भारत में बंधुआ मजदूरी

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भारत सरकार ने देश में बाध्य श्रम या बंधुआ मजदूरी के मुद्दे पर निरन्तर अमसिबय रुख अपनाया है। यह इस कुूथा को प्रभािवत नागिरकों के मौिलक मानवािधकारों का हनन मानता है और यह इसके यथासभवं न्यूनतम समय में पूणर् समापन को लेकर अिडग है। भारत ने ३०.११.१९५४ को आईएलओ सम्मेलन सख्या। २९ (बाध्य श्रम सम्मेलन) की पुिष्ट की है। बंधुआ मजदरी प्रणाली (उन्मलनू ) अधिनियम 1976 को लागू करने बंधआु मजदरी प्रणाली को २५ अक्टूबर १९७५ से संपूर्ण देश से खत्म कर दिया गया। इस अिधिनयम के जिरए बंधुआ मजदूर गुलामी से मक्तु हुए साथ ही उनके कर्ज की भी समािप्त हुई। यह गुलामी की प्रथा को कानून द्वारा एक संज्ञेय दंडनीय अपराध बना दिया। इस अिधिनयम को संबंधित राज्य सरकारों द्वारा बियािन्वत किया जा रहा है।

बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) अिधिनयम १९७६

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बंधुआ मज़दूरी प्रथा (उन्‍मूलन) अधिनियम, १९७६ बंधुआ मज़दूरी की प्रथा उन्‍मूलन हेतु अधिनियमित किया गया था ताकि जनसंख्‍या के कमज़ोर वर्गों के आर्थिक और वास्‍तविक शोषण को रोका जा सके और उनसे जुड़े एवं अनुषंगी मामलों के संबंध में कार्रवाई की जा सके। इसने सभी बंधुआ मज़दूरों को एकपक्षीय रूप से बंधन से मुक्‍त कर दिया और साथ ही उनके कर्जो को भी परिसमप्‍त कर दिया। इसने बंधुआ प्रथा को कानून द्वारा दण्‍डनीय संज्ञेय अपराध माना।

यह कानून श्रम मंत्रालय और संबंधित राज्‍य सरकारों द्वारा प्रशासित और कार्यान्वित किया जा रहा है। राज्‍य सरकारों के प्रयासों की अनुपूर्ति करने के लिए मंत्रालय द्वारा बंधुआ मज़दूरों के पुनर्वास की एक केन्‍द्रीय प्रायोजित योजना स्‍कीम शुरू की गई थी। इस योजना के अंतर्गत, राज्‍य सरकारों को बंधुआ मज़दूरों के पुनर्वास के लिए समतुल्‍य अनुदानों (५०:५०) के आधार पर केन्‍द्रीय सहायता मुहैया कराई जाती है।

 

अधिनियम के मुख्‍य प्रावधान इस प्रकार हैं:-

  • बंधुआ मजदूर प्रणाली को समाप्‍त किया जाए और प्रत्‍येक बंधुआ मजदूर को मुक्‍त किया जाए तथा बंधुआ मजदूरीकी किसी बाध्‍यता से मुक्‍त किया जाए।
  • ऐसी कोई भी रीति-रिवाज़ करार या कोई अन्‍य लिखत जिसके कारण किसी व्‍यक्ति को बंधुआ मज़दूरी जैसी कोई सेवा प्रदान करनी होती थी, अब निरस्‍त कर दिया गया है।
  • इस अधिनियम के लागू होने से एकदम पहले कोई बंधुआ ऋण या ऐसे बंधुआ ऋण के किसी हिस्‍से का भुगतान करने की बंधुआ मज़दूर की हरेक देनदारी समाप्‍त हो गई मान ली जाएगी।
  • किसी भी बंधुआ मज़दूर की समस्‍त सम्‍पत्ति जो इस अधिनियम के लागू होने से एकदम पूर्व किसी गिरवी प्रभार, ग्रहणाधिकार या बंधुआ ऋण के संबंध में किसी अन्‍य रूप में भारग्रस्‍त हो, जहां तक बंधुआ ऋण से सम्‍बद्ध है, मुक्‍त मानी जाएगी और ऐसी गिरवी, प्रभार, प्रभार, ग्रहणाधिकार या अन्‍य बोझ से मुक्‍त हो जाएगी।
  • इस अधिनियम के अंतर्गत कोई बंधुआ मज़दूरी करने की मज़बूरी से स्‍वतंत्र और मुक्‍त किए गए किसी भी व्‍यक्ति को उसके घर या अन्‍य आवासीय परिसर जिसमें वह रह रहा/रही हो, बेदखल नहीं किया जाएगा।
  • कोई भी उधारदाता किसी बंधुआ ऋण के प्रति कोई अदायगी स्‍वीकृत नहीं करेगा जो इस अधिनियम के प्रावधानों के कारण समाप्‍त हो गया हो या समाप्‍त मान लिया गया हो या पूर्ण शोधन मान लिया गया हो।
  • राज्‍य सरकार जिला मजिस्‍ट्रेट को ऐसी शक्तियां प्रदान कर सकती है और ऐसे कर्तव्‍य अधिरोपित कर सकती है जो यह सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी हो कि इस अधिनियम के प्रावधानों का उचित अनुपालन हो।
  • इस प्रकार प्राधिकृत जिला मजिस्‍ट्रेट और उसके द्वारा विनिर्दिष्‍ट अधिकारी ऐसे बंधुआ मज़दूरों के आर्थिक हितों की सुरक्षा और संरक्षण करके मुक्‍त हुए बंधुआ मज़दूरों के कल्‍याण का संवर्धन करेंगे।
  • प्रत्‍येक राज्‍य सरकार सरकारी राजपत्र में अधिसूचना के ज़रिए प्रत्‍येक जिले और प्रत्‍येक उपमण्‍डल में इतनी सतर्कता समितियां, जिनहें वह उपयुक्‍त समझे, गठित करेगी।
  • प्रत्‍येक सार्तकता समिति के कार्य इस प्रकार है :-
  • इस अधिनियम के प्रावधानों और उनके तहत बनाए गए किसी नियम को उपयुक्‍त ढंग से कार्यान्वित करना सुनिश्चित करने के लिए किए गए प्रयासों और कार्रवाई के संबंध में जिला मजिस्‍ट्रेट या उसके द्वारा विनिर्दिष्‍ट अधिकारी को सलाह देना;
  • मुक्‍त हुए बंधुआ मज़दूरों के आर्थिक और सामाजिक पुनर्वास की व्‍यवस्‍था करना;
  • मुक्‍त हुए बंधुआ मज़दूरों को पर्याप्‍त ऋण सुविधा उपलब्‍ध कराने की दृष्टि से ग्रामीण बैंकों और सहकारी समितियों के कार्य को समन्वित करना;
  • उन अपराधों की संख्‍या पर नज़र रखना जिसका संज्ञान इस अधिनियम के तहत किया गया है;
  • एक सर्वेक्षण करना ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्‍या इस अधिनियम के तहत कोई अपराध किया गया है;
  • किसी बंधुआ ऋण की पूरी या आंशिक राशि अथवा कोई अन्‍य ऋण, जिसके बारे में ऐसे व्‍यक्ति द्वारा बंधुआ ऋण होने का दावा किया गया हो, की वसूली के लिए मुक्‍त हुए बंधुआ मज़दूर या उसके परिवार के किसी सदस्‍य या उस पर आश्रित किसी अन्‍य व्‍यक्ति पर किए गए मुकदमे में प्रतिवाद करना।
  • इस अधिनियम के प्रवृत्त होने के बाद, कोई व्‍यक्ति यदि किसी को बंधुआ मज़दूरी करने के लिए विवरण करता है तो उसे कारावास और जुर्माने का दण्‍ड भुगतान होगा। इसी प्रकार, यदि कोई बंधुआ ऋण अग्रिम में देता है, वह भी दण्‍ड का भागी होगा।
  • अधिनियम के तहत प्रत्‍येक अपराध संज्ञेय और ज़मानती है और ऐसे अपराधों पर अदालती कार्रवाई के लिए कार्रवाई मजिस्‍ट्रेट को न्‍यायिक मजिस्‍ट्रेट की शक्तियां दिया जाना ज़रूरी होगा।

बंधुआ मजदूरी से मिला अभिशाप बाल मजदूरी

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किसी भी क्षेत्र में बच्चों द्वारा अपने बचपन में दी गई सेवा को बाल मजदूरी कहते है। इसे गैर-जिम्मेदार माता-पिता की वजह से, या कम लागत में निवेश पर अपने फायदे को बढ़ाने के लिये मालिकों द्वारा जबरजस्ती बनाए गए दबाव की वजह से जीवन जीने के लिये जरुरी संसाधनों की कमी के चलते ये बच्चों द्वारा स्वत: किया जाता है, इसका कारण मायने नहीं रखता क्योंकि सभी कारकों की वजह से बच्चे बिना बचपन के अपना जीवन जीने को मजबूर होते है। बचपन सभी के जीवन में विशेष और सबसे खुशी का पल होता है जिसमें बच्चे प्रकृति, प्रियजनों और अपने माता-पिता से जीवन जीने का तरीका सीखते है। सामाजिक, बौद्धिक, शारीरिक, और मानसिक सभी दृष्टीकोण से बाल मजदूरी बच्चों की वृद्धि और विकास में अवरोध का काम करता है।

 

खतरनाक काम

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बाल श्रम प्रतिषेध व विनियमन अधिनियम १९८६ पर नजर डालें तो इसके अंतर्गत १८ व्यवसायों और ६५ प्रक्रियाओं में बच्चों से काम करवाना पूर्णतः प्रतिबंधित है। चाय की दुकानों, ढाबों, होटलों, सड़क किनारे खान-पान के ठिकानों और घरों में कराए जाने वाले काम भी इन खतरनाक व्यवसायों में शामिल हैं। घरेलू नौकर का काम इस सूची में १० अक्टूबर २००६ से लाया गया है। जो क्षेत्र इस अधिनियम के अंतर्गत नहीं आते, वहां भी १४ वर्ष से कम उम्र के बच्चों से काम कराने के कुछ मानक तय किए गए हैं। जैसे तीन घंटे काम के बाद एक घंटा आराम, और शाम ७ बजे से सुबह ८ बजे के बीच कोई काम न लिया जाना। बच्चों से ओवरटाइम कराना बिल्कुल मना है। पर इन नियमों का पालन कितने मालिक करते होंगे, स्वयं समझा जा सकता है। घरेलू नौकरानियों के साथ मारपीट, खाना न देने, बंद करके रखने और शारीरिक शोषण के कई मामले पिछले दिनों मीडिया में छाए रहे।

 

मुक्ति की खानापूरी

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सूचना अधिकार के तहत जब केंद्रीय श्रम मंत्रालय से यह जानने की कोशिश की गई कि पिछले पांच सालों में सड़क किनारे खानपान की दुकानों और घरों से देश भर में कितने बच्चे चिन्हित कर मुक्त करवाए गए, तो उसके पास आंकड़े नदारद थे। राजस्थान सरकार से यह जानकारी मांगी गई तो वहां के श्रम विभाग ने बताया कि पिछले पांच वर्षों में पूरे प्रदेश से सिर्फ १० बच्चों से काम छुड़वाया गया। इन पांच सालों में केंद्रीय श्रम विभाग को मुंबई में सिर्फ ४, दिल्ली में ५५ और चेन्नई में १३ घरेलू बाल श्रमिक मिले। कोलकाता में एक भी नहीं। बाल श्रम के कारणों पर गौर करें तो गरीबी निश्चित ही इसका मुख्य कारण है। पर एक तरफ गरीबी की वजह से बाल मजदूरी है, तो दूसरी तरफ बाल श्रम के चलते भी गरीबी बढ़ती है। सस्ते मजदूर होने के कारण बच्चों से काम करवाया जाता है। बाल श्रमिक के स्थान पर वयस्क मजदूर से काम करवाकर उसे सरकार द्वारा तय न्यूनतम मजदूरी दी जाए, तो शायद मां-बाप बच्चे को स्कूल भेजना शुरू करें।

कैसे हो पुनर्वास

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बाल मजदूरों को काम से हटाने के साथ ही उनके पुनर्वास पर भी ध्यान देना जरूरी है। श्रम मंत्रालय के अनुसार राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना के तहत चलाए जा रहे विशेष बाल श्रमिक विद्यालय ऐसे बच्चों के लिए ही हैं। पिछले तीन सालों में देश के २६० जिलों में चल रहे इन विद्यालयों में लगभग तीन लाख बाल मजदूरों को दाखिला दिया गया है। पर गैर सरकारी संगठनों की शोध रपटों से यह खुलासा हुआ है कि इन विद्यालयों में नामांकित अधिकतर बच्चे कभी बाल मजदूर नहीं रहे और उनका दाखिला पहले से भी सर्व शिक्षा अभियान में चल रहे स्कूलों में था। बाल श्रमिकों के पुनर्वास के लिए पढ़ाई के साथ-साथ उनके परिवारों के आर्थिक प्रोत्साहन पर भी काम करना होगा। मालिक से वसूला गया जुर्माना बच्चे और उसके परिवार के आर्थिक पुनर्वास पर खर्च होना चाहिए, पर ऐसा हो नहीं रहा है। बाल श्रम प्रतिषेध व विनियमन अधिनियम 1986 में परिवर्तन का यह एकदम उपयुक्त समय है। १४ वर्ष तक के बच्चे का किसी भी तरह से काम करना पूर्णतः प्रतिबंधित किया जाना चाहिए, क्योंकि शिक्षा अब उसका कानूनी अधिकार है। साथ ही यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि यदि कहीं बच्चों से काम करवाया जा रहा हो तो कार्रवाई मालिक के साथ-साथ उस क्षेत्र के श्रम अधिकारी पर भी हो।

यह भी देखें

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साँचा:Social issues in India