सदस्य:Lavya Jain/प्रयोगपृष्ठ

भारत में बेरोजगारी की समस्या

संपादित करें

बेरोजगारी भारत की एक गंभीर समस्या है, जो देश के आर्थिक और सामाजिक विकास को बाधित करती है। यह न केवल व्यक्तियों को प्रभावित करती है, बल्कि पूरे समाज पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। बेरोजगारी की समस्या को दूर करना न केवल एक आर्थिक आवश्यकता है, बल्कि यह सामाजिक स्थिरता के लिए भी जरूरी है।

बेरोजगारी के प्रकार

संपादित करें
  1. खुली बेरोजगारी : इसमें लोग काम करने की इच्छा रखते हैं, लेकिन उन्हें रोजगार नहीं मिल पाता।
  2. प्रच्छन्न बेरोजगारी : इसमें लोग कार्यरत तो होते हैं, लेकिन उनकी उत्पादकता न्यूनतम होती है।
  3. मौसमी बेरोजगारी : यह मुख्य रूप से कृषि क्षेत्र में होती है, जहां कुछ समय के लिए काम की कमी रहती है।
  4. शहरी बेरोजगारी : इसमें शिक्षित और अप्रशिक्षित दोनों वर्ग प्रभावित होते हैं​​।

बेरोजगारी के कारण

संपादित करें

1. आर्थिक विकास की धीमी गति

संपादित करें

भारत का आर्थिक विकास रोजगार सृजन के अनुपात में धीमा रहा है। बड़े उद्योगों और तकनीकी प्रगति के कारण स्वचालन (automation) ने श्रम की मांग को कम कर दिया है।

  • औद्योगिक उत्पादन का संकट: कई उद्योगों में उत्पादन की गति धीमी होने से नई नौकरियों का निर्माण नहीं हो रहा।
  • कृषि क्षेत्र का सीमित योगदान: कृषि में रोजगार देने की क्षमता घट रही है क्योंकि इसमें पहले से ही छिपी हुई बेरोजगारी (hidden unemployment) अधिक है।

2. जनसंख्या वृद्धि

संपादित करें

भारत की बढ़ती आबादी रोजगार के अवसरों को पाटने का काम करती है। हर साल लाखों लोग श्रम बाजार में प्रवेश करते हैं, लेकिन नौकरियां उतनी तेजी से नहीं बनतीं।

  • शहरी क्षेत्रों में दबाव: ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर पलायन के कारण शहरी बेरोजगारी बढ़ रही है।
  • प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव: बढ़ती जनसंख्या संसाधनों की कमी का कारण बनती है, जिससे रोजगार सृजन में बाधा आती है।

3. शिक्षा प्रणाली की कमियाँ

संपादित करें

भारतीय शिक्षा प्रणाली में कौशल-आधारित शिक्षा का अभाव है।

  • व्यावसायिक शिक्षा का अभाव: छात्रों को व्यावसायिक और तकनीकी कौशल सिखाने की बजाय सैद्धांतिक शिक्षा पर अधिक जोर दिया जाता है।
  • योग्यता और रोजगार के बीच असंतुलन: कई बार उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं को उनकी योग्यता के अनुसार काम नहीं मिलता।

4. औद्योगिक विकास का केंद्रीकरण

संपादित करें

बड़े उद्योगों का केवल मेट्रो शहरों और औद्योगिक हब तक सीमित रहना ग्रामीण और छोटे शहरों में रोजगार के अवसरों की कमी को जन्म देता है।

  • ग्रामीण क्षेत्रों में उद्योगों का अभाव: रोजगार के लिए ग्रामीण क्षेत्रों के लोग शहरों की ओर पलायन करते हैं, जिससे शहरी बेरोजगारी बढ़ती है।

5. कोविड-19 का प्रभाव

संपादित करें

महामारी और उसके दौरान लागू लॉकडाउन ने बेरोजगारी को असाधारण रूप से बढ़ा दिया। हजारों कंपनियों ने अपने कर्मचारियों की छंटनी की, खासकर असंगठित क्षेत्र में।

कोविड-19 महामारी और बेरोजगारी

संपादित करें

कोविड-19 महामारी ने भारत में बेरोजगारी पर अभूतपूर्व प्रभाव डाला है। इसका प्रभाव कई स्तरों पर देखा गया:

1. असंगठित क्षेत्र पर प्रभाव

संपादित करें

असंगठित क्षेत्र, जिसमें दिहाड़ी मजदूर, निर्माण श्रमिक, और छोटे व्यापारी आते हैं, महामारी से सबसे अधिक प्रभावित हुआ।

  • काम का अचानक बंद होना: लॉकडाउन के कारण लाखों मजदूर बेरोजगार हो गए।
  • प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा: प्रवासी मजदूरों को अपने गांव वापस लौटना पड़ा, जहां रोजगार के अवसर सीमित थे।

2. औपचारिक क्षेत्र में छंटनी

संपादित करें

बड़ी कंपनियों और कॉर्पोरेट्स ने भी लागत घटाने के लिए अपने कर्मचारियों को निकाल दिया।

  • सफेदपोश नौकरियों का नुकसान: आईटी, बैंकिंग, और अन्य क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर छंटनी हुई।
  • वेतन में कटौती: जो लोग काम पर बने रहे, उन्हें भी वेतन कटौती का सामना करना पड़ा।

3. महिलाओं पर प्रभाव

संपादित करें

महामारी के दौरान महिलाएं विशेष रूप से प्रभावित हुईं।

  • घरेलू श्रमिकों की नौकरियों में गिरावट: घरेलू कामगार महिलाओं को रोजगार से हटा दिया गया।
  • बच्चों की देखभाल और काम के बीच संतुलन: घर से काम करने वाली महिलाओं को अतिरिक्त जिम्मेदारियों का सामना करना पड़ा।

4. शहरी और ग्रामीण बेरोजगारी

संपादित करें
  • शहरी क्षेत्र: शहरी बेरोजगारी दर 24.95% तक पहुंच गई, जो ग्रामीण क्षेत्रों (22.89%) की तुलना में अधिक थी।
  • ग्रामीण क्षेत्र: गांवों में लौटे प्रवासियों ने कृषि पर दबाव बढ़ाया और कृषि में छिपी हुई बेरोजगारी को बढ़ावा दिया।

5. एमजीएनआरईजीए (मनरेगा) का योगदान

संपादित करें

महामारी के दौरान महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGA) ने ग्रामीण बेरोजगारी को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

  • मई और जून 2020 में लगभग 3.9 करोड़ परिवारों को रोजगार दिया गया।
  • हालांकि, यह पर्याप्त नहीं था क्योंकि काम की मांग आवश्यकता से अधिक थी।

6. मनोरंजन और पर्यटन उद्योग का संकट

संपादित करें

महामारी ने पर्यटन, होटल, और मनोरंजन उद्योगों को भी बुरी तरह प्रभावित किया।

  • पर्यटन पर प्रतिबंध: लॉकडाउन और यात्रा प्रतिबंधों ने लाखों लोगों की नौकरियां छीनीं।
  • स्थायी बंदी: कई छोटे व्यवसाय स्थायी रूप से बंद हो गए।

बेरोजगारी दूर करने के उपाय

संपादित करें
  • स्वरोजगार को बढ़ावा:
    • लघु और कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन।
    • स्वरोजगार के लिए वित्तीय सहायता।
  • शिक्षा और प्रशिक्षण:
    • व्यावसायिक शिक्षा पर जोर।
    • कौशल विकास कार्यक्रम।
  • सरकारी योजनाएँ:
    • मनरेगा जैसी योजनाओं का विस्तार।
    • ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में समान रूप से रोजगार सृजन।
  • औद्योगिक विकेंद्रीकरण:
    • छोटे और मध्यम आकार के उद्योगों को ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापित करना।

निष्कर्ष

संपादित करें

बेरोजगारी एक जटिल समस्या है, जिसका समाधान बहुआयामी दृष्टिकोण से करना आवश्यक है। यह न केवल आर्थिक विकास को बढ़ावा देगा, बल्कि समाज में स्थिरता और संतुलन भी लाएगा। कोविड-19 ने बेरोजगारी के संकट को उजागर किया है, लेकिन यह हमें इसके समाधान के लिए नई दृष्टि प्रदान करने का अवसर भी देता है​​।