भरतनाट्यम एक एसा प्रकार का न्रित्य है जहाँ कलाकार का लक्ष्य, अपने दर्शको को अपने न्रित्य का अर्थ बताना होता है। यह अर्थ कई प्रकार के चाल, मुद्राओं, भाव,आदि से अवगत कराया जा सकता है। अभिनय दरपन नामक पुराण मे आंगिक अभिनय के बारे मे काफि जानकारि दी गयी है और कहा गया है कि बिना हाव भाव, अभिव्यंजना, मुद्राओं, आदि के न्रित्य न्रित्य नही होता है। यह एक तथ्य है कि है एक व्यक्ति कि विशेषता उसके निकाय के परिवहन से ज्ञात होता है। किसी भी नर्तक के चाल ढाल को भेदा कहा जाता है। अभिनय दरपन के अनुसार चार प्रकार के भेदा होते है : ग्रिव भेदा, शिरो भेदा, दृष्टि भेदा एवं पाद भेदा। हर भेदा के लिए एक श्लोक लिखी गयी है।

ग्रिव भेदा संपादित करें

ग्रिव का अर्थ गरदन होता है। यह भेदा हमे गरदन के विभिन्न संचलन कि जानकारी देता है। श्लोक: "सुन्दरीचा तिरसचिना ततथैव परिवरतिता प्रकम्पितम च भावग्नै नैय ग्रिव चतुर्विधा" ग्रिव भेदा ४ प्रकार के होते है: १) सुन्दरी: गरदन को क्षैतिज रूप से इधर-उधर हिलाना २) तिरसचिना: गरदन को साँप कि तरह उपर कि ओर हिलाना। ३) परिवरतिता: गरदन को अर्ध चन्द्र जैसा आकार बनाते हुए दाए से बाए हिलाना ४) प्रकम्पिता: गरदन को कबूतर के समान आगे-पीछे हिलान

शिरो भेदा संपादित करें

शिरो का अर्थ सिर होता है। यह भेदा हमे सिर के विभिन्न संचलन कि जानकारी देता है। श्लोक: "समम उध्वाहितम अधोमुखम आलोलितम धुतम कम्पितमच पराव्रित्तम उक्शिप्तम परिवाहितम नवदाकतितम शीर्श्म नाट्य शास्त्र विशारदेही" शिरो भेदा ९ प्रकार के होते है: १)समम: सिर को स्तब्ध रख्नना २)उध्वाहितम:सिर को ऊंचा करना ३)अधोमुखम:सिर को निचा करना ४)आलोलितम:सिर को गोल घुमाना ५)धुतम:सिर को दाए-बाए घुमाना ६)कम्पितमच:सिर को उपर-निचे करना ७)पराव्रित्तम:सिर को दाई या बाई ओर घुमाना ८)उक्शिप्तम:सिर को किसी एक दिशा मे घुमाकर ऊंचा करना ९)परिवाहितम:सिर को एक दिशा से दूसरी दिशा मे ज़ोर से हिलाना

दृष्टि भेदा संपादित करें

इसे कान्था भेदा भी कहा जाता है। इस भेदा से हमे आंखो के विभिन्न संचलन कि जानकारी प्राप्त होती है। श्लोक: "समम आलोकितम साची प्रलोकिता निमीलिते उल्लोकिता अनुव्रिते च ततचैव अवलोकितम इत्यस्तौ दृष्टि भेदह कीर्तित पूर्व सूरभी" दृष्टि भेदा ८ प्रकार के होते है: १)समम:सीधा देख्नना २)आलोकितम:आंखो को गोल घुमाना ३)साची:आंखो के कोनो से देख्नना ४)प्रलोकिता:दाई और बाई ओर देख्नना ५)निमीलिते:आंखो को आधा बंद रख्नना ६)उल्लोकिता:उपर कि ओर देखना ७)अनुव्रिता:जल्दी उपर-नीचे देख्नना ८)अवलोकिता:नीचे कि ओर देख्नना

पाद भेदा संपादित करें

यह भेदा भरतनाट्यम के विभिन्न प्रकार के पद संचलन का वर्णन करता है। श्लोक: "मनडलो उथ्प्लवनम चैव भ्रमरी पादचारीका चतुर्ध पादा स्युतेश्याम लक्शनम उच्यते" पाद भेदा ४ प्रकार के होते है: १)मनडलो:पैर साथ जोडकर सीधे खडे रहना २)उथ्प्लवनम:दोनो पैरों से आगे या पीछे कि ओर छलांग लगाना ३)भ्रमरी:गोल घुमना या चक्कर करना ४)पादचारी:आगे या पीछे कि ओर कदम रख्नना

निष्कर्ष संपादित करें

भेदा का अध्ययन हर किसी नर्तक के लिए आवश्यक है। इसकि जानकारी ओर उप्योग बहुत ज़रूरी है। यही एक नर्तक को एक कलाकार मे बदलता है और अपनी कला मे संपूर्ण बनाता है।इन भेदो से ही एक भरतनाट्यम नर्तक के शारीरिक हाव-भाव का विकास होता है। इनका उप्योग न्रित्य एवं नाटक मे भी किया जाता है। कुछ ही वर्षों पहले इनका लिखित वर्णन किया गया था। पुराने ज़माने मे लोग इसे मौखिक रूप मे पढाया करते थे।

संदर्भ संपादित करें

[1] [2] [3]

  1. Bharatha Darshanam Stage 2 , published by Temple of Fine Arts International
  2. Introduction to Bharatanatyam by Jayalakshmi Eshwar
  3. Basic principles of Bharatanatyam by Jayalakshmi Eshwar