सदस्य:Ishan Fouzdar/प्रयोगपृष्ठ
जन्मनाम | ईशान फौज़दार |
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लिंग | पुलिंग |
जन्म तिथि | 11th अप्रैल,2001 |
जन्म स्थान | रांची |
निवास स्थान | झारखण्ड |
देश | भारत |
नागरिकता | भारतीय |
शिक्षा तथा पेशा | |
विश्वविद्यालय | क्राइस्ट (डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी), बेंगलुरु |
उच्च माध्यामिक विद्यालय | ब्रिजफोर्ड स्कूल,रांची |
शौक, पसंद, और आस्था | |
शौक | कविताएं लिखना, किताबें पढ़ना, विवाद करना। |
चलचित्र तथा प्रस्तुति | Into The Wild |
सम्पर्क विवरण | |
ईमेल | ishan.fouzdar@arts.christuniversity.in |
परिचय
संपादित करेंमै क्राइस्ट विश्वविद्यालय का छात्र हूं जो वर्तमान में पत्रकारिता मनोविज्ञान और अंग्रेजी में स्नातक कर रहा हूं। मैं रांची का मूल निवासी हूं और अपनी स्कूली शिक्षा रांची से की है। मुझे राजनीति विज्ञान के साथ-साथ धार्मिक अध्ययन में रुचि है। राजनीति के अलावा, मैं कविता और साहित्य विशेष रूप से उर्दू और हिंदी में भी संलग्न हूं। मैं मिर्ज़ा ग़ालिब, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, जयशंकर प्रसाद और रामधारी सिंह 'दिनकर' जैसे कवियों और शायरों से प्रेरणा लेता हूं, और ख़ुद भी लिखने की कोशिश करता हैं।
प्रारंभिक जीवन
संपादित करेंमेरा जन्म भारत के एक छोटे से शहर रांची में हुआ जोकि झारखंड की राजधानी है। रांची को लोग महेंद्र सिंह धोनी के हवाले से जानते हैं और इस बात का एहसास मुझे तब हुआ जब मैं बेंगलुरु पढ़ने के लिए आया। 12वीं तक की पढ़ाई मैंने रांची से ही की, दसवीं तक ब्रिजफोर्ड स्कूल में और 11th-12th दिल्ली पब्लिक स्कूल में। दसवीं तक मैं पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहा पर 11वीं में साइंस लेना मुझ पर भारी पड़ा। बड़ी कठिनाई से 12वीं करने के बाद मैंने अपना रास्ता बदला और पत्रकारिता में आ गया। दसवीं तक मैंने काफी प्रतियोगिताओं में भाग लिया जैसे कि निबंध लेखन, कविता प्रदर्शन, कविता लेखन आदि। 11वीं और 12वीं में मेरी थोड़ी दुर्दशा रही और मैं काफी कम चीजों में भाग ले पाया। मेरा ज्यादातर बचपन मैदानों में गुज़रा। जहां आज के बच्चों के हाथ में फोन होता है, मेरे और मेरे दोस्तों के हाथ में या तो एक बल्ला होता था या एक गेंद। मैं खुद को खुशकिस्मत मानता हूं की इस आधुनिक युग के आने से पहले मेरा बचपन गुजर गया।
परिवार
संपादित करेंमेरा जन्म एक बंगाली परिवार में हुआ, पर ऐसा बिल्कुल नहीं है कि मैं हर दिन 'माच-भात' खाता था। आज जिस प्रकार परिवारों मे दूरियां बढ़ रही है और रिश्ते संकीर्ण होते जा रहे हैं, यह देखकर मुझे बड़ा आश्चर्य होता है क्योंकि मैं हमेशा एक बड़े परिवार में रहा जहां मेरे मम्मी, पापा और भाई के अलावा मेरी दादी, नानी, नाना, मामा, मामी और ममेरा भाई भी रहते थे। मेरी मम्मी एक टीचर हैं, पापा अब सरकारी नौकरी से रिटायर हो चुके हैं और मेरा छोटा भाई अभी कक्षा आठवीं में है।
शिक्षा
संपादित करेंमैंने अपनी 12वी तक की शिक्षा रांची से ही ली। दसवीं तक मैं ब्रिजफोर्ड स्कूल में था। ब्रिजफोर्ड में मेरा दाखिला 2005 में हुआ था और जितना इस् स्कूल ने मुझे सिखाया, उतना शायद ही कभी कोई और सीखा पाएगा। मैंने 12 साल एस स्कूल में गुजारे और दसवीं के बाद दिल्ली पब्लिक स्कूल में दाखिल करा दिया गया। 11वीं में मैंने साइंस स्ट्रीम चुना था जिसे मैं अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी भूल मानता हूं। जहां दसवीं में मेरे 95% नंबर आए थे वहीं 11वीं में 55% हो गए। बड़ी कठिनाई के साथ मैंने 12वीं 91% के साथ पास किया और साइंस को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। फिलहाल मैं क्राइस्ट विश्वविद्यालय से पत्रकारिता मनोविज्ञान और अंग्रेजी में स्नातक कर रहा हूं।
हिंदी के तरफ लगाव
संपादित करें"लिपट जाता हूं मैं और मेरी मौसी मुस्कुराती है,
मैं उर्दू में ग़ज़ल लिखता हूं और हिंदी मुस्कुराती है।"
मुनव्वर राना के यह शब्द मेरे जहन से कभी निकल ही नहीं पाए। मेरा बचपन जयशंकर प्रसाद और रामधारी सिंह 'दिनकर' जैसे कवियों के बीच गुजरा। चाहे वह दिनकर का वीर रस हो या प्रसाद का छायावाद, स्कूल में हिंदी की ऐसी कोई किताब नहीं थी जिनमें इन बड़े कवियों का उल्लेख न हो। हिंदी और मेरी जो यारी है वह कबीर के साथ शुरू हुई और बस चलती ही चली गई। हिंदी से मेरा यह जो लागाव है उसका एक बड़ा हवाला मेरी हिंदी शिक्षिका को जाता है, जिन्होंने मुझे स्कूल में पढ़ाया। इन्होंने मुझे प्रसाद के छायावाद और दिनकर के वीर रस से वाकिफ कराया, प्रेमचंद का यथार्थ समझाया और हरिशंकर परसाई का व्यंग्य बताया। विश्वविद्यालय में आने पर मेरी ग़ज़लों से मुलाकात हुई और मुलाकात हुई ग़ज़लों को इंकलाब का दर्जा दिलाने वाले महाकवि दुष्यंत कुमार से।
"हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए,
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो गए भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए"
दुष्यंत कुमार की एन चुनिंदा पंक्तियों ने जैसे मुझे अपने वश में कर लिया और यहां से मेरा दाखिला हुआ उर्दू में। उर्दू में आते ही मेरा मिर्जा ग़ालिब, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ और मीर तकी मीर जैसे बड़े नामों से सामना हुआ, जिन्हें में अभी भी समझने की कोशिश कर रहा हूं।
मेरे इस 15-16 सालों के सफर में हिंदी एक ऐसा विषय है जिसने हमेशा मेरा साथ दिया। और चाहे दुनिया जितना भी अंग्रेजी को लाड-प्यार करें, हिंदी दिलों पर राज करती रहेगी।
उपलब्धियां
संपादित करेंमेरा मानना है कि सिर्फ एक हस्ताक्षर किया हुआ कागज का टुकड़ा उपलब्धि कहला नहीं सकता। उपलब्धि वह है जब आपके पहले से इकट्ठा किए हुए ज्ञान मे कुछ वृद्धि हो। मेरे लिए यह वृद्धि वाद-विवाद प्रतियोगिताओं, निबंध लेखन, कविता पाठन आदि से हुई। मैंने अपनी स्कूली दिनों से अनेक वाद विवाद प्रतियोगिता में भाग लिया है, और कईं MUNs भी किए।
MUNs के नाम
संपादित करें- Xavier's Diplomacy Summit
- Indian International Model United Nations
- Fututre MUN
- SLCU MUN
काव्य मे उपलब्धियां
संपादित करें- मैंने अनेकों बार निबंध लेखन में भाग लिया, और राष्ट्रीय स्तर पर अपना लोहा मनवाया।
- मेरी एक हिंदी कविता कलयुग, एक कविता संकलन में प्रकाशित हुई और Jain College मे मुझे इसे प्रस्तुत करने के लिए प्रथम पुरस्कर भी मिला।
- मैंने राजनीतिक और धार्मिक मुद्दों पर कुछ अखबारों में लिखने की कोशिश की है और सफल भी रहा हूं, The Hindu एक उदाहरण।
पत्रकारिता में उपलब्धियां
संपादित करें- Talk Journalism 2019- Unconference का विजेता।
- Slant 2019- Press Conference मे पेहला पुरस्कर।
- Karan Thapar, Shashi Tharoor से मिला और सावाल किए।
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सेमिनारो मे भाग
संपादित करें- International Playback Theatre Network Conference
- National Conference on Religion, Faith, and Interfaith Dialogue
- Media Meet,2019
- An International Conference on Visual Cultures in Contexts: Affect, Subversion and Resistance