शब्द

परिभाषा :-एक या अनेक वर्णों की सार्थक ध्वनि ही शब्द है अथवा ऐसा स्वतंत्रत वर्ण समूह, जिसका एक निश्चित अर्थ हो शब्द कहलाता है।

प्रयोग और अर्थ की दृष्टि से यह भाषा की सार्थक लघु इकाई है।किसी भी भाषा में प्रयोग हो रहे या हो सकने वाले सभी शब्दों के समूह को उस भाषा का शब्द भंडारण कहते हैं। हिंदी भाषा का शब्द भंडार बहुत ही समृद्ध एवं व्यापक है।

भाषा वैज्ञानिकों नें शब्दों को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया है . स्रोत के आधार पर . व्युत्पत्ति के आधार पर

. प्रयोग /व्याकरण के आधार पर .अर्थ noके आधार पर

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क. स्रोत के आधार पर

1. तत्सम:- उसके समान अर्थात्‌ संस्कृत के समान।(अग्नि, नेत्र, जल, पवन आदि)

2. तद्भव:- उससे(संस्कृत से) होना या बनना।(नाक - नासिका से, घी- घृत से आदि)

3. देशज:- अज्ञात स्त्रोत वाले शब्द जैसे:- मूल लोक भाषाओं के शब्द(रोटी, पेड़, दाल, लोटा आदि)

4. विदेशज:- अरबी, फारसी, अंग्रेजी आदि भाषाओं से आये हुए शब्द ही विदेशज या आगत शब्द कहलाते हैं।(कार, बस, आदमी, पैन आदि)

5. अनुकरणात्मक:- अनुकरण से बने शब्द (फट-फट, खट-खट, झुनझुना आदि)

6. द्विज:- विभिन्न भाषाओं के मिश्रण से बने शब्द( डबलरोटी, लाठीचार्ज, रेलगाड़ी आदि)।

ख. व्युत्पत्ति के आधार पर

एक शब्द से दूसरा शब्द बनने की प्रक्रिया को व्युत्पत्ति कहते हैं

व्युत्पत्ति (बनावट) के आधार पर शब्द के तीन भेद हैं- रूढ़, यौगिक तथा योगरूढ़।

रुढ़:-

जो शब्द किन्हीं अन्य शब्दों के योग से नहीं बने हों तथा जिनके सार्थक खण्ड न किये जा सकें व किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते हों, वे रूढ़ कहलाते हैं। जैसे- नीला, घर, कल, पैसा, तब आदि। इनमें न, घ, क, प, त, को खण्डों में विभाजित करने पर कोई अर्थ नहीं मिलता है। अतः ये रुढ़ शब्द हैं।

यौगिक:-

जो शब्द दो सार्थक शब्दों के योग से बने तथा उनके सार्थक खण्ड हो सकें उन्हें यौगिक कहते हैं। जैसे-

घुड़सवार, देवराज, यथास्थिति आदि।

देवालय=देव+आलय, राजपुरुष=राज+पुरुष, हिमालय=हिम+आलय, देवदूत=देव+दूत आदि। ये सभी शब्द दो सार्थक शब्दों के मेल से बने हैं।

यौगिक शब्द का एक प्रकार है, आवृत्त्यात्मक:- अर्थात आवृति से उत्पन्न।

पूर्ण पुनरुक्ति:- तेज-तेज, गरम-गरम, ताजा-ताजा

समानार्थक शब्दों से:- लोभ-लालच, जात-पात, शादी-ब्याह, काम-काज

समवर्गीय से आवृति:-

(1. लगभग समान अर्थ-

खेल-कूद, पेड़-पौधे)

(2. भिन्न अर्थ- भाई-बहिन, दवा-दारु, सुख-दुःख।

योगरुढ़:-

वे शब्द, जो दो शब्दों के योग से तो बनें हैं, परंतु सामान्य अर्थ को न प्रकट कर किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते हैं, योगरूढ़ कहलाते हैं।

जैसे-पंकज, दशानन आदि। पंकज=पंक+ज (कीचड़ में उत्पन्न होने वाला) सामान्य अर्थ में प्रचलित न होकर कमल के अर्थ में रूढ़ हो गया हैl जलज=जल +ज (जल में उत्पन्न होने वाला) हालांकि मेंढक, सिंघाड़ा, मछली आदि भी जल में ही उत्पन्न होते हैं, लेकिन यहां जलज का अर्थ केवल कमल ही होगा। अतः जलजशब्द योगरूढ़ है। इसी प्रकार दश (दस) आनन (मुख) वाला रावण के अर्थ में प्रसिद्ध है।

ग. प्रयोग /व्याकरण के आधार पर:-

वाक्य में प्रयोग के आधार पर शब्दों के नौ भेद हैं:-

1-संज्ञा, 2-सर्वनाम, 3-विशेषण, 4-क्रिया, 5-क्रिया विशेषण, 6-संबंधबोधक, 7-समुच्चयबोधक 8-विस्मयादिबोधक और 9-निपात।

ईन उपर्युक्त प्रकारों को भी बांटा गया है उदहारण-रूपांतरण के आधार पर -

1.विकारी शब्द 2.अविकारी शब्द

1-विकारी शब्द :- लिंग, वचन, कारक, काल, पुरुष आदि के कारण परिवर्तित होने वाले शब्द विकारी शब्द कहलाते हैं| इनमें संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया शब्द आते हैं|


उदहारण विकारी शब्द : जैसे-कुत्ता, कुत्ते, कुत्तों, मैं मुझे, हमें अच्छा, अच्छे खाता है, खाती है, खाते हैं। इनमें संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया विकारी शब्द हैं।

2-अविकारी शब्द : जिन शब्दों के मूल रूप में किसी भी कोई में परि भी वर्तन नहीं होता वे अविकारी शब्द कहलाते हैं। जैसे-यहाँ, किन्तु, नित्य और, हे अरे आदि। इनमें क्रिया-विशेषण, संबंधबोधक, समुच्चयबोधक विस्मयादिबोधक और निपात आदि हैं।

घ. अर्थ के आधार पर:-

अर्थ की दृष्टि से शब्द के दो भेद हैं- 1. सार्थक 2. निरर्थक

1. सार्थक शब्द : जिन शब्दों का कुछ-न-कुछ अर्थ हो वे शब्द सार्थक शब्द कहलाते हैं। जैसे-रोटी, पानी, ममता, डंडा आदि।

2. निरर्थक शब्द : जिन शब्दों का कोई अर्थ नहीं होता है वे शब्द निरर्थक कहलाते हैं। जैसे-रोटी-वोटी, पानी-वानी, डंडा-वंडा;इनमें वोटी, वानी, वंडा आदि निरर्थक शब्द हैं। निरर्थक शब्दों पर व्याकरण में कोई विचार नहीं किया जाता है।

अर्थ के आधार पर शब्दों के अन्य भेद भी किये जाते हैं जो निम्नलिखित हैं :-

1. एकार्थी :- इनका एक ही अर्थ होता है (व्यक्तिवाचक  संज्ञा, स्थानों के नाम तथा कुछ संज्ञा शब्द इसी कोटि के शब्द हैं :- महात्मा गाँधी, गंगा, जींद, अहंकार आदि)

2. अनेकार्थी :- ऐसे शब्दों के एक से ज्यादा अर्थ निकलते हैं, यमक व श्लेश अलंकार तो इन्हीं पर आधारित होते हैं(वारी, मनका, बस, उत्तर, फल, कनक आदि)

3. विपरितार्थी :- एक दूसरे के उल्टे अर्थ होते हैं इन्हें विलोम शब्द भी कहते हैं (अमीर-ग़रीब, ऊँच-नीच, पाप-पुण्य आदि)

4. समानार्थी :- अनेक शब्दों का एक ही अर्थ निकलता है, इन्हें पर्यायवाची भी कहते हैं (जल, सलिल, वारी आदि सभी का एक ही अर्थ है-जल)