सदस्य:History of rajasthan27/प्रयोगपृष्ठ

April 01, 2024

मेवाड़ रियासत

( पूर्व में राजधानी चित्तोड़गढ़ उसके बाद 15वी शताब्दी  में उदयपुर को राजधानी बनाया गया था )

मेवाड़ राजस्थान के दक्षिण-मध्य में स्थित एक रियासत थी।

इसमें आधुनिक भारत के राजस्थान के उदयपुर, भीलवाड़ा, राजसमन्द, चित्तौडगढ़,तथा प्रतापगढ़ जिले और मध्य प्रदेश के नीमच तथा मंदसौर जिले थे। मेवाड़ के राजचिह्न में राजपूत और भील योद्धा अंकित है । सैकड़ों वर्षों तक यहाँ शासन रहा और इस पर गुहिल तथा सिसोदिया राजाओ ने 1200 वर्ष तक राज किया ।

मेवाड़ की राजधानी क्रम = नागदा(उदयपुर के निकट स्थित), आह्ड(उदयपुर के निकट स्थित), चित्तोड़गढ़,कुम्भलगढ़, उदयपुर, तथा चावण्ड(उदयपुर के निकट स्थित) राजधानी रही थी

महाराणा प्रताप यहीं के राजा थे। अकबर की भारत विजय में केवल मेवाड़ के राणा प्रताप बाधक बना रहे। अकबर ने सन् 1576 से 1586 तक पूरी शक्ति के साथ मेवाड़ पर कई आक्रमण किए, पर उसका राणा प्रताप को अधीन करने का मनोरथ सिद्ध नहीं हुआ स्वयं अकबर, प्रताप की देश-भक्ति और दिलेरी से इतना प्रभावित हुआ कि प्रताप के मरने पर उसकी आँखों में आंसू भर आये। उसने स्वीकार किया कि विजय निश्चय ही राणा की हुई। यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि देश के स्वतंत्रता संग्राम में प्रताप जैसे महान देशप्रेमियों के जीवन से ही प्रेरणा प्राप्त कर अनेक देशभक्त हँसते-हँसते बलिवेदी पर चढ़ गए। महाराणा प्रताप की मृत्यु पर उनके उत्तराधिकारी अमर सिंह ने मुगल सम्राट जहांगीर से सन् 1615 में संधि कर ली

  { मुख्य लेख: गुहिल राजवंस (734 ई, -1301ई. )और सिसोदिया राजवंस  1326ई. से }

गुहिल/गहलौत राजवंश एक राजपूत राजवंश था जो भारतीय उपमहाद्वीप के राजस्थान क्षेत्र में मेवाड़ शहर में शासन करता था | इसका प्रारंभिक संंस्थापक राजा गुहादित्य थेे, जिन्होंने छटी शताब्दी में गुहिल वंंश की नींव रखी। गुुुहादित्य के पश्चात् 734 ई'. में बप्पा रावल को गुहिल वंश का वास्तविक संंस्थापक माना जाता है।

संपादित करें

सिसोदिया गुहिल वंश की उपशाखा है जिसका राजस्थान के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। राहप जो कि चित्तौड़ के गुहिल वंश के राजा के पुत्र थे, शिशोदा ग्राम में आकर बसे, जिस से उनके वंशज सिसोदिया कहलाये ।

संपादित करें

मेवाड़ का इतिहास बेहद ही गौरवशाली रहा है। मेवाड़ का प्राचीन नाम शिवी जनपद था। चित्तौड़ उस समय मेवाड़ का प्रमुख नगर था। प्राचीन समय में सिकंदर के आक्रमण भारत की तरफ बड़ रहे थे, उसने ग्रीक के मिन्नांडर को भारत पर आक्रमण करने के लिए भेजा, उस दौरान शिवी जनपद का शासन भील राजाओं के पास था। सिकंदर भारत को नहीं जीत पाया , उसके आक्रमण को शिवी जनपद के शासकों ने रोक दिया और सिकंदर की सेना को वापस जाना पड़ा।[2]

दरसअल मेवाड़ भील राजाओं के शासन का क्षेत्र रहा , भीलों ने शासन करने के साथ साथ मेवाड़ धारा का विकास किया। मेवाड़ पर राजा खेरवो भील का शासन स्थापित था, उसी दौरान गुहिलोतो ने मेवाड़ अपने कब्जे में कर लिया। [1]

मेवाड़ राज्य की स्थापना लगभग 566 ई. में हुई थी। बाद में उदयपुर राजधानी के बनी। 1568 में, अकबर ने मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ पर विजय प्राप्त की। 1576 में, हल्दीघाटी का युद्ध हुआ जो की एक अनिर्णायक युद्ध साबित हुआ लेकिन इसके मेवाड़ को बहुत हानि पहुंची और हल्दीघाटी के युद्ध के बाद महाराणा प्रताप को जंगल में छुपकर जीवन व्यतीत करना पड़ा । हल्दी घाटी के युद्ध में मुगल सेना का पलड़ा भारी होते देखकर महाराणा प्रताप के सेनानायको ने उन्हें वहा से दूर भेज दिया एवं झाला मानसिंह ने राणा का छत्र धारण कर युद्ध भूमि में शहीद हुए। अकबर ने युद्ध के बाद मेवाड़ पर कई आक्रमण किए जो ज्यादातर असफल सिद्ध हुए । 1583/1585 से 1599 तक मेवाड़ पर कोई आक्रमण नहीं हुए इसी बीच प्रताप ने चित्तौड़गढ़ और मांडलगढ़ को छोड़ संपूर्ण मेवाड़ फिर से जीत लिया 1599 के पश्चात कुछ और असफल आक्रमण मेवाड़ पर हुए एवं 1605 को अकबर की मृत्यु हो गई अतः अकबर अपने जीवन काल में मेवाड़ पर पूर्ण रूप से विजय प्राप्त नहीं कर पाया । 1606 में, अमर सिंह देवरे की लड़ाई में मुगलों को हराया। 1615 में, चार दशक तक झड़प के बाद मेवाड़ और मुगलों ने एक संधि में प्रवेश किया। अंग्रेजी सरकार के दौरान राजस्थान के अन्य सभी राजपूत रजवाड़ो की तरह मेवाड़ रजवाड़ा भी अंग्रेजी सरकार के प्रति पूर्ण रूप से वाफादार बना रहा और इसे अंग्रेजों के लिए लगाना वसूलने का अधिकार प्राप्त था। इस परिवार ने ब्रिटिश सल्तनत के प्रति निष्ठावान बनकर अपने पुराने अधिकारियों को सुरक्षित कर लिया था। 1949 में उदयपुर राज्य भारतीय संघ में शामिल हो गया। मेवाड़ पर 1500 वर्षों से मोरी, गुहिलोत और सिसोदिया राजवंशों का शासन था।

भौगोलिक स्थिति

संपादित करें

मेवाड़ का उत्तरी भाग समतल है। बनास व उसकी सहायक नदियों की समतल भूमि है। चम्बल भी मेवाड़ से होकर गुजरती है। मेवाड़ के दक्षिणी भाग में अरावली पर्वतमाला है,जो की बनास व उसकी सहायक नदियों को साबरमती व माही से अलग करती है,जो कि गुजरात सीमा में है। अरावली उत्तर- पश्चिम क्षेत्र में है। इस कारण यहाँ उच्च गुणवत्ता पत्थर के भण्डार है। जिसका प्रयोग लोग गढ़ निर्माण में करना पसंद करते है। मेवाड़ क्षेत्र उष्णकटिबंधीय शुष्क क्षेत्र में आता है। वर्षा का स्तर 660 मिमी/वर्ष, उत्तर पूर्व में अधिकतया। ९०% वर्षा जून से सितम्बर के बीच पड़ती है। दक्षिण पश्चिम मानसून के कारण।