सदस्य:Chandan ahir/प्रयोगपृष्ठ

शुरुआती पढ़ने वालों का ग्रह: प्‍लूटो संपादित करें

प्‍लूटो को जानने से पहले छोटे बच्‍चों के लिए उपलब्‍ध साहित्‍य पर गौर करें। पाएंगे कि यह बच्‍चों को सिखाने और नसीहतें देने की अधीरता से भरा हुआ है। बच्‍चों के लिए कहानियों के कुछ लिजलिजे अन्‍त तय कर दिए गए हैं- ………..उसे सबक मिल गया। ……….उसने तय किया कि आज के बाद वह बड़ों का कहना मानेगा। ……….उसने पिंजरा खोलकर तोते को उड़ा दिया। आदि।

यह भी माना जाता है कि बच्‍चों को तुकबन्‍दी अच्‍छी लगती है। इस चक्‍कर में तुकबन्‍दी तो हो जाती है पर रचना नहीं बनती। हमें यह परिदृश्‍य कभी बच्‍चों के हित में नहीं लगा। इसलिए कि इसमें यह मान्‍यता निहित है कि सीखना किसी मंजिल पर पहुँच जाने जैसा है। प्‍लूटो की समझ में सीखना एक सिलसिला है। यह सिलसिला किसी सिरे से शुरू होता है। चलता रहता है। पर इसका कोई अन्‍त नहीं है। किसी अन्‍त को मान लेना सीखने पर लगा हुआ पूर्ण विराम है।

छोटे बच्‍चे असीमित जिज्ञासा से भरे हुए हैं। उनकी कल्‍पनाशीलता अनूठी और प्रश्‍न मौलिक हैं। हमारे लिए यह सिर्फ कहने की बात नहीं है। प्‍लूटो की रचनाएँ देखें तो पता चलेगा कि हम छोटे बच्‍चों की कल्‍पनाशीलता, समझ और तर्कबुध्दि में भरोसा करते हैं। इसलिए अपनी कविता कहानियों में इन क्षमताओं के रियाज़ के लिए छोटी-छोटी चुनौतियाँ पेश करते रहते हैं। बच्‍चों में हमारा भरोसा वयस्‍कों की समझ पर भरोसे से एक तिनका भी कम नहीं है। प्‍लूटो में प्रकाशित रचनाओं में यह दिखता है। जैसे अवलोकन के लिए ये सवाल-

खोजबीन – जाँचकर देखो इनमें से कौन सी बातें तुम्‍हें सच लगींॽ

·        सारे ऊँचे पेड़ों की पत्तियाँ छोटी होती है।

·        सारे बड़े पत्‍ते कटे फटे होते हैं।

·        काँटे वाले पेड़ों की पत्तियाँ बकरियों, ऊँटों को अच्‍छी लगती हैं।

(प्‍लूटो फरवरी मार्च 2020)


प्‍लूटो में भाषा के अनूठे प्रयोग मिलते हैं-

बादल छाते हैं

बिकने कहाँ बाज़ार में आते हैं  

(प्‍लूटो अगस्‍त सितम्‍बर 2020 से)


खेल रहे थे सात

मगर दो लड़के चले गए

पाँच खेलते मिलजुलकर

दो लड़ के चले गए

(प्‍लूटो अगस्‍त सितम्‍बर 2019)

द के नीचे झूल रही थी

दुम में एक और दुम

पूँछ के प में सबने देखा

पलट गई हो तुम

(प्‍लूटो अगस्‍त सितम्‍बर 2020)


प्‍लूटो तर्कबुध्दि  इस्‍तेमाल के मज़ेदार प्रसंग प्रस्‍तुत करती है-


अध्‍यापिका- मैंने तुमको लाइन में सबसे पीछे खड़े होने का कहा था।

छात्रा- मैडम मैं वहाँ गई थी पर राशिद वहाँ पहले से खड़ा था।

(प्‍लूटो फरवरी मार्च 2020)


जब हम कुछ ढूंढ रहे हों तो वो हमेशा आखिरी जगह पर ही क्‍यों मिलती हैॽ


(प्‍लूटो अगस्‍त सितम्‍बर 2020)


प्‍लूटो की रचनाएं देर तक गूँजती रहने और विचारों में उथल पुथल मचाने वाली हैं। इनसे कल्‍पनाशीलता, संवेदनशीलता और अलग-अलग नज़रियों से दुनिया देखने की दृष्टि मिलती है।


एक बड़ा तरबूज

गया नदी में कूद

ऐसी हुई छपाक

नदी हुई दो फाँक

(प्‍लूटो जून जुलाई 2019)


जेब्रा का बच्‍चा सोचता है

हाथियों की मूँड पर सूँड लगी है

जिराफ की सूँड पर मूँड लगी है

(प्‍लूटो जून जुलाई 2020 से)


मैंने एक गिद्ध पाला है

मेरे पापा को मेरे गिदध से नफरत है

पापा कहते हैं गिद्ध गंदे और पापी होते हैं

पर मेरा गिद्ध पापा को बहुत पसन्‍द करता है

वो सोचता है कि पापा बहुत स्‍वादिष्‍ट हैं

(प्‍लूटो अप्रैल मई 2020)


नदी किनारे

बाघ का घर था

बाघ के घर को

बाढ़ का डर था

(प्‍लूटो अगस्‍त सितम्‍बर 2019)


प्‍लूटो के पाठकों की उम्र में एक बड़ा लक्ष्‍य पढ़ना सीखना भी होता है। पढ़ना मतलब लिखे हुए से अर्थ ग्रहण करना। यह एक वैचारिक कौशल है। और लिपि को डीकोड करना महज़ एक स्‍थूल कौशल। पढ़ना सिखाने के क्रम में जब लिखित सामग्री से अर्थ ग्रहण करने से ज्‍यादा इस बात को तरजीह दी जाती है कि बच्‍चे लिपि को डीकोड करना सीखें, तब समझते हुए पढ़ना गौण हो जाता है।

प्‍लूटों की रचनाएँ रोचक होती हैं। इन्‍हें पढ़ेंगे तो अगले अंक का इन्‍तज़ार करेंगे। यह पत्रिका बच्‍चों को साहित्‍य का पाठक बनाने में मदद करेगी। आप प्‍लूटो की रचनाओं के इर्द गिर्द पढ़ने, सुनने, बातचीत करने और सोचने के काम करेंगे तो पढ़ना सीखना बच्‍चों के लिए एक मज़ेदार अनुभव बन सकेगा। प्‍लूटो यहां से

मिलेगी। www.ektaraindia.in


साइकिल

हमारी यह धरती कितनी खूबसूरत है। इसके चप्पे-चप्पे को छानने का एक मन हम सबमें कहीं रहता है। उसी एक मन के लिए हमने साइकिल तैयार की है। बचपन में मन में कितनी ही नावें बनी थीं। जो तैरने बाहर न आ पाई थीं। उन सब नावों को ही खोलकर कागज़ बनाए हैं। और कागज़ों को खोलकर पेड़, परिन्दे, घोंसले, हवाएँ, बादल, खेत... सब बनाए हैं।

और इन सबसे साइकिल बनाई है। 

कभी कभी मन करता है कि साइकिल उठाकर अंतरिक्ष में चला जाऊँ...। जब थक जाऊँ तो पृथ्वी से साइकिल टिकाकर वहीं बैठ जाऊँ। कभी जब साइकिल उठाकर यूँ ही घूमने निकल जाता हूँ तो लगता है कि जैसे अंतरिक्ष में घूम रहा हूँ। किसी गुमठी पर साइकिल टिकाकर बैठता हूँ तो लगता है कि साइकिल पृथ्वी पर टिका दी है। तब इस धरती, पृथ्वी, इस हमारी पृथ्वी के प्रति प्रेम से भर उठता हूँ। साइकिल उठाता हूँ और देखता हूँ कि कहीं साइकिल के हैंडल से पृथ्वी को चोट तो नहीं पहुँची।

एक ही शहर में हज़ारों हज़ार ग्रह और पृथ्वियाँ और तारे नज़र आते हैं। साइकिल से घूमते हुए।

एक दिन अपनी साइकिल पर मुझे एक चीटी दिखी। वह सीट की तरफ जा रही थी। मैंने उसे कैरियर पर बिठाया और पूरे शहर का एक चक्कर लगाकर उसे वहीं छोड़ दिया। उसे कैसा लगा होगा?...शायद वैसा ही जैसा कि अंतरिक्ष में साइकिल से घूमता तो मुझे लगता।

उस दिन से मैं सोच रहा हूँ कि चींटी का ब्रह्मांड कितना बड़ा होगा। उसे कितनी पृथ्वियाँ दिखती होंगी और कितने आसमान और कितने सितारे...।

...उस दिन मुझे साइकिल से प्रेम हो गया। उसी ने तो बताया था कि एक ही दुनिया में असल में कितनी-कितनी दुनियाँ रहती हैं।

...रोज़ साइकिल उठाता हूँ और दुनिया को देखने, उसे निहारने, उसे समझने नहीं उसे जीने, उससे प्रेम करने निकल पड़ता हूँ।

जैसे बचपन में सिक्के के ऊपर कागज़ रखकर पेसिंल से घिसते थे तो एक सिक्का छप जाता था।...छपाई का वही सूत्र लेकर, असल साइकिल से एक छापा साइकिल निकाली है। वह छापे का सिक्का कहीं जैसे खो गया है। जिसे पाकर आनंद आता था। छापा साइकिल बची तो छापा सिक्का बचा रहेगा और बचा रहेगा आनंद।

कितना अच्छा है कि दुनिया में एसी चीज़ें बनीं जो खर्च नहीं होतीं। और जिनसे आनंद के सिवा कुछ नहीं आता। हमारी यह ताज़ी पत्रिका साइकिल उस दुनिया की पड़ताल करेगी जो सिक्के से आगे की है...जो आनंद के नाम होगी और सिक्के के बदले एक छापे सिक्के के प्रस्ताव की तरह होगी। साइकिल का पता www.ektaraindia.in