ऐरीन जोलियट क्यूरी
ऐरीन जोलियट क्यूरी
ऐरीन और मेरी क्यूरी
फ्रेडरिक जोलियट और ऐरीन जोलियट क्यूरी

ऐरीन क्यूरी का जन्म १२ सितंबर १८९७ में फ्रान्स की राजधानी पारीस में हुआ। उनकी माँ प्रसिद्ध वैज्ञानिक मेरी क्यूरी और पिता पियरे क्यूरी थे। ऐरीन क्यूरी के जन्म के बाद उनके माता-पिता की ख्याति बढ गयी थी। क्योंकि १९०३ में उनके माता-पिता को नोबल पुरस्कार मिल गया।

बचपन संपादित करें

बचपन में ऐरीन बहुत लज्जालू थी। उनके माता-पिता शोध कार्य में बहुत व्यस्त थे, इसलिए अपनी बेटी की देखरेख में कमी पड गयी थी। पियरे क्यूरी के पिता अर्थात् ऐरीन क्यूरी के दादा ने उनके बचपन की देखरेख का दायित्व ले लिया। वे एक सेवा मुक्त डाक्टर थे। सहसा वे ऐरीन क्यूरी के अच्छा दोस्त और पहला अध्यापक बन गये। वे दोनों आपस में बहुत मिलजुलकर आगे बढ गये।

शिक्षा-दीक्षा संपादित करें

ऐरीन क्यूरी को स्कूल में भेजा। उस समय पारीस में एक अच्छा स्कूल मिलना बहुत मुश्किल था। घर से बहुत दूर एक स्कूल में भरती मिली।

आठ वर्ष की उम्र में उनके पिता की मृत्यु हुई। वह एक दुर्घटना थी। पियरे की मृत्यु के बाद उनके पिता अपनी पोतियों और पुत्र-वधु के साथ रहने का निश्चय किया। ऐरीन क्यूरी को एक बहन ईव का जन्म १९०४ में हुआ था।

ऐरीन के बौद्धिक कार्य में उनके दादा का बडा हाथ था। अपनी पोती को विज्ञान की ओर ले जाने में वे बहुत प्रयत्न करते थे। लेकिन कमबख्ती उनके पीछे, पीछे थी। उनके दादा की मृत्यु १९१० में हुई। तब ऐरीन केवल बारह साल की थी।

अपने ससुर की मृत्यु के बाद मेरी क्यूरी अपनी बच्चियों को पढाने में बहुत ध्यान रखने लगीं। अपने शोध कार्य के साथ अपनी बच्चियों को सभी तरह के ज्ञान आर्जित करने केलिए प्रेरित किया।

मेरी क्यूरी ने अपने कुछ साथियों को लेकर एक नया पाठ्यक्रम शुरू किया। इसप्रकार ऐरीन और अन्य नौ विद्यार्थियों के साथ एक नयी अकादमी शुरू की। विज्ञान को प्रमुख स्थान देकर पढाई शुरू की।

भौतिक शास्त्र की अध्यापिका स्वयं मेरी क्यूरी थीं। रासायनिक शास्त्र का अध्यापक जीन बापटिस्ट पेरीन थे। बाद में उनको भौतिक शास्त्र में नोबल पुरस्कार मिला था। गणित शास्त्र का अध्यापक महान भौतिक वैज्ञानिक पॉल लाडवीन थे। अपनी माता ने ही ऐरीन को भौतिक शास्त्र पढाया। बाद में ऐरीन स्वयं अपनी माता की लाब में सहायक बन गयी।

इसप्रकार के महान व्यक्तियों के क्लास में बहुत कुछ विद्यार्थियों ने पढा। विज्ञान के प्रति ऐरीन बहुत तत्पर थी। इसलिए वह कठिन परिश्रम करती रही। विद्यार्थियों को पढाई के अलावा, अधिक कर्तव्य भी अध्यापक देने लगे। उन सब कर्तव्यों को ऐरीन ने बहुत खुशी से किया। अंत में विश्वविद्यालय ने उनको स्वीकृति दी।

यात्रा, ऐनस्टीन और युद्ध संपादित करें

१९११ में ऐरीन ने स्टोकहोम, स्वीडन आदि प्रदेशों में यात्रा की। अपनी माता के नोबल पुरस्कार समारोह में भाग लेना का अवसर भी ऐरीन को मिला। इसके बाद चौदह वर्षीय ऐरीन ने बहुत यात्रा की। अपनी यात्रा के ज़रिये उन्होंने बहुत ज्ञान प्राप्त किया। गणित शास्त्र, भौतिक शास्त्र आदि में अधिक ध्यान दिया। इसके साथ ही साथ पुस्तकों की पढाई भी थी। इस समय ऐरीन की माता बीमार पड गयी।

१९१२ की गर्मी के दिनों में अपनी माता का दोस्त आलबर्ट ऐनस्टीन से ऐरीन की मुलाकात हुई। भौतिक शास्त्र में पन्द्रहवीं उम्रवाली ऐरीन की रुचि देखकर बहुत प्रभावित हुए।

सितंबर १९१३ को ऐरीन पारीस में लौटकर कालेज में अध्ययन शुरू किया। उनके आने के एक ही साल में पहले लोक युद्ध का आरंभ हुआ।

युद्ध में सेवाकार्य संपादित करें

मेरी क्यूरी ने जर्मनी में चलनशील रेडियोलजी एकांक की स्थापना की। मेरी क्यूरी ने एक्स-रे किरणों से घायल जवानों के घावों की जाँच की। यह आयोग चिकित्सा के क्षेत्र में एक मील पत्थर था।

ऐरीन उस समय अपनी सत्रहवीं आयु में थी। अपनी पढाई के साथ उन्होंने नेर्सिग कोर्स भी किया था। इसलिए तुरंत उन्होंने अपनी माता की रेडियोलजी यूनिट के सहारे नेर्सों को भी रेडियोलजी के बारे में भी पढाई।

ऐरीन ने स्वयं युद्ध में घायल हुए जवानों को अस्पताल में सेवा शुश्रूषा की। एक्स-रे किरणों की चिकित्सा उस समय महत्वपूर्ण हुई। वे ट्रंच में पडे घायलों के पास जाकर उनकी सेवा करने में तैयार हुई। घावों की वेदना से तडपनेवालों के पास जाने में वे कभी हिचकती नहीं।

अपनी आयु सत्रहवीं थी, फिर भी वे बहुत प्रौढ थीं। मन से वे बहुत मज़बूत थीं। अपनी बेटी को एक मज़बूत पत्थर के समान देखने में मेरी क्यूरी बहुत खुश थीं। अन्यों को सांत्वना देने में वे सिद्ध-हस्त थीं। सब तरह के प्रश्नों को हल करने की क्षमता उनमें थी। बौद्धिक, शारीरिक और मानसिक रूप से हर कार्य आसानी से करती थीं। युद्ध के अतं में उनका सेवा-कार्य में संतुष्ट होकर फ्रंच सरकार ने उनको एक 'मिलटरी मेडल' देकर आदर की।

वैज्ञानिक के रूप में संपादित करें

युद्ध के अंत होते समय ऐरीन ने गणित शास्त्र और भौतिक शास्त्र में उपाधि प्राप्त की। इक्कीसवीं आयु में ही अपनी माता की प्रयोगशाला में भरती मिली। अपनी माँ की रेडियम् संस्था में सहयोगी बन गयीं। युद्ध में अनेक जवानों की मृत्यु हुई। इसलिए संस्था में शोधकार्य करने में अधिक मात्रा में औरतें थीं।

जब कभी मेरी क्यूरी को प्रयोगशाला के बाहर जाने की आवश्यकता तो तब वो अपनी बेटी ऐरीन को सब कार्य सौंप कर जाती थीं। ऐरीन बहुत प्रवीण थीं। उस संस्था के अनुभवशील वैज्ञानिक को ऐरीन पर ईर्ष्या होने लगे। ऐरीन कुछ न मानती। वे सहज रूप से अपने काम में लगी रहीं। वे प्रयोगशाला में अपने शोध कर्मों में डूबी रहीं। वे सीधे रूप से काम करनेवाली थीं। सीधे काम न करनेवालों के प्रति वे कुंठित थीं।

तेईस उम्र में अपनी माता के हेतु उनको सम्मानित किया। उस काल में मेरी क्यूरी बीमार थीं। प्रयोगशाला के तीव्र विकीरण से उनकी तबीयत गिर गयी।

पच्चीस उम्र में ऐरीन को विज्ञान में डाक्टर की उपाधि मिली। अपने माता-पिता के आविष्कार में हुए एक मूल तत्व के बारे में शोध करने पर हुए फल था यह। विज्ञान शोध कार्य में परम समर्पण।

ऐरीन के शब्दों में मेरे जीवन में अधिक भाग विज्ञान की ओर ध्यान देना ही सर्वश्रेष्ठ है।

उनकी रुचि और शादी संपादित करें

यह एक कहानी के समान रसीली है। एक दिन उनकी माँ ने उनसे कहा कि प्रयोगशाला में आये नये व्यक्ति को पढाओ। उसका नाम था फ्रेडरिक जोलियट। आपस में काम करना उन दोनों को पसन्द था। १९२६ में उन्होंने शादी की। इस के बाद उन्होंने जोलियट क्यूरी नाम रखा। १९२८ से लेकर दोनों एक साथ शोध कार्य करने लगे। शोध कार्य में ऐरीन ने रासायनिक शास्त्र में अधिक ध्यान रखी। तब भौतिक शास्त्र में फ्रेडरिक भी।

विज्ञान में ऐरीन जोलियट क्यूरी का भागदान संपादित करें

पति-पत्नी के टीम के कार्य अनोखा थे। उनके शोध कार्य केलिए अलग-अलग तीन पुरस्कार मिल गये। न्यूट्रोण और पोसिट्रोण नाम के दो मूलकों का आविष्कार भी उन्होंने किया।

उन दिनों अनेक प्रयोगशालायें खुल गयीं। वे आपस में स्पर्धा रखने लगे। उनमें प्रमुख वैज्ञानिक के रूप में आये कुछ आदमी थे - एंणस्ट रूतर फोर्ड, चाडविक् आदि।

जो भी हो, वे पति-पत्नी प्रथम न्यूट्रोण्स् के आविष्कारक बन गये। अन्य वैज्ञानिकों के स्पर्धा से निराशाजनक पति-पत्नी एक नयी स्फूर्ति से शोध कार्य में लगे रहे। पोलोनियम् मूलक के बारे में बहुत शोध कार्य किया। उन्होंने ही सबसे पहले कृत्रिम रेडियो आक्टीव आटम् का आविष्कार किया।

उनके कठिन परिश्रम का फल मिल गया। अन्य वैज्ञानिक स्पर्धा छोडकर उनके आविष्कारों को स्वीकार किया। अपने रेडियम् संस्था से मिले रेडियो आक्टीव फोसफरस को देखकर मेरी क्यूरी चकित हो गयीं। इस दुनिया को स्वर्गीय आनंद प्रदान कर १९३४ में वे चली गयीं।

ऐरीन की राष्ट्रीय प्रवृत्तियाँ संपादित करें

१९३५ में नोबल पुरस्कार मिलने के बाद ऐरीन और फ्रडरिक दोनों ने निश्चय कि आगे अलग-अलग काम करें। उस प्रकार फ्रडरिक अध्यक्ष के रूप में उपस्थित हुए। ऐवरी के पुराने आंपियर प्लान्ट में परमाणु संकलन प्रयोगशाला के काम में वे तत्पर रहे। वहाँ वे कृत्रिम रेडियो एलिमनट्स बनाने के काम में लगे थे। इस समय संस्था में ऐरीन अपना अनुसंधान ज़ारी कर रही थीं। सारबोण के पारीस विश्वविद्यालय में १९३२ से १९५६ तक वे प्रोफसर बन गयीं, और १९४६ में रेडियम संस्था के अध्यक्षा बन गयीं। फ्रडरिक भी फ्रान्स के कालेज में न्यूक्लियर भौतिक शास्त्र और रासायनिक शास्त्र में अध्यक्ष बन गये थे। इन नये पदों में उन्होंने मौलिक रूप में फ्रान्स के सभी न्यूक्लियर काम को धार्मिक वृत्ति से देखे।

नोबल पुरस्कार विजेता ऐरीन की कीर्ति उनको राष्ट्रीय कार्य में माग लेना की प्रेरणा थी। १९५६ में उनकी मृत्यु तक वैज्ञानिक अध्यक्षा के रूप में रही थीं। १९३६ में फ्रान्स में हुए 'पोपुलर फ्रांड' के वे आन्टी फासिस्ट के एक सजीव प्रवर्तक थीं। इसके साथ ही साथ प्रथम काबिनट् मिनिस्ट्री में उपसचिव के रूप में भी वे काम करती थीं।

यह अचंभे की बात है कि औरतों को काबिनट में वौट देने की अनुमति फ्रान्स में १९४५ तक नहीं थी। तीन महीने के बाद उन्होंने अपनी काबिनट पद से हस्ताक्षर दे दी। उन्होंने अपनी पुरानी नौकरी के ओर ध्यान दिया। तुरंत वे समझ गयी कि राष्ट्रीय कार्य में लगे रहने की शक्ति और क्षमता उनमें नहीं है। इस समय उनकी तबीयत गिरने लगी थी। १९२७ में प्रथम बच्चे का जन्म हुआ। इसके बाद एक दूसरा बच्चा भी हुआ। इसके बाद उनकी तबीयत बुरी तरह से गिर गयी। क्योंकि पहले लोक महायुद्ध में घायल हुए जवानों की देख-रेख से उनके शरीर में एक्स-रे किरणें अधिक मात्रा में पडी थीं। इनके प्रभाव से उनकी तबीयत गिर गयी थी।

सम्मान संपादित करें

नोबल पुरस्कार

रासायनिक शास्त्र में कृत्रिम रेडियो आक्टिविटी के आविष्कार केलिए १९३५ में फ्रडरिक जोलियट और ऐरीन जोलियट क्यूरी को नोबल पुरस्कार मिला।

बर्नार्ड कालेज सुवर्ण पदक

गुणसंपन्न विज्ञान की सेवा केलिए १९४० में फ्रडरिक और ऐरीन को बर्नार्ड कालेज सुवर्ण पदक मिला।

सेना के अफसर के रूप में

धंधा या पद संपादित करें

  • १९१८ से अपनी माँ मेरी क्यूरी के रेडियम् संस्था के सहयोगी
  • १९३६ - उपसचिव राष्ट्र के वैज्ञानिक अनुसंधान लियोण ब्लम्स पोपुलर फ्रंड सरकार (४ महीने)
  • १९४६-१९५६ - अध्यक्षा, रेडियम् संस्था
  • १९४६-१९५० - अध्यक्षा, फ्रंच आटोमिक् एनरजी कम्मीशन
  • १९३७-१९५६ - प्रोफसर, सोरबोण

परिवार के संबन्ध में संपादित करें

ऐरीन को दो बच्चे हुए। हेलन् का जन्म १९२७ में हुआ। न्यूक्लियर भौतिक शास्त्र के प्रोफसर बन गये। पियरे का जन्म १९३२ में हुआ। वे बयोरासायनिक शास्त्र के प्रोफसर बन गये।

ऐरीन ने कठिन परिश्रम किया। १९४६ में रेडियम् संस्था के डयरक्टर भी बन गयीं। कमबख्त ऐरीन को इस दुनिया को छोडना पडा। लुक्कीमिया के कारण ५८ उम्र में उनकी मृत्यु हुई। पारीस के एक अस्पताल में १७ मार्च १९५६ को वे अपनी पंख फडफडाकर चली गयीं। ऐरीन की बहन ईव एक लेखिका थीं। रेडियम् के किरणों से अलग होने के कारण उनका जीवन १०२ उम्र तक रहा। ऐरीन की मृत्यु के दो वर्ष बाद उनके पति की मृत्यु भी हुई। वे भी ५८ उम्र तक रहे और १९५८ में उनका स्वर्गवास हुआ।

उपसंहार के रूप में संपादित करें

नोबल पुरस्कार विजेता और रेडियम् संस्था के अध्यक्षा की बेटी होने के नाते ऐरीन ने अपनी सभी शक्ति और क्षमता से वैज्ञानिक अनुसंधानों को नियंत्रित रखा। वैज्ञानिक अनुसंधानों में वे होशियार थे। एक स्त्री को भी वैज्ञानिक अनुसंधानों का कार्य करने में शक्ति है इसका उदाहरण है उनकी ज़िन्दगी। ऐरीन के वैयक्तिक जीवन बहुत फलदायक था और इसके साथ ही साथ उनके घरेलू व्यक्तियों की ज़िन्दगी को भी खुला कर दिया। विज्ञान के ज़रिये उन्होंने दुनिया को एक बहुमूल्य भेंट अर्पण कर दिया है। कम शब्दों में हम कह सकते हैं कि ऐरीन, उनके माता-पिता और उनके पति की देन कितना बहुमूल्य था। इस दुनिया में सूर्य का जो स्थान है वही स्थान उन वैज्ञानिकों को भी है।

संदर्भ संपादित करें

  1. http://www.nobelprize.org/nobel_prizes/facts/
  2. http://woodrow.org/teachers/ci/1992/IreneJoliot-Curie.html
  3. http://www.nobelprize.org/nobel_prizes/chemistry/laureates/1935/joliot-curie-lecture.html