक्ति हूँ जिसके बहुत सारे मित्र और दुश्मन हैं।

 अभिरुचि:-
          मुझे नृत्य करने का और टेनिस खेलने का शौक है। मैं ह्मेशा से ही पढ़ने-लिखने मे श्रेष्ठ रही हूँ। मुझे पाँचवी क्क्षा से ही इतिहास और राजनीति विज्ञान पढ़ने में काफी दिलच्सपी रही है और अभी भी बरकरार है। इनके अलावा मैं खेलों में भी अच्छी थी जैसे खो-खो, टी-टी, भागने मे और लोंग जम्प मे। मेरा दूसरा शोक खरीद्दारी करना है। मैं यह मानती हूँ कि यह कोई आसान कार्य नहीं है क्योंकि इसमें हमे बहुत मेहनत करनी पढ़ती है अपने लिये एक दम सही प्रकार कि वस्तु ढूंढ़ने में।
सामाजिक समस्याँँओ पर राय:-
          मेरा सपना एक आ ए स अफसर बनने का है और अपने परिवार का नाम रोशन करना चाहती हूँँ और अपने देश के लिये कुछ करना चाहती हूँँ। अभी हम आए दिन देख रहें हैं की औरतों पर अत्याचार बढ़ता ही जा रहा है यहाँँ तक की आज भी हमारे देश के कुछ इलाको में लड़कियों को अपनाया नहीं जाता और उन्हें इस दुनिया में आने से पहले ही मार दिया जाता है। दिन प्रतिदिन हमारा देश औरतों के लिये असुरक्षित बन रहा है। अगर मैं अपने सपने को पूरा करने मे सफल हो गई तो मैं अपने देश को औरतों के लिए सुरक्षित बनाना और उनको बढ़ावा देना चाहुँंगी। यही नहीं अपने देश को और शिक्षित बनाना चाहूँगी क्योंकि जब पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगा इंडिया। मेरा मानना यही है कि जबतक हम कर्तव्यपरायण् और कर्तव्यनिष्ठ नहीं होंगे और दूसरों की सहायता करने के लिए आतुर नहीं होंगे तो तब तक हमारा जीवन य्रथार्थ नहीं होगा।
     
  मेरा जीवन के प्रति यही दृष्टिकोण है कि:-
                              "उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त ना हो जाये।"  
                                                              -स्वामी विवेकानंद्