सदस्य:MalvikaK24/प्रयोगपृष्ठ
शिलाबालिका स्त्री की मूर्ति जिसमें स्त्री की विशेष शैली मे चित्रण हो, जैसे किसी व्रुक्ष् के निचे उसकी एक डाली को पकडे स्त्री की मूर्ति। 'शिलाबलिका' अन्य नामो से कहते है जैसे मदनिका या शालभ्ंजिका।
शालभ्ंजिका का शाब्दिक अर्थ है- 'शाल यानी अशोक) व्रुक्ष को डाली को तोडती हुई। भारतीय मुर्तियों में शिलाबालिका एक सामान्य आभूषित तत्व हैं। इस मनोरम मूर्ति पथर से बने हुए हैं। यहाँ एक स्त्री कईं तरह की मुद्रों में वर्णन किया है जैसे न्रुत्य करते हुए, खुद को तैयार करना या किसि वाध्य यंत्र को बजाना। शिलाबालिका की स्त्रि सद्रुश भाग जैसे स्तन और कूल्हा बढा हुआ हैं। उनके बाल तरह-तरह के ढंग में प्रचलित किया है।
शिलामबालिका अवधरना साला पेड या अनुष्ठान बुलाया 'दोहागा' के माध्यम से अशोक का पेड, या एक युवा महिला के साथ संपर्क के माध्यम से उपजा है। प्रतीकों समय पात्यक्रम पर बदल गया है और शिलाबालिका आमतौर पर भक्तों के कई मंदिर के गर्भग्रुह के पास, परिक्रमा में संलग्न जहाँ क्षेत्र में इस्तेमाल आंकडे बन गया। एक कोपों पर रखा हुआ शिलाबालिका आंकडे भी एक वर्ग के आंकडे के रूप में मंदिर वास्तुकला में इस्तेमाल किया गया हैं। सबसे प्रसिध्द शिलाबालिके मूर्तियों में से कुछ दक्षिण-मध्य कर्नाटक में बीसवी सदी के होयसाल मंदिरों बेलुर,हलेबीडु और सोमनाथपुरा में पाया जा रहे हैं।