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बाबा डुंगरपुरी जी महाराज मंदिर जाजुसन की स्थापना और सच्ची घटना ।। संपादित करें

 
खेमीदेवी धर्म-पत्नी स्व.जैताजी प्रजापत

बाबा डुंगरपुरी जी महाराज मंदिर की स्थापना और सच्ची घटना ।।

Baba Dungarpuri Ji Maharaj Mandir Jajusan

 
बाबा डुंगरपुरी जी महाराज का निमबड़ा (नीम)
  1. आज भी मौजूद बाबा का निमबड़ा (नीम)

नमस्कार :

आज में ये जो घटना बताने जा रहा हु ।

  ये  एक सच्ची घटना है तथा ये घटना मेरी दादी खेमी देवि धर्म-पत्नी स्व. जेता जी मकवाना प्रजापत गांव जाजुसन के कह अनुसार बता रहा हु ।

दादी बताती है कि आज से लगभग 90+ साल पहले मेरे ससुर जेठा जी पुत्र मला जी गांव जाजुसन एक बार रात को अपने गांव के 3 दोस्तो के साथ ( धर्मा जी राजपुरोहित , माधो जी चौधरी , रावता जी रबारी) सांचौर से गांव जाजुसन आ रहे थे ।

गांव से पहले पीर की जाल के पास काला घोड़ा और उसके ऊपर बैठा काले आदमी ने जेठा जी को जोर से धक्का दिया।

जेठा जी बेहोश हो गये ओर जीभ बाहर निकल आयी। 3 दोस्त डर गए कि अचानक क्या हुआ । फिर गांव में उनके बड़े बेटे राणाजी को सूचना दी और बुलाया गया ।

फिर गांव से खटिया (चारपाई) मंगवाई गई और उसके ऊपर लेटा कर जेठा जी को घर लाया गया ।

जेठा जी को अभी तक होश नही आया था

की तभी सूचना मिली कि गांव में संत रामपुरी जी महाराज आये हुये है और वो गांव के गोलिया में जीवा जी चौधरी के घर पर है ।

महाराज के पास जाकर सारी बातें बताई गई । महाराज ने कहाँ की अभी रात बहुत हो गई है में धागा बना कर देता हूं पर ध्यान रहे बांधने के बाद 4 लोग जागते रहना नही तो ये धागा जेठा तोड़ देगा ।

में सुबह आहुगा । महाराज के कह अनुसार किया ।  4 लोग खटिया ओर जेठा जी को पकड़ कर बैठे । कुछ समय बाद जेठा जी जोर चिलाये ओर वो धागा तोड़ दिया ओर फिर से बेहोश हो गए ।

अब सुबह फिर से महाराज रामपुरीजी को बुलाया गया ।

महाराज रामपुरी जी आये और तोड़े हुए धागे को फिर से बनाया और बांधा तथा कसम खाई की अगर मेरे बंधे धागे से अगर जेठा पानी मांगे ओर फिर खाना मांगे तो इस गांव जाजुसन में रहूंगा ।

नही तो में इस गांव का पानी नही पिऊंगा ओर नही ना ही इस गांव में कदम राखु

जाजुसन गांव का हमेशा हमेशा के लिये त्याग कर दूंगा।

कुछ समय बाद जेठा जी को होश आया उन्होंने हाथ से इशारा किया कि मेरा गला सूख गया है  मुझे पानी पिलाओ । रामपुरी जी महाराज ने जेठा जी रूही से हल्का पानी पिलाया ।

पानी पीने के बाद कुछ समय बाद जेठा जी फिर हाथ से इशारा किया कि मुझे भूख लगी है ।

तब उनके बड़े बेटे राणाजी ने खेपला (गर्म बाजरे का आटा) बना कर लाया । और उन्हें खिलाया गया।

कुछ समय बाद जेठा जी थोड़ा और होश आया ।

जेठा जी बोले कि मुझे कुछ दिखाई नही दे रहा है । तब महाराज रामपुरीजी ने कहा कि जेठा जी आँखों को धुलाई जाये। और महाराज रामपुरीजी ने जेठा जी पर हाथ रखा और आशिर्वाद दिया ।

जेठा जी को दिखाई देने लगा और लड़खड़ाते हुये खड़े हुए और  उन्होंने धीमी आवाज में कहा कि महाराज रामपुरीजी आप कब आये ।

तब रामपुरीजी ने सब बात उन्हें बताई । जेठा जी ने हाथ जोड़े ओर कहा महाराज आप भगवान बन कर मेरे घर आये और मेरे मकवाणा परिवार की लाज रखी।

तब महाराज रामपुरीजी ने घर पर खड़े नीम के पेड़ नीचे दीपक जलाया ओर कहा कि आज से रोज दिन प्रतिदिन बाबा डुंगरपुरी महाराज (चोहटन) की पूजा करनी है ।

तो आपके परिवार पर कभी आँच नही आएगी। मेरी दादी खेमीदेवी के अनुसार जेठा जी रोज उस नीम के पेड़ के नीचे पूजा और भक्ति किया करते थे ।

कुछ सालों बाद जेठा जी का स्वर्गवास हो गया । और कुछ सालों बाद जेठा जी बड़े बेटे राणा जी का कम उम्र में स्वर्गवास हो गया ।

जेठा जी छोटे बेटे जैताजी ने बढ़ते परिवार की वजह से गांव से खेत मे रहने आ गए । खेत मे खेमीदेवी की बड़ी बेटी (गवरी) ने नीम का पेड़ लगाया ।

समय के साथ नीम का पेड़ भी बड़ा हुआ ।

पेड़ के नीचे जेठाजी के पुत्र जेताजी नियमित रूप से बाबा डुंगरपुरी जी महाराज की पूजा और चोहटन से लाई किताब को सब परिवार के सामने पढ़ा करते थे ।

बाबा का निमबड़ा   (नीम का पेड़)

बाबा का निमबड़ा के नाम से जानने वाला ये पेड़ इतना विशाल है । कि नीम के नीचे 500 से 700 लोग आराम से बैठ सकते है । इस नीम की विशाल भुजाये ओर विशाल गोलाकार बड़ा ही अद्भुत लगता है।

इस नीम को आज दिन तक काटा नही गया है । ओर इस नीम पर बहोत ही कम नीम के फल (निम्बोली )लगती है ।

ओर फिर बाबा के लिए मंदिर आशुजी बोड़ा प्रजापत प्रतापपूरा वालो ने बना कर दिया । नियमित रूप से जेठा जी के पुत्र जैताजी बाबा के नीम के नीचे पूजा और पाठ किया करते थे । एक बार ब्राह्मण हस्तीमल जी घर आये ।

ओर जेता जी बोले कि क्या कर रहो हो ।  बोलो में नीम के नीचे बाबा डुंगरपुरी जी महाराज की पूजा कर रहा हु ।

फिर ब्राह्मण हस्तीमल जी ने मंदिर में लाल और सफेद कपड़ा (पडाई) ओर नारियल रख कर बाबा की स्थापित की ।

गुरु-दक्षिणा में पीने के लिए कोरी मटकी ओर एक गोरी गाय सह परिवार वालो ने दी

बाबा की पूजा-पाठ करते-करते जेता जी का स्वर्गवास हो गया।

बाबा के मंदिर में परिवर्तन किया गया बाबा की चौकी बनाई गई धूणा बनाया गया ओर बाबा का ढालिया बनाया गया ।

बाबा के नीम की एक जड़ बाहर निकली हुई है उसके नीचे से निकले पर हर रोगों का निवारण होता है ।

तथा नीम के चारो ओर 5 परखमा देकर 2 नीम की पत्ती खाने से भी हर रोगों का निवारण होता हैजेठा जी की 5वी पीठी चल रही है।

आज भी बाबा डुंगरपुरी जी महाराज नियमित रूप से पूजा और परखमा दी जाती है ।

ये सारी बात मेरी दादी खेमीदेवी धर्मपत्नी स्व. जेता जी प्रजापत द्वारा बताई गई है जो आज जीवित है और बाबा की  भक्ति करती है ।

उन्होंने ये भी बताया कि मुझे बाबा डुंगरपुरी जी ने बालक के रूप में कई बार दर्शन दिए ।

ॐ बाबा डुंगरपुरी जी महाराज की जय ।।।

ॐ ॐ ॐ

बाबा डुंगरपुरी जी महाराज का मंदिर जाजुसन सांचोर।।।

लिखित : हितेश मकवाणा (जेठाजी का परपौत्र)