कैंपस लाइफ संभावनाएं एवं चुनौतियाँ : एक विश्लेषणात्मक अध्ययन

   शोधार्थी-विकास बाजपेई

   समाज कार्य विभाग

 महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी

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संभवता बाल्यावस्था से जैसे ही कोई बालक किशोरावस्था की तरफ कदम रखता है साथ ही साथ स्कूल जीवन से उसका पदार्पण कॉलेज जीवन की ओर होता है । अब वह घर की चहर-दिवारी से या यों कहें गाँव के छोटे से स्कूल से निकल कर शहर के बड़े-बड़े कालेजों में पदार्पण करता है । यह पहला अवसर होता है जब बालक घर से दूर अपनों से दूर स्वयं को अकेला पता है । वे लोग इस अनुभव से कुछ समय के लिए अनभिज्ञ रह जाते हैं  जिनके गाँव, शहर, कस्बों में शिक्षण की पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध रहती है । नया शहर, नए लोग, नया समाज, नया परिवेश, नयी भाषा , नयी बोली, नयी संस्कृति से उसका प्रत्यक्षीकरण होता है । क्योंकि भारतीय परिवेश पर बहुत ही प्रचलित लोकोक्ति    है – “ कोस कोस पर बदले वाणी चार कोस पर पानी ”अर्थात बालक के लिए पूरा वातावरण ही नया होता है जिसमें उसका समाजीकरण तथा  सामंजस्य स्थापित करना चुनौतीपूर्ण होता है । जिसमें अनेक समस्याओं का समाना बालक को करना होता है । कालेज से पढ़ाई पूरी करने के साथ बालक किशोरावस्था (तरुणावस्था) से  जीवन के  अगले अहम पड़ाव  युवावस्था की दहलीज पर कदम रख चुका होता है  कुछ विलक्षण अपवादों को छोड़कर जो किशोरावस्था मे अपनी विलक्षण क्षमताओं के कारण विश्व विद्यालयों मे प्रवेश ले पाते हैं । युवावस्था जीवन की वह अवस्था होती है जब मनुष्य स्वयं को  सर्वाधिक ऊर्जावान महसूस करता है । इसी अवस्था में ही वह भावी जीवन के तमाम सपने देखता है और उनको साकार करने के लिए अपनी साकारात्मक ऊर्जा का प्रयोग करता है  कैंपस लाइफ से जहां एक ओर अपार संभावनाओं के द्वार खुलते है वहीं इस जीवन में अनेक चुनौतियों का सामना भी बालक को करना होता है । कैंपस लाइफ (विश्व विद्यालयी जीवन ) बालक के भविष्य निर्धारण का  समय होता है । इस समय प्रत्येक छात्र के अन्तः पटल पर अनेक जिज्ञासाएँ एवं आकांक्षाओं के साथ- साथ  संदेह एवं तनाव उत्पन्न होता है जिसका मुख्य कारण जीवन के इस मोड पर उपस्थित अनिश्चतता है । प्रस्तुत शोध अध्ययन में कैंपस लाइफ में आने वाली समस्याओं का अध्ययन कर समस्याओं का उचित समाधान प्रस्तुत किया जाएगा । 
मुख्य शब्द – कैंपस लाइफ, संभावनाएं , चुनौतियाँ ।