वुथा मेला

वुथा मेला, गुजरात के सबसे बडे ग्रमीण मेलों में से एक है। यह मेला नवंबर के महीने में आयोजित किया जाता है, और पाँच दिनों तक चलता है। इस मेले का पौरणिक एवं आर्थिक मह्त्त्व भी है।वुथा मेला गुजरात का सबसे प्रमुख पशु व्यापार का मेला माना जाता है। यह मेला वुथा में आयोजित होता है, ठीक वहाँ जहाँ साबरमती और वर्तक नदियों का संगम पाया जाता है, जिसे सप्तसंगम भी केहते हैं। धर्मिक रूप से वुथा को ७ नदियों की मातृभूमि माना जाता है। किवंदतियों के प्रति शिवजी के बेटे कार्तिकेय ने इस जगह पर अपनी उपस्थिति दिखायी थी। इसी वजह से कार्तिक पूर्णिमा(पूर्ण चंद्र की रात) पर इस मेले का आयोजन होता है। कई तीर्थयात्री इस दिवस को शुभ मानते हैं और पूर्णिमा की रात को पवित्र नदी में डुबकी लगाकर पूजा की प्रर्थना करते हैं जिससे उनका यह मनना है कि उनके सारे पाप धुल जायेंगे। कुछ यत्रि तो नदि के किनारे पर दिया जलाकर प्रर्थना करते हैं।

इस मेले के अवसर पर कई पशुओं को व्यापार के तौर पर बेचने के लिये लाया जाता है। दिन में बडे पैमाने पर व्यापार देखने को मिलता है। गधों का व्यापार इस मेले का सबसे बडा आकर्षण है। हर साल बंजारा जनजाति के द्वारा ४००० गधों का व्यपार होता है। गधों को इस अवसर के अनुसार रंग-बिरंगे कपडों से सजाया जाता है।एक तरफ यत्री इस दिन ट्रैक्टरों,ट्रकों और जीपों पर इस मेले का हिस्सा बनने आते हैं तो दूसरी तरफ कुछ यात्री खाने-पीने का इंतज़ाम करने में लगे रहते हैं। बाकी यत्री तो नाच-गाने में सक्रिय साझेदारी दिखाते हैं जिससे मेले की रौनक बढती है।आसपास के कृषि क्षेत्रों जैसे अहमदाबाद जिले के भाल और नलकन्था और खेड़ा जिले के चरोतर से ग्रामीण अधिक संख्या में नज़र आते हैं। यह गाँव सडकों की रखारख करता है जिससे यत्रियों को आने-जाने में कोइ दिक्कत नहीं होती है। चौबीसों घंटे परिवाहनों की सुविधा पायी जाती है। किसान से लेकर मज़दूर तक हर जाति और वर्ग मेले का हिस्सा बनने आते हैं। सारे यात्री, खासकर कि बंजारा जनजाति के लोग एकत्रित होते हैं। वे तीन मील की दूरी पर तंबू लगाते हैं और यहाँ स्टाल की भी व्यवस्था करते हैं, जिसमें भोजन और हस्तलिपि से सबका मनोरंजन होता है। इस मेले के सबसे लोकप्रिय पकवान लड्डु,कचरियु और 'खिचु'है,जो चावल के आटे से बना है। कई देहाती समूहों को मेले में भाग लेते देखा जाता है, विशेष रूप से "जथ वंजरा" समुदाय को देखा जाता है।

शुरू-शुरु में मेले में केवल हिंदुओं को भाग लेते देखा जाता था लेकिन अब तो मुसलमान भी बड़ी संख्या में भाग लेते नज़र आते हैं। दिन के दौरान वहाँ पर एक तेज़ हवा चलती है, लेकिन जब सूर्यास्त होता है,वास्तविक क्रिया शुरू होती है, स्टॉल जीवित होते हैं, संगीत-पार्टियाँ चलती हैं, सवारियाँ खुलती हैं और तब लोगों को असली मज़ा उठाते देखा जाता है।अद्भुत व्यवस्था की वजह से इस मेले की लोकप्रियता हर वर्ष दुगनी होती जा रही है। आधुनिक प्रौद्योगिकी एव्ं गुजरात पर्यटन वेबसाइट के निर्माण के कारण इसकी च्रर्चा खूब की जाती है। आमतोर पर वुथा में २००० लोगों की आबादी रेह्ती है, पर मेले के समय में तो २ लाख से ज़्यादा लोग इकट्ठा होते हैं। राजस्थान के प'पुश्कर मेले' कि प्रतिक्रिति के रूप से शुरु हुआ यह मेला आज गुजरात का सबसे मशहूर और सबसे अच्छी तरह संगठित मेलों में से एक माना जाता है।

कहा जाता है कि, गुजरात का वुथा मेला नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा!