आपका काम मुझे अच्छा लगा। ज्यादा चित्रो और विकि लिंक के प्रयोग करते तो पाठको का और मदद होता। वर्तनीय गलतिया भी बहुत कम पाया जाता है। व्याकरण और शब्दो का प्रायोग से मै ज्यादा प्रभावित नही हूँ। बीच बीच मे अंग्रेजी शब्दो का प्रयोग नही करते तो अच्छा होता। और विषय के बारे मे और भी जानकारी संग्रह कर सकते थे। PRIYA SURESH (वार्ता) 09:54, 16 जनवरी 2016 (UTC)


लुई पाश्चर का जन्म फ्रांस में 1822 में हुआ था। लुई पाश्चर का नाम हमेशा के लिए चिकित्सा के इतिहास मे एकजुट है । उनके साथ साथ अलेक्जेंडर फ्लेमिंग , एडवर्ड जेनर , रॉबर्ट कॉख और यूसुफ लिस्टर का चिकित्सा के इतिहास मे बहुत महत्व है । पाश्चर की खोज कीटाणुओं की है लेकिन उनकी खोज दवा बदलने और उसका नाम हमेशा के लिए क्रीम दूध में हर दिन के आधार पर अमर होना देखना चाह्ते थे - उनके सम्मान में नाम दिया है।

पाश्चर तीन कारणों के लिए महत्वपूर्ण है: 
पाश्चर हवाई रोगाणुओं को रोग के कारण होने का साबित किया। पाश्चर ने एडवर्ड जेनर के काम पर जाँच करके नए वाक्सीन का अविष्कार किया। पाश्चर के कैरियर ने उस समय के चिकित्सा स्थापना की रूढ़िवादी दिखाई।
जवान आदमी होते हुए , पाश्चर की पढाई इकोले नॉर्मले में हुआ था।  1843 में, वह एक शोध रसायनज्ञ बन गया। 1854 में,उन्होंने ऐसी उन्नती पाई कि सिर्फ 32 वर्ष की आयु में वे लिले विश्वविद्यालय में विज्ञान संकाय के डीन बन गए। उस समय, फ्रांस में शराब निर्माण का केंद्र लिले था।  1856 में, बिगो नामक आदमी  पाश्चर से मिलने आए थे। उनके कारखाने में चुकंदर से शराब बनाया जाता था। बिगो की समस्या यह थी कि उनकी किण्वित बियर खट्टा हो चुका था और इस कारण उसे फेंक दिया गया था। ।उसके व्यापार में यह एक दुर्घटना बन चुका था।  बिगो ने पाश्चर से इसका कारण पता लगाने के लिए कहा। 
वत्स से नमूनों का विश्लेषण करने के लिए एक माइक्रोस्कोप का उपयोग करने के बाद, पाश्चर हजारों सूक्ष्म जीवों को देख सकता था ।  उन्होंने कहा कि उन्हे विश्वास हो गया था कि वही सूक्ष्म जीवों बीयर खट्टा हो जाने के लिए जिम्मेदार थे।  वे सड़न का परिणाम न थे बलकि वे सड़न  के कारण माने गए थे। 
पाश्चर ने दूध, शराब और सिरका के रूप में अन्य तरल पदार्थ का अध्ययन करके इस विषय पर अपना काम जारी रखा।  1857 में वह पेरिस में इकोले नॉर्मले वैज्ञानिक अध्ययन के निदेशक नियुक्त किए गए थे।  1857 और 1859 के बीच, पाश्चर को यह विश्वास हुआ कि हवा में मंगाई कि रोगाणुओं के करणा तरल पदार्थ दूषित हो ऱहा था। चिकित्सा स्थापना के सभी लोग ने इसी कारण उनके मज़ाक उडाया। पाश्चर को सार्वजनिक रूप से अपमानित किया गया था बल्कि हार मानने के बजाय उन्होने अपने आप को सही साबित करने के लिए परीक्षण चिंतन करना शुरू कर दिया।  उन्होंने यह साबित किया की हवा मे रोगाणुओं समान रूप से वितरित नहीं थे और इन रोगाणुओं सड़न उत्पादन कर सकते थे। उन्होने यह भी पता लगाया कि उबालने पर इन सूक्ष्म जीवों को मारा जा सकता था। अप्रैल 1864 में, पाश्चर पेरिस की विश्वविद्यालय में प्रसिद्ध वैज्ञानिकों की एक सभा के सामने अपने विश्वासों को प्रस्तुत किया। उन्होने संदेह से परे अपने मामले को साबित कर दिया। मौजूद लोगों में से कुछ लोग ने उनका यकीन करने से मना कर दिया। उन्हे यह विश्वास था कि सड़न भीतर से आता था और न सूक्ष्म जीवों के कारण से नही। डॉ चार्लटन बस्तिआन भी उनका विश्वास करने से इनकार कर दिया।  1865 तक, पाश्चर के काम केवल बीयर, वाइन और दूध से शामिल था। 1865 में, उन्हे अपनी पहली रोग 'पेब्रीन' की जांच करने के लिए कहा गया था जो रेशम कीड़ा उद्योग पर प्रभावित था।  एक साल के अंदर पाश्चर ने यह स्थापित कर दिया की रोग एक जीवित जीव की वजह से उत्पन्न होती है और रोगाणुओं का असर मनुष्य के साथ-साथ बीयर और रेशम के कीड़ों पर भी हो सकता है। इस अर्थ में, पाश्चर का मानना यह था कि रोगाणुओं इंसानों के बीच रोगों का प्रसार कर सकते थे। पाश्चर की तीन बेटियों की मृत्यु 1859 और 1865 के बीच मे हुई थी ।  दो बेटियों की मृत्यु टाइफाइड से हुई थी और एक बेटी की मृत्यु मस्तिष्क ट्यूमर से हुआ था।

1865 में, मार्सिले एक हैजा महामारी का शिखार बना। पाश्चर ने इस रोग को विस्तार करने रोगाणु के बारे मे विचार पाने की उम्मीद में एक अस्पताल में काफी सारे प्रयोगों करने कि कोशिश की थी लेकिन वह असफल रहा। 1868 में, पाश्चर एक मस्तिष्क रक्तस्त्राव से पीड़ित हुए जिसके कारण वे अपने शरीर के बाईं ओर का प्रयोग नही कर सके। इसी कारण उन्हे काम करने मे बाधा प्रकट हुई परंतु उनके 1868 तक किए हुए काम ने कई सारे युवा वैज्ञानिकों को उस क्षेत्र मे काम करने के लिए प्रेरित किया था । पाश्चर मनुष्य को रोग का शिखार बनने से रोकने का तरीके खोजने के द्वारा अपने काम को विकसित किया। उन्हे खुद की इच्छा से ज्ञान प्राप्त करने मे विकसित थे , लेकिन उन्हे देशभक्ति से भी प्रेरना मिली थी। पाश्चर ने अपनी टीम मे दो प्रतिभाशाली युवा डॉक्टर, एमिल रॉक्स और चार्ल्स चेंब्ररलेंड को पेश किया। इस टीम की पहली काम चिकन हैजा की रोग पर था। इस रोग के कारण कई पोल्ट्री किसानों पर बुरा प्रभाव पढ रहा था। पाश्चर को एडवर्ड जेनर द्वारा चेचक के बारे में किए गए कार्य के बारे में जानकारी थी। पाश्चर ने समझाया कि अगर चेचक के लिए एक टीका पाया जा सकता है, तो सभी रोगों के लिए एक टीका पाया जा सकता है। 1880 की गर्मियों में, वह संयोग से एक टीका पाया। चेंबरलेंड ने कुछ मुर्गियों को चिकन हैजा के कीटाणुओं से टीका दिया था और इससे मुर्गियों की म्र्त्यु नही हुई थी। इस कार्य के द्वारा पाश्चर ने टीके की खोज की थी। अप्रैल 1881 में, पाश्चर उनकी टीम के साथ इसके खिलाफ एक टीके का उत्पादन किया था और उन्होने एंथ्रेक्स कीटाणुओं को कमजोर करने के लिए एक रास्ता मिल जाने का घोषणा की। उसकी प्रसिद्धि के बावजूद भी चिकित्सा जगत में अभी भी कुछ लोग थे जो पाश्चर की मज़ाक उड़ाते थे। रोसिग्नोल "पशु चिकित्सा प्रेस" के संपादक थे और 1882 में वह अपने एंथ्रेक्स टीके की एक सार्वजनिक परीक्षण करने के लिए पाश्चर को चुनौती दी। 1882 मई मे परीक्षा साठ भेड़ के आयोजन से हुआ था। इस परीक्षा से यह साबित हो गया कि पाश्चर उसकी वैक्सीन की शक्तियों के बारे मे बढ़ा चढ़ा कर बात नहीं कर रहा था। ग्रेट ब्रिटेन में "टाइम्स" मे पाश्चर को "फ्रांस के वैज्ञानिक गौरव मे से एक" कहा जाता है। पाश्चर और उनकी टीम के ध्यान अब रेबीज की बीमारी की ओर मुड गया । रेबीज की रोग फ्रांस में अधिक से अधिक आम होता जा रहा था। पाश्चर की टीम रोगाणु की पहचान नहीं कर सकती थी लेकिन अंत मे उन्होने वे रेबीज के लिए एक टीके का उत्पादन किया। टीका पहले जानवरों पर इस्तमाल किया गया था। 1885 में, एक जवान लड़का, यूसुफ मैस्टर को एक पागल कुत्ते ने काट लिया था और उसे पाश्चर के पास लाया गया था। फिर पाश्चर ने उसकी अपरीक्षित वैक्सीन का प्रयोग उस लडके पर किया था। लड़के का जान बच गया और पाश्चर ने रेबीज के लिए एक नया टीका पाया था । तीन महीने बाद जब पाश्चर ने लड़के की जांच की उसे पता चला कि वह अच्छे स्वास्थ्य मे है । अंत मे पाश्चर अपनी कार्य मे सफल रहा। biography/Louis-Pasteur discovery-of-pasteurization

Louis Pasteur en 1857
Tableau Louis Pasteur