सदस्य:Babu Lal Gupta/प्रयोगपृष्ठ

श्री श्री दुर्गा सरणम् संपादित करें

कैंसर (Cancer) एवं अति-अम्लता (Hyper Acidity) का कारण ओर उपचार संपादित करें

मानवता के हित और सेवा में संपादित करें

परमात्मा ने नाक के बीच से शरीर को दो बराबर भागो में बाँटा है। नासिका के दो बराबर भाग बनाये हैं, दाहिना और बायाँ। दोनों नासिका छिद्रो से कभी दायीँ ओर की नासिका छिद्र से श्वास चलता है कभी बायीँ ओर की नासिका छिद्र से श्वास चलता है। कभी बहुत थोड़ी देर के लिये दोनो छिद्रो से श्वास चलता है। श्वास प्रश्वास की यह गति होती रहती है। जब हमारा शरीर नासिका के दोनों और एक-सा (Symmetrical) है तो श्वास प्रश्वास भी एक-सा (Symmetrical) होना ही चाहिये।

यहाँ एक-सा (Symmetrical) का अर्थ दो प्रकार से है:-

1. दोनों नासिकाओं से एक साथ समान रूप् से श्वास चलता रहे पर यह योगियो के लिये भी अति कठिन है।

2. जब दायीं नासिका छिद्र से श्वास चलता है तो बायीं नासिका छिद्र बन्द रहता है, और जब बायीं नासिका छिद्र से श्वास चलता है तो दायीँ नासिका छिद्र से श्वास बन्द रहता है। चोबिसो घण्टे में यह अनुपात बराबर होना चाहिये अर्थात 12 घण्टे दायीँ नासिका छिद्र से श्वास चलनी चाहिये और 12 घण्टे बायीँ नासिका से। इसका पूरा विवरण योगेश्वर शिव-पार्वती संवाद स्वर विज्ञान (शिव स्वरोदय) पुस्तक में है जिसके अनुसार हर एक घण्टे बाद एक नासिका छिद्र से व दूसरी नासिका छिद्र से श्वास बदलता रहता है अर्थात एक घण्टे दायीँ और अगले एक घण्टे बायीँ नासिका छिद्र से श्वास प्रश्वास की गति होती रहती है। शुक्ल और कृष्ण पक्ष के अनुसार श्वास पहले घण्टे किस नासिका छिद्र से चले इसका पूरा विवरण शिव स्वरोदय पुस्तक में दिया गया है।

कैंसर (Cancer), रक्त कैंसर (Blood Cancer), एवं अति-अम्लता (Hyper Acidity) आदि रोगो का कारण और उपचार- संपादित करें

बायीँ नासिका छिद्र से श्वास चलता है तो यह शीतलता का प्रभाव देता है और कफ पैदा करता है।

दायीँ नासिका छिद्र से श्वास चलता है तो यह ऊष्णता का प्रभाव देता है और पित्त बनाता है।

जब लगातार दायीँ नासिका छिद्र से श्वास चलता रहता है तो पित्त का निर्माण अधिक होता रहता है। कुछ हद तक तो हमारा शरीर सहन कर लेता है परन्तु जब हमारा दायाँ स्वर अधिक चलता रहता है तो अम्लता (Acidity) खट्टी डकार, जलन, गैस आदि विकृति आदि पैदा होने लगती है और बाद में कैंसर (Cancer), रक्त कैंसर (Blood Cancer), एवं अति-अम्लता (Hyper Acidity) आदि रोगों के रूप में प्रकट होती है।

इन रोगों से ग्रसित व्यक्ति स्वयं का परीक्षण करें। सभी का दायीँ ओर के नासिका छिद्र से श्वास प्रश्वास अधिक समय तक होता मिलेगा। आप एक दिन दो दिन परीक्षण करें। आप अपनी नासिका के दायेँ छिद्र से ही श्वास-प्रश्वास होता पाये तो इसे ही रोग का कारण समझना चाहिए । यही कारण है इन रोगों का। जब तक कारण मौजूद है, कार्य होता ही रहेगा। अतः हमें इसके कारण को ही दूर करना होगा एवं श्वास उपचार करना ही पड़ेगा।

अधिक पित्त या ऊष्णता जनित इन रोगो के उपचार को दो भागों में बाटाँ जाता है।

1. बायीँ ओर की नासिका छिद्र से श्वास चलाना।

2. शरीर में बढ़ी हुई पित्त को दूर करना।

1. बायीँ ओर की नासिका छिद्र से श्वास चलाना।

बायीँ नासिका से श्वास चलाने की बहुत विधियाँ हो सकती हैं परन्तु मैंने जिनको उचित समझा है और प्रयोग किया उन्ही को कहता हूँ।

(i) आप कुर्सी पर या जमीन पर बैठकर दायाँ हाथ लगभग कन्धे के समान्तर मेज, चारपाई या अन्य किसी वस्तु पर रखें। काँख मेज या चारपाई के साथ लगी रहे। बायाँ हाथ या काँख के साथ लगाकर ढीला छोड़े।

(ii) दायीँ करवट लेटकर दाहिना हाथ काँख से दूर रखें और बायाँ हाथ काँख के साथ मिलाते हुए ढीला छोड़ दें।

(iii) सीधा लेटकर दायाँ हाथ और काँख के बीच कोई मोटा सा तोलिया, तकिया या कोई अन्य वस्तु लगाए ताकि दायाँ हाथ काँख से दूर हो जाए। बायाँ हाथ काँख से सटा लें।

(iv) काँख में मोटी गद्दी लगाने से भी बायाँ स्वर चल सकता है।

उपरोक्त अलग-अलग विधियोँ से किसी भी विधि का अपनी सुविधा अनुसार एवं समयानुसार चयन करें। इस तरह से कुछ ही देर मे आपका श्वास बायीँ ओर की नासिका छिद्र से चलने लगेगा। नाक में देसी घी या शुद्ध सरसो का तेल अवश्य लगाएं।

कुछ समय बाद आप चैक अवश्य करें कि आपका बायाँ स्वर चलने लगा है या नहीं। आप बीच मे बायीँ नासिका से श्वास चलाने तरीका भी बदल सकते हैं।

बायीँ  नासिका से सारा दिन श्वास चलाने का प्रयास करें कम से कम 10 घण्टे।  बीच में उठ सकते हैं परन्तु फिर बायीँ नासिका से श्वास चलाने का प्रयास करें क्योंकि हो सकता है कि फिर आपका दायाँ स्वर चलने लगा हो।

2. शरीर में बढ़ी हुई पित्त को दूर करना।

शरीर की बढ़ी हुई पित्त को दूर करने के लिये शीतली प्राणायाम करें लगभग 8-10 मिनट तक का। शीतली प्राणायाम दिन में तीन बार अवश्य करें, हर बार 8-10 मिनट तक। किसी भी प्रकार प्राणायाम् हो, जितना समय श्वास लेने में लगता है श्वास छोड़ने में उससे अधिक समय लगना चाहिये और गहरे श्वास लेकर धीरे-धीरे छोड़ना होता है।

भोजन केवल आधा पेट करे। केवल दलिया और खिचड़ी खाएँ। जूस, दूध में बराबर मात्रा में पानी मिलाकर पिए और छाछ का सेवन करें।

पित्त बनाने वाली या ऊष्णता देने वाली वस्तु का सेवन न करें। अण्डा मीट गर्म मसाला चाय, शराब, तम्बाकु, अदरक लहसुन आदि का सेवन न करें।

यदि कब्ज हो तो कोई हल्की दस्तावर दवाई ले।

भोजन के आधा घण्टा पहले और आधा घण्टा बाद तक शीतली प्राणायम न करें।

एक सप्ताह बाद आपको काफी राहत मिल चुकी होगी। लगभग 15 दिन बाद आप अपने आप को ठीक महसूस करने लगेंगे, 15 दिन बाद आप चैक करवाएं। यदि आवश्यकता हो तो कुछ दिन और इसी प्रकार करते रहें।

एक ही दिन में ठीक होने का प्रयास न करें शीतली प्राणायाम् तीन बार से अधिक न करें।

जब आपका बायाँ स्वर चलने लगे और इन सब क्रियाओं को करते हुए दो तीन दिन हो जाए तो अनुलोम-विलोम प्राणायाम करना शुरू करें।

इसे सुबह नित्य क्रियाओं से फारिग होने के बाद खाली पेट करें। इसको नाड़ी सोधन प्राणायम भी कहते हैं। यह सारे शरीर में सभी प्राकर की प्राण शक्ति को, पहुचाता है।

स्वामी विवेकानन्द साहित्य के दस भाग हैं चौथे भाग के राजयोग में स्वामी जी आधा घण्टा सुबह और आधा घण्टा सायं नाड़ी सोधन प्राणायम करने का निर्देश देते हैं।

भोजन के तुरन्त बाद किसी भी प्रकार का प्राणायाम न करें।

लेकिन कैंसर तो बायाँ स्वर चलाकर शीतली प्राणायाम् करने से ही दूर होगा। यदि आपके कही गांठ भी उभरी हो तो वह भी रोग के साथ ही ठीक होने लगेगी।

(प्राणों की सख्यां नहीं बढ़ाई जा सकती लेकिन रोग अवश्य-अवश्य ठीक होगा।)

अगर अति-अम्लता (Hyper Acidity) है तो एक या दो दिन में ठीक हो जायेगी।

कैंसर (Cancer), रक्त कैंसर (Blood Cancer) आदि अनेकों रोग पित्त की प्रधानता के कारण होते हैं। आप स्वयं चैक करें आप सभी का दायाँ स्वर अधिक चलता मिलेगा।

जिनका बायाँ स्वर बिल्कुल बन्द है केवल दायाँ स्वर ही चलता रहता है वह सबसे कठिन रोगी है। इसमें बायाँ स्वर चलाते ही बहुत ठण्ड लगती है जो बर्दाश्त से बाहर होती है फिर भी रिस्क तो उठाना ही पड़ेगा। इस प्रकार के रोगी का ठीक होना कठिन है।

अगर आपका स्वास्थ्य ठीक है तो प्राणो से छेड़छाड न करें

रोगी ठीक होने के बाद इन क्रियाओं को छोड़ दें।

जो रोगी भोजन का परहेज नहीं कर सकते और बायाँ स्वर अधिक न चला सकें यह प्राण विद्या का उपयोग न करें क्योंकि यह विद्या संयमहीन के लिये नहीं है। लीपा पोती करने से काम नहीं चलेगा।


घ्यान रखें

यदि कभी कभी अम्लता (Acidity) होती हो तो कोई खराबी नहीं है। दायाँ स्वर ऊर्जा देता है, किर्याशील रखता है। यहि जीवन शक्ति है, अतः इस अवस्था में प्राणों से छेडछाड ना करें।


विशेषः

1. सर्दियों में केवल 2 बार ही 5-5 मिनट शीतली प्राणायाम् करें।

2. कमर सीधी रखें ताकि रीढ़ पर खिचांव न पडें।

3. रोग दूर होने पर बायाँ स्वर चलाना और शीतली प्राणायाम् करना छोड दें। स्वाभाविक ढंग से रहें। आवश्यकता सें अघिक बायाँ स्वर चलाना और शीतली प्राणायाम् करना कफ, निमोनिया (pneumonia) आदि सर्दी से सम्बन्धित आदि रोगों का कारण हो सकता है।'