सदस्य:Bhoomika Rao/भावनात्मक बदलाव

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        हर एक जीवी, जिसको सास लेना आता है, उसे कुछ न कुछ तोह मेहसूस होता हैं| यह खालि मानवो के लिए नहि बल्कि हर एक जीवी को होता हैं| इस मेहसूस को हुम एङ्लिश मै एमोशनल नाम के द्वर जाने जाते है| वह एमोशनल लेवेल एक जीवी से दूसरे जीवि बहुत अस्त वस्त होता हैं| इस तरह हुम फ्ंकोलोजि के द्वरा इस एमोशनल लेवेल या बालेंस को प्रमानित कर सकते है और उसे बहुत अच्चे से साना भि जा सकता हैं| हम कबि भी किसी दूसरे इन्सान की एमोशनल लेवेल पार अपमान नहि करना चाहिए|      हम हर समय कुछ न कुछ तो मेहसूस करते हैं| इसे हम भावना भी केहेते हैं| वह भावना समय, दूसरे लोगों और अपने मन के अनुसार बदल्ता रहता हैं|हुम हमारे चेहरे पर इस भावनाओं को वक्त करते रहते हैं| हमारे आखों मै वह भावनाए प्रकट होता रहता हैं| पर अगर चाहे हो हम इस भावनाओं को दूदसरे को देखाने से रोक सकते है| इसके लिए हमे थोडा द्रिड सन्कल्प की ज़रूरत है| पर ज्यादा से ज्यादा लोगों इन भावनाओं को रोक नही सकते हैं| और चाहे या न चाहते हुए भी दूसरों को इन भावनाओं को दिखा देते हैं| इस तर हमारे सूच्छ विछारों मै अस्य वय्स के अनुसार इस " एमोशनल वेरिएशन" को प्रमानित किआ जाता हैं|
                    मानव जीवि बात के प्रति एक दूसरे से भावनाओं का प्रसार करते हैं| उनकी भाषा शैली, शरीर क उपयोग, आखों का चलन और उनके बोलने की तरीकाओं से हुम उनकी मक का बात को विचार कर सकते हैं| इसका मतलब यह नही कि  हुम जो भी मन मै आये हुम वह सूछ सकते है दूसरे इनसान के बारे मैं, पर इसके द्वरा हम खालि अनदाज़ा कर सकते है की दूसरे मानव या जीवि के मन मै क्या छलरा हैं| हम मानव जीवि एक दूसरे के आखों और चहरों को देखकर दूसरों की मूड को जान सकते हैं| इस पकार से हम बाद मैं उस व्यक्ति से बात चीत करते हैं| अगर वह आदमि या औरथ खुशि से फूलरे है तोह हम भी उस खुशि मै भाग लेते है और अगर वह आदमि या औरथ दुखीः है तोह हुम उनके मूड को ठीक करने की कोषिश मै लग जाते हैं| इस प्रकार एक सूसरे के भवनावों के बल पर एक दूसरों को समज सकते हैं| इसी तरह मनवों मै बहुत तरह का भावनाए होते हैं| जैसे की श्रुंगार { जहा एक दूसरे का पार करता हैं }, रोध्र { गुस्सा दिखाना }, हास्या { हस मुख }, बीबत्स { असह करना }, वीर { वीरत्व }, भयानक { डर जान }, अदबुत { चकित कोना }, करुना { दया करना }, सहज { समा भावना } यह हमरा शास्तों मै लिखा गया नव रस हैं। जो भी हम चहरों मै दिखाते है वोह सब भवनाए इन नव भावनाओं मै से एक हैं। इस प्रकार एक मानव दूसरे मानव से इन भावनओं के द्वरा भाशन कर देते है। 
       
                 मानवों का ठीक है, पर उनका क्या जो बात नही कर सकते है? एक प्राणि औए मानव के बीछ? दो जानवरों के बीछ?

हुम इस प्रश्न को भी दूर कर सकते हैं। यह जरूरी नहि कि बात के द्वरा ही हम एक दूसरे से भावना प्रसुत करते हैं। आखे ही काफी है। जिससे हुम एक दूसरे को पहचान कर सकते हैं। इसी प्रकर एक कुत्ता और एक मानव के बीच बोलने की जकोइ ज़रूरत नही नोता है। पर आखों के इशारों से ही सब बात प्रकट किया जाता हैं। यह बात खालि कुतों को नही बलकी पेड, पौदों और दूसरे जान्वरों को भी हम डाल सकते हैं।

                   इस प्रक्कर हुम हमेशा एक दूसरे को ज्यादा समजने की, एक सूसरे क भलाई कररे और मिल जुल्कर रहने की कोषिश करते है। इसी प्रकार हुम एक दूसरों की भावनाओं को समज के चलना चाहिए। दूसरों को गलत ना समजके, उनके भावनाओं को मोल देते हुए अगर हम सबका भावनाओं को मान मैं रखते है तोह हमारी जिंदगी आसान हो जाता हैं। एक दूसरे को ग्यादा अच्छे से समज भी सकते है और प्रक्र्ति, पशु और मानवोंके बीच्छ भी एक अच्छा रिशस्ता बना रहेगा।