सदस्य:Dr. satendra Kumar jain/प्रयोगपृष्ठ

हिन्द आर्य भाषा परिवार में कुछ परिवर्तन अपेक्षित

हिन्द-आर्य भाषाएँ हिन्द-यूरोपीय भाषाओं की हिन्द-ईरानी शाखा की एक उपशाखा हैं, जिसे 'भारतीय उपशाखा' भी कहा जाता है। इनमें से अधिकतर भाषाएँ प्राकृत से जन्मी हैं। संस्कृत की व्युपत्ति के अनुसार संस्कृत संस्कारित की हुई भाषा है, यह छान्दस भाषा का संस्कारित रूप है। जबकि प्राकृत भाषा स्वाभाविक भाषा का रूप है। वर्तमान में भारतीय भाषाओं की उत्पत्ति अपभ्रंश भाषा से मानी गई है। और अपभं्रश भाषा प्राकृत भाषा से भ्रष्ट हुई भाषा है। जिसे प्राकृत का विकसित रूप साहित्यकारों ने माना है। जबकि संस्कृत का भ्रष्ट रूप संस्कृत भाषा में अशुद्धता की दृष्टि से देखा जाता है। इसे विकसित रूप नहीं माना जाता। इस कारण से संस्कृत किसी अन्य भाषा की उत्पत्ति करने में अक्षम है। यह प्राकृत भाषा के समान छान्दस भाषा से निःसृत मानी गई है। इसकारण प्राकृत भाषा के अधिकांश शब्दों की समानता संस्कृत शब्दों के साथ होना स्वाभाविक है। जो शब्द संस्कृत भाषा में प्रयोग नहीं किये जाते हैं परन्तु वर्तमान में हिन्दी भाषा में प्रयुक्त है, जिनकी समीपता प्राकृत भाषा से अधिक है। जैसे गो शब्द का गाय अथवा गउ रूप संस्कृत भाषा में प्रयुक्त नहीं है, फिर भी वर्तमान में गाय और गउ शब्द का प्रयोग अधिकता से जनसामान्य में हो रहा है। प्राकृत भाषा में गो शब्द को गउ और गाय आदेश होता है। जिससे प्राकृत भाषा में दोनों शब्द प्राप्त होते हैं और वर्तमान में अन्य भारतीय भाषाओं में प्रचलित भी है। अतः प्राकृत भारतीय भाषाओं की जननी हो सकती है तथा संस्कृत प्राकृत भाषा की सहयोगी भाषा के रूप में है। हिन्द-आर्य भाषाओं में आदि-हिन्द-यूरोपीय भाषा के 'घ', 'ध' और 'फ' जैसे व्यंजन परिरक्षित हैं, जो अन्य शाखाओं में लुप्त हो गये हैं। इस समूह में यह भाषाएँ आती हैं : संस्कृत, हिन्दी, उर्दू, बांग्ला, कश्मीरी, सिन्धी, पंजाबी, नेपाली, मराठी, गुजराती असमिया, राजस्थानी, डोंगरी, नागपुरी, अवधि, मैथिली, भोजपुरी, अवन्तिजा, मागधी, हरियाणवी, मेवाती, पहाड़ी, बुन्देली, बघेली, मारवाडी, मेवाडी, हाडौती, मालवी, गडवाली, ब्रज इत्यादि।