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अनुशासन और नेतृत्व: विनम्रता और कठोरता का संतुलन संपादित करें

 
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सय्यद मुज़म्मिलुद्दीन

मैं १९९९ से शिक्षा जगत से जुड़ा हूँ और मैंने विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा लेकचरशिप की योग्यता के लिए निर्धारित परीक्षा पास की है। २००४ में एअर इंडिया द्वारा स्थापित एक ज़िला-स्तरीय पुरस्कार से भी मैं सम्मानित हुआ हूँ। अपने व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर मैं कुछ बिंदु प्रस्तुत करना चाहता हूँ जो किसी भी संस्था या व्यवस्था के कुशल नेतृत्व में सहायक हो सकते हैं।

कई वर्ष पूर्व मैं एक कॉलेज में लेकचरर (वर्तमान नहीं) था। वहाँ की एक उल्लेखनीय घटना इस प्रकार है कि मेरे एक सहकर्मी का कॉलेज प्रबंधकों से कुछ मतभेद हो गया। एक दिन दोपहर के समय वे क्रोधित होकर आए और स्टाफ़रूम में घोषणा की कि वे कोई क्लास नहीं लेंगे। मैंने पूछा कि क्या वे कॉलेज छोड़ रहे हैं? उन्होंने कहा कि नहीं। उस दिन दोपहर की उनकी क्लास तो मैंने ले ली, पर मेरे मित्र के आक्रोश-भरे तेवर दूसरे दिन भी वैसे ही रहे। वे अपनी समयसारिणी के अनुसार योजनाबद्ध क्लासों के समय यूँ ही बैठे रहे, पर मुझे भी अपनी क्लासों का कार्य देखना था, इसलिए मैं किसी प्रकार से हाथ बटाने में असमर्थ था। यह परिस्थिति अगले दो दिन तक चलती रही।

फिर अचानक एक दिन भोजन के समय से कुछ पहले मेरे पूर्व कॉलेज के प्रिंसिपल ने मित्र महोदय को अपने कक्ष में बुलाया। उन्होंने बहुत ही आदरपूर्वक बात की और मेरे मित्र के आगे चाय और बिस्कुट प्रस्तुत किए। इसके पश्चात प्रिंसिपल ने उनसे हँसते हुए बातों-बातों में कहा कि "ये स्टूडेंट्स भी बड़े ही ग़ैर-ज़िम्मेदार हैं। वे लोग आपके विरुद्ध लिखित शिकायत लेकर आए कि आप क्लास नहीं ले रहे हैं। मैंने उन्हें डाँटकर कहा कि तुम लोग स्वयं कब पाबंदी से आते हो और ये कि मुझे आपकी कर्त्तव्यनिष्ठा पर पूर्ण विश्वास है।"

इसका प्रभाव मैंने यह देखा है कि अगली बार से मेरे मित्र अपने पीरियड के प्ररंभ होने से १०-१५ मिनट पहले ही कक्षा के बाहर खड़े रहते थे। उल्लेखनीय है कि प्रिंसिपल ने उस लेकचरर को डाँटा नहीं और न ही कोई कारण-बताओ नोटिस जारी किया। वे जानते थे कि मेरे मित्र एक योग्य और साधारण रूप से कर्त्तव्यनिष्ठ व्यक्ति थे। केवल असंतोषजनक परिस्थितिओं और क्रोध के कारण उनका व्यव्हार असामान्य देखा गया जिसे प्रिंसिपल ने अपनी व्यवहारकुशलता (tactfulness) से सही पटरी पर लाने का काम किया। यह किसी भी नेता का सकारात्मक गुण है कि वो दंड और चेतावनी के बगैर भी लोगों में सराहनीय परिवर्तन लाता है।

सामान्य रूप से हमारे कॉलेज में प्रिंसिपल अपने कार्य समय की समाप्ति के साथ या १०-२० मिनट के पश्चात वहाँ से चले जाते थे। एक समय मैं प्रिंसिपल के कक्ष में बैठा था तभी एक विद्यार्थी का फ़ोन आया। वह किसी खेल टोर्नामेंट में भाग लेना चाहता था। उसी दिन पंजीकरण की अंतिम तिथि थी। पर विद्यार्थी ज़िले से बाहर था और कॉलेज पहुँचने में एक से दो घंटे का समय लग सकता था। प्रिंसिपल ने ठंडे अंदाज़ में विद्यार्थी से कहा कि "आप निश्चिंत रहें और अपना समय लेकर आएँ। मैं सब के जाने के बाद भी आपकी प्रतीक्षा करूँगा" - यह किसी भी नेता का दूसरा सकारात्मक गुण है कि वह Never hesitates to take an extra mile to get the smile on others यानी दूसरों को सुखी रखने के लिए किसी कष्टदायक परिस्थिति से नहीं घबराता।

परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि प्रिंसिपल महोदय कठोर निर्णय लेने से डरते थे या शरमाते थे। जब कुछ विद्यार्थियों कॉलेज के एकमात्र पारसी व्यक्ति को लगातार वलचर ( गिद्ध ) कहकर पुकारा तो उन्होंने तुरंत कार्यवाही की और उन्हें निलंबित किया। याद रहे कि पारसी लोग अपने मृतकों को न जलाते हैं न दफ़नाते हैं, बल्कि वे अपने मृतकों के शवों को किसी गिद्ध के समक्ष रखते हैं जो उनके पार्थिव शरीर को खाता है। इस प्रकार उन्होंने किसी व्यव्हारिक दृष्टि से फैली हुई किसी भी नकारात्मक टिप्पणी को अपने यहाँ चलने नहीं दिया। इसी प्रकार से उन्होंने परीक्षा में नक़ल करते हुए पकड़े जाने वाले विद्यार्थियों को भी हर दंडित ही करते थे, क्योंकि उनकी दृष्टि से यह शिक्षा प्रणाली की मर्यादा को घोर उल्लंघन था।

मैंने अपने शैक्षणिक जीवन में कई प्रिंसिपल और उच्च पदाधिकारियों को देख चुका हूँ जिन्होंने समय की आवश्यकता के अनुसार विनम्र तथा समर्थक भूमिका निभाई है और जब भी आवश्यक हुआ कठोर निर्णय लिए। यही तो किसी कम्पनी के मैनेजर, संस्था के प्रबंधक/संयोजक की भूमिका होनी चाहिए कि वह बहुमुखी हो - दूसरों को प्रोत्साहित भी करे और समय पड़ने पर कठोर निर्णय ले, जब वह अनिवार्य हो जाए। आजकल पत्थर-और-ईंट के संगठनों (brick and mortar organizations) के अलावा सामाजिक जालक्रम (social networking) जैसे कि फ़ेसबुक और वॉट्सऍप्प के समूह, कई ऑनलाइन फ़ोरम और विकिपिडिया परियोजना आदि भी अस्तित्व में आ चुके हैं। इनमें कुछ लोग रुचि और समय की उपलब्धता के अनुसार शामिल हुए हैं। इनमें कुछ गंभीरता से सम्मिलित हुए हैं, कुछ इत्तफ़ाक़ से सम्मिलत हुए हैं और ऐसे में कुछ विघटनकारी तत्व भी शामिल हुए हैं। विघटनकारी तत्व या तो परियोजना के मूल नियमों के विपरीत काम करते हैं या दिन-भर की थकान और मानसिक तनाव निकालने के लिए आते हैं। व्यक्तिगत जीवन में विभिन्न समस्याओं से ग्रस्त यह लोग किसी चिंता या प्रतिक्रिया के भय के बिना अशोभनीय या अभद्र भाषा का प्रयोग करते हैं और दूसरे सदस्यों को बुरा-भला कहते हैं। ऐसे में ऑनलाइन फ़ोरम या विकिपीडिया परियोजना के संयोजकों / प्रबंधकों का परम दायित्व होता है कि उन तत्वों को पहले प्यार से समझाकर रोकने का प्रयास करें। फिर भी यदि ऐसे तत्व अपने रवैये पर डटे रहें तो उन पर अवरोध लगाते हुए उनकी गतिविधियों पर रोक लगाना आवश्यक है। यह उतना ही आवश्यक है जितना कि नए सदस्य का मार्गदर्शन करना और वातावरण से परिचित कराना। नेतृत्व वास्तव में विनम्रता और कठोरता का संतुलित मिश्रण है।