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श्रीपति
संपादित करेंश्रीपति जी एक भारतीय ज्योतिर्विद् और गणितज्ञ हैं। उनका जन्म १०१९ में हुआ था। उन्होनें १०३९ में 'धिकोटिदकरणा' नामक एक पुस्तक लिखे थे जिसमें सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के बारे में बीस पद्य हैं। १०५६ में श्रीपति जी ने 'ध्रुवमानसा' नामक पुस्तक लिखा हैं जिसमें १०५ पद्य हैं जो ग्रह देशान्तर की गणना, ग्रहण और ग्रहण और ग्रहों के पारगमन के बारे में बताते है। खगोल में उनका प्रमुख कार्य 'सिध्दान्तशेखरा' हैं जिसमें १९ अध्ययें हैं और 'गणिततिलका',एक अंक-संबंधी निबंध जिसमें १२५ पद्य हैं श्रीधरा के कार्य पर आधारित हैं।
प्रारंभिक जीवन
संपादित करेंश्रीपति जी के पिता का नाम नागदेवा है (जो कभी-कभी नामदेवा नाम से भी पुकारा जाता था) और उनके दादाजी का नाम केशवा था। श्रीपति जी ज्योतिषशास्त्र, खगोल और गणित के लल्ला लेख की शिक्षण का अनुचर था।उन्होंने अपने गणित के कार्य में, मन से ज्योतिष का प्रयोग
किया है, जैसे कि क्षेत्रों के अध्ययन। खगोल में उनका कार्य उनके ज्योतिषशास्त्र के लिये आधार के रूप में लिया गया था। श्रीपति जी ११वी शताब्दी के बहुत प्रसिध्द भारतीय गणितज्ञ माने जाते हैं।
कार्य
संपादित करेंसिध्दान्तशेखरा में १३,१४ और १५ अध्ययों के शीर्शक हैं अंकगणित, बीजगणित और क्षेत्र। १३वी अध्यय में अंकगणित, माप और प्रतिबिंब गणना पर ५५ पद्य लिखे गये है। १४वी अध्यय में बीजगणित के बारे में बताया गया हैं जिसमें बिना जांच के बीजगणित के कई नियमें दिये हुए हैं। यह सब बीजगणित के प्रतीकों में नहीं दिये गये बल्कि मौखिक रूप में दिये गये हैं। इस अध्यय के ३,४ और ५ पद्य में श्रीपति जी ने संयोजन, घटाव , गुण्न, विभाजन, स्क्वायर, स्क्वायर रूट, क्यूब, क्यूब रूट के नियम बतायें हैं। उन्होंने इस अध्यय में क्वाड्राटिक ईक्वेशन का हल करने का नेयम बतायें हैं। अंकगणित में श्रीपति जी का दूसरा काम है प्रथम श्रेणी के समकालिक मध्यवर्ती समीकरण, जिसमें उपाय ढूँढने का नियमें बताये गये हैं, जो भ्रह्मगुप्त के काम के समान है।
श्रीपति जी सबसे ज़्यादा प्रसिध्द ज्योतिषशास्त्र में पायें हैं और यही उनका सबसे प्रसिध्द योगदान माना जाता हैं। उन्होंने मराठी में अपने कार्य का समीक्षा लिखा हैं। उन्होंने अपना कार्य 'ज्योतिसा' में घर विभाजन का एक मुख्य तरीके का परिचय दिया है जिसका नाम हैं 'श्रीपति भवा'।
उनका ज्योतिष पर एक अन्य काम है दैवज्नवल्लभा जो कुछ इतिहासकार मानते है कि श्रीपति ने लिखा है पर कुछ और मानते है कि यह काम वरहमिहिरा का है। अभी तक कोई यह साबित नहीं कर सका कि इन दोनों में से किसने यह लिखा, और यह भी कि यदि वह लेखक एक और ज्योतिष है।
ज्योतिष में श्रीपति का एक और काम है जटकापद्धति या श्रिपतिपद्धति जिसमें आठ अध्ययन है। जेनेथियालोजी एक विज्ञान है जो खगोल का सबसे पुराना अंश माना जाता हैं जो मनुष्य के जन्म के पहले ही उसके ग्रहों के स्थान द्वारा उसकी राशी पता चल जाता है जब खोख में प्रवेश किया जाता है। यह भी इन्ही का काम था। यह अत्यधिक लोकप्रिय था, पांडुलिपियों, टिप्पणियों की बड़ी संख्या के रूप में, और नकल फाइलों। उनकी मृत्यु १०६६ में हो गयी थी।