उभयचरों की माँ-बाप द्वारा देखभाल

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उभयचर वर्ग के जन्तु अपने अंडों और बच्चों की देखभाल करने के लिए विभिन्न तकनीकों का उपयोग करते है। प्राणी विज्ञान के अनुसार उभयचर की देखभाल करने का अर्थ है- अंडों और बच्चों का तब तक ध्यान रखना जब तक वे स्वयं शिकारियों से बच सके। माँ-बाप द्वारा देखभाल डिंभकों के जीवन के लिए तीन तरह से फायदेमंद हो सकती हैं:-

१)माँ-बाप के उपस्थिति में उन्हें शिकारियों से रक्षा मिलती है २)उन्हें फंगल संक्रमण से सुरक्षा मिलती है ३) डिंभकों को अक्सर हिलाने से, उन्में कुरुपता रोखी जा सकती है

मेंढकों से ज़्यादा सैलामैंडर अपने बच्चों के प्रति रक्षात्मक भाव प्रकट करते हैं।

उभयचर वर्ग के सदस्य अपने सन्तानों का ध्यान दो तरीकों से रखते हैं-

१) माँ-बाप घोंसले, नर्सरी एवं आश्रय बनाकर अपने सन्तानों की रक्षा करते हैं। २) माँ-बाप स्वयं अपने अंडों का पालन-पोषण करते हैं।

उभयचरों को चार गणों में विभाजित किया जाता है और वह है:

१) सपुच्छा (कॉडेटा); २) विपुच्छा (सेलियंशिया); ३) अपादा (ऐपोडा) और ४) आवृतशीर्ष (स्टीगोसिफेलिया)

अपादा और सपुच्छा गण के प्राणियों में माँ-बाप ज़्यादतर अपने अंडों का ही ध्यान रखते हैं और बच्चे बाहर आने के बाद उन्हें छोड देते हैं। विपुच्छा गण के प्राणी गर्भावस्था के समय अपने अंडे और डिंभकों को अक्स्र्र पानी में लाते हैं।

अ) घोंसले, नर्सरी एवं आश्रय द्वारा देखभाल:-

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१) मेंढक और भेक के कुछ जाति अपने अंडों को एक स्वयं बनाए गए आश्रय में छोड़कर चले जाते हैं। बच्चे जवान होने तक वहीं रहते हैं।

  • पानी में कीचड़ का घोंसला -'हाइला फेबर' एक एसे मेंढक का नाम है जो ब्राज़ील में 'फेरेरो' के नाम से जाना जाता है। यह मेंढक तालाब के किनारे के उथले पानी में एक प्याले अथवा घाटी जैसा घोंसला बनाता है। स्त्री कीचड़ को निकालकर घोंसला बनाती है। इस घोंसले की गहराई साढ़े सात से दस सेंटीमीटर के बीच हो सकती है। जो कीचड़ स्त्री मेढक निकालकर घोसला बनाती है, उसी से ही उनके पनाह के चारों ओर एक परिपात्र दीवार बनायी जाती है जो पानी के सतह से ऊपर आते हुए दिखाई देती है । इस दीवार के द्वारा अंडों और डिंभकों को सुरक्षा मिलती है। परंतु भारी बारिश के कारण कभी-कभी यह दीवार नष्ट भी हो सकती है और डिंभक अपने घोसले को छोड़कर पानी में गिर सकते है।
  • पानी के समीप घोंसले (झाग के घोंसले/ फोम नेस्ट) - जापानी ट्री मेंढक इस तकनीक का उपयोग करते हैं। इस में नर और मादा मेंढक एक दूसरे को पकड़कर एक खाई के नज़दीक नम पृथ्वी में अपने आप को दफनाते है। इस के बाद दोनों मिलकर एक छेद अथवा कक्ष बनाते है जो जल स्थर से कुछ सेंटीमीटर ऊपर रहता है। मादा मेंढक इस छेद में अपने शरीर से झाग निकालकर भर लेती है और नर झाग के ऊपर अंडों को गर्भधान बनाता है। फिर दोनों मेंढक अलग होकर खाई के तरफ निकलते है। जब अंडे के अन्दर से शिशु बाहर निकलने के लिए तैयार होता है तब कक्ष में भरे हुए झाग द्रव बन जाता है और बच्चे इस पानी में आकर अपने शारिरिक विकास को पूरा करते है।
 
'रहेकोफोरुस स्क्लेगेली'
  • वृक्षों पर घोंसले (ट्री नेस्ट)- वृक्ष के मेंढक जैसे दक्षिण अमरीका के 'फाइलोमेडुसा', भारत के 'राखोफोरस मलाबरिकस' और अफ्रीका के 'खाइरोमान्टिस' अपने अंडों को वृक्षों के पत्तों पर छिपका देते है। वे वैसे ही पेड़ चुनते है जिनकी शाखाएं और पत्ते पानी से टीक ऊपर हो। डिंभकीट बाहर आने के बाद सीधे पानी में गिरते है।

'ओटोडाक्स', अपादा वर्ग का एक सदस्य है जो वृक्ष के एक छेद में अपने अंडें जमा कर लेता है। माँ-बाप दोनों निलय में रहकर बच्चों की सुरक्षा करते है और उन्हें नमी पहुँचाते हैं।

  • पतली पारदर्शक थैली समान घोंसला - 'फ्रिनीज़ालस बिरोइ' बड़े अंडे देती है जिन्हें एक झिल्लीदार थैली के अन्दर रखकर (यह थैली, स्त्री अपने शरीर से निकालती है )पहाड़ी नदियों में छोड़ा जाता है। बच्चे का पूरा शारिरिक विकास अंडे के अन्दर ही हो जाता है। इन प्राणियों में गलफड़े दिखाई नहीं देते है और इसलिए श्वसन पूंछ से होती हैं।

आ) प्रत्यक्ष अंडों का पालन

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  • दक्षिण अमेरिका के कुछ मेंढक (फाइलोबेट्स) धरती पर अपने अंडे जमा कर लेते हैं। डिभकीट बाहर आने के बाद अपने होठों के द्वारा अपने माता अथवा पिता के शरीर के पिछले तरफ अपने आप को छिपक लेते है। इस तरह वे अपने माँ-बाप के द्वारा आसानी से एक तलाब से दूसरे तालाब जा सकते हैं।
  • नर मेंढक द्वारा सुरक्षा किए गए अंडे - 'मांटोफिरने रोबस्टा' प्रत्येक बार सत्रह अंडे निकालकर आपस में उन्हें रज्जु के तरह जोड़ लेते हैं। इस लोचदार लिफाफे जैसे पुंज के ऊपर बैठकर नर बच्चे बड़े होने तक उनका ध्यान रखता है।
  • शरीर पर उठाए गए अंडे- 'ऑब्सटेट्रिक भेक' एक इस तरह का भेक है जो अपने अंडो को रज्जु के तरह आपस में जोडकर अपने पिछले दो पैरों के इर्द-गिर्द बांद लेता हैं।
 
'ऑब्स्टेट्रिक भेक' और उसके अंडे
  • शरीर के पृष्ठीय भाग पर थैली- 'हाइला ग्वेल्डी' नामक मेंढक अपने शरीर के पृष्ठीय भाग पर उत्पन्न होनेवाले थैली में भर लेते है। माता-पिता अंडे टूट्ने तक निरावरण रहते हैं।
  • कोशिका जैसी थैलियों में अंडे- 'पीपा अमेरिकाना' नामक उभयचर में स्त्री अपने शरीर के पृष्ठीय भाग पर अंडे रखकर उनकी देखबाल करती है। प्रजनन के मौसम में स्त्री की

त्वचा मोटी और संवहनी बन जाती है। मैथुन के बाद नर अंडों को स्त्री की पृष्ठीय भाग पर फैलाती है। अंडे त्वचा के नीचे डूबकर शरीर के अंदर स्थित थैली में भर जाते है। मातृक मांस-तंतु के भीतर शिशु नम और सुरक्षित रहता है। गर्भावस्था के समय हर एक डिंभक के शरीर पर एक चौड़ा पूंछ दिखाई देने लगता है। अस्सी दिन बाद, अंडा टूटकर मेंढक का डिंभकीट बाहर आ जाता है।

  • स्त्री मेढक के मुंह में अंडे- पश्चिमी अफ्रीका के 'हाइलमबेट्स ब्रेवीसेप्स' नामक उभयचर में स्त्री अपने अंडों को मुंह में आश्रय देती है। डिंभकीटों के रूपांतरण हो जाने के बाद माँ उन अंडों को बाहर निष्कासित करती है।
  • नर मेढक के मुंह में अंडे- दक्षिण अमरीका के 'रहिनोडर्मा डर्विनि' में नर अपने अंडों को अपने गरदन में उपस्थित हुए मुखर थैलियों के अंदर रखते हैं। माना जाता है कि अंडें बावन दिनों के बाद ही बाहर आते हैं।
  • अंडों को चारों ओर लपेटना- 'प्लीथोडोन' में अंडों को चट्टानों के नीचे जमा किया जाता है और स्त्री उन अंडों को अपनी साँप समान शरीर से लपेट लेती है। 'इकथोफिस'नामक उभयचर अंडोत्पन्न होते हैं और अपने अंडों को नम मिट्टी में जमा कर लेते है।

उभयचरों के अंडों के बाहर रक्षात्मक खोल नहीं होता। इस कारण बाढ़ अथवा प्राकृतिक आपदा आने पर, वे आसानी से नष्ट हो सकते हैं। यदि उनका सही तरीके से सुरक्षण् नहीं किया गया, तो वे घोंघें, सांप, मकड़ियों और कीड़ों का शिकार भी बन सकते है।

जब अंडों के समूह में एक अथवा दो फंगल रोग से व्याधिग्रस्त हो जाते है, तब उभयचर प्राणी उन्हें खा लेते है ताकी दूसरों पर उनका प्रभाव न पड़ॆ। फोरस्टर (१९७९) का कहना था कि इस तरह का रोग अंडों के लिए घातक हो सकता है। 'प्लीथोडोन' के त्वचा पर बैक्टीरियल समूह खोजा गया है जो इस प्राणी को कुकुरमुत्ता से बचाता है। यह प्राणी अपने अंडों की रक्षा करते है साथ में वह उन्हें बिमारियों से भी शरण देती है।

सांप्रदायिक घोंसले

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'अम्बीस्टोमा','हेमिडेक्टीलियम' और 'स्टेरोचिलुस' में एक अद्वितीय चीज़ देखने को मिलती है। इन प्राणियों में स्त्री उभयचर खुद का घोंसला ना बनाकर दूसरे स्त्रियों के साथ मिल-जुलकर एक ही घोंसले में अपने अंडे जमा करती है। अंडें जमा करने के बाद, स्त्री केवल अपने ही बच्चों की देखभाल करती है। कभी कभी स्त्री दूसरों के अंडें खाकर अपने कार्यों के लिए शक्ति प्राप्त करती है। इस तकनीक का यह फायदा है कि कम जगह होकर भी अधिक अंडों की साथ-साथ देखभाल की जा सकती है। वजन कम होने के कारण अक्सर स्त्री अपने बच्चों की देखभाल स्वय्ं नहीं कर पाती है ,जिस कारण वह घोंसले को छोड़कर चली जाती है। इन परिस्थितियों में दूसरी स्त्री आकर अनजाने में उनके अंडों का ध्यान रखती हैं।

डिंभकों को खिलाना

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जमैका के 'ओस्टोपिलुस ब्रुननेउस' में देखा गया है कि माँ अपने बच्चों को अंडें से बाहर आते ही खिलाती है। हर चार दिनों में माँ वापस आकर निषेचित अंडे जमा करती है जो डिंबक खा जाता है। जो भी अंडा बच जाता है, उस में से दो दिनों में ही नया डिंबक बाहर आता जो बाकीयों की तरह खाकर अपना शारीरिक विकास पूरा करता है।

शिकारियों से सुरक्षा

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'लेप्टोडक्टीलिद' और 'मिक्रोह्यलिद' मेंढकों में माँ अथवा बाप शिकारियों को धक्का देकर और काटकर अपने बच्चों की रक्षा करते हैं। 'हाइला रोसनगार्दी' में देखा गया है कि जब दूसरे मेढकों के पास में कम घोंसले होते है, तब पिता अपने बच्चों को परित्याग करके चले जाते है। परंतु यदि आसपास में किसी दूसरे मेंढक के घोंसले है , तो पिता स्वय्ं जाकर बाह्य अंडों को नष्ट कर देता है। 'डेस्मोनाथस' सैलामैंडरों में माँ अपने बच्चों को केवल भृगों से बचा सकती है और सांपों से नहीं। 'मिक्रोह्यलिद' शिकारियों के किलाफ बहुत आक्रामक रहते है और अपने बिल के प्रवेश को अपने जान से रक्षा करते है।

[1] [2]

  1. Jordan, E. L, and P. S Verma. Chordate Zoology And Elements Of Animal Physiology. New Delhi: S. Chand & Co., 1976. Print.
  2. https://books.google.co.in/books?id=eDKEKy5JJbIC&pg=PA516&lpg=PA516&dq=parental+care+in+amphibians&source=bl&ots=EuI4QFPXsw&sig=SGgYQzJrOJHI9UwGPQq4XLLVCL4&hl=en&sa=X&ved=0CE4Q6AEwCmoVChMIp8fm3pGayQIVUAmOCh39DQKr#v=onepage&q=parental%20care%20in%20amphibians&f=false