मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से मथुरा जिले का प्रसिद्ध मन्दिर।

चामुण्डा देवी

चामुण्डा देवी संपादित करें

भूमिका संपादित करें

चामुण्डा देवी माँ दुर्गा का एक प्रमुख रुप है। जब माँ दुर्गा चण्ड और मुण्ड दो राक्षसों का संहार कर रही थी तभी माँ काली का रुप अवतरित कर देवी ने चण्ड और मुण्ड का नाश कर दिया। इस पर माँ दुर्गा ने देवी का नाम चामुण्डी रख दिया। माँ दुर्गा ने कहा कि चण्ड और मुण्ड को मार कर आई हो इसलिए घर घर में आज से चानुण्डी देवी के नाम से होगा तुम्हारा नाम का जाप। यह भी कहा जाता है कि चामुण्डा देवी रक्त बीज नामक राक्षस का संहार करने के लिये अवतरीत हुई थी। राक्षस रक्त बीज को यह वरदान था कि जब भी उसके रक्त की एक बूंद धरती पर गीरे गी तो उससे कई अन्य सैकडो राक्षस पैदा होगे। इसलिए अगर उसके रक्त की एक बूंद धरती पर न गिर कर देवी की जीह़्वा पर गिरे तो राक्षस का नाश हो जायेगा। देवी ने रक्त बीज का लहु पी लिया और जब रक्त धरती पर नहीं गिरा तो राक्षस रक्त बीज मारा गया। इसलिए देवी रक्त चामुण्डी के नाम से भी प्रख्यात है। पुराणों के अनुसार माँ शक्ति के सात रुपों में एक रुप देवी चामुण्डा है। चामुण्डा देवी, संकट और भीषण विनाष का प्रतिक है। चामुण्डा देवी अपने भकतों का हमेशा ध्यान रखती है और हर विपदा से उनको बचाती है। भारत के अलग अलग राज्यों में चामुण्डा देवी की पुजा की जाती है।

इतिहास संपादित करें

     चामुण्दा देवी का मन्दिर बहुत ही दुरस्थ स्थान पर था। उस मन्दिर को नई जगह पर स्थापित किया गया है। चार सौ वर्ष पहले एक राजा और एक ब्राहमण ने देवी से प्रार्थना की कि मन्दिर को किसी नई जगह पर स्थापित किया जा सके। देवी ब्राहमण  के सपने मे आई और उन्होने इसकी अनुमति दे दी। देवी ने कहा कि एक निश्चित स्थान पर उसे एक मूर्ति मिलेगी और उसी मूर्ति को माता का रुप मानकर उसकी मन्दिर मे पूजा हो। ब्राहमण के कहने पर राजा ने अपने सिपाही उस निश्चित स्थान पर भेज दिये। परन्तु सिपाही उसी मूर्ति को उठा न सके। देवी फिर ब्राहचण के सपने मे आई और उन्होंने निर्देश दिया कि सिपाही वह मूर्ति नहीं उठा पा रहे क्योंकि वह उसे एक पत्थर समझ रहे हैं। देवी ने कहा कि अगर वह अगले दिन स्नान करके, शुध्द वस्त्र पहन कर उसी स्थान पर जाये तो वह मूर्ति को उठा सकेगा। देवी के कहे अनुसार ब्राहमण ने किया और उस मूर्ति को उठाकर मन्दिर में देवी की स्थापना हुई और तब से वहाँ चामुण्डा देवी की पूजा होती है।
 
चामुण्डा देवी का मन्दिर

मैसूर चामुण्डी मन्दिर संपादित करें

     मैसूर में चामुण्डी पर्वत पर प्रसिध्द चामुण्डेश्वरी मंदिर है जहाँ पर मैसूर के राजा देवी की पूजा अपनी कूल देवी के रुप में करते है। हिमाचल के कांगरा जिले में पालमपुर के पास देवी का प्रख्यात मंदिर है जहाँ पर भक्त दूर दूर से उनकी पूजा करने आते है। हर वर्ष विजयदशमी के अवसर पर, जमबू सवारी मैसूर की सडको पर निकलती है। देवी की प्रतिमा को सोने के सिहांसन पर रखा जाता है जो बलरामा नाम के हाथी पर सजाया जाता है। पिछले नौ वर्षों से यह हाथी अपने ऊपर इस सिहांसन को रख कर सवारी निकालता है।


[1] [2] [3]

  1. https://en.wikipedia.org/wiki/Chamunda
  2. http://www.hindu-blog.com/2011/09/goddess-chamundi-devi.html
  3. http://www.speakingtree.in/blog/chamundeshwari-devi