जूड फेलिक्स का जन्म २६ जनवरी १९६५ को बेंगलूरू मे हुआ। उनकी पढा़ई सैंट जर्मन स्कूल में हुई और सिर्फ ९ साल की उम्र से ही हॉकी खेलना शुरु कर दिया था। वह हॉकी के क्षेत्र में एक दुर्लभ कौशल, अपने रिवर्स फ्लिक के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने हॉकी को बहुत विवेक के साथ खेला और अपनी अनोखी कलाकृति से हर किसी को आकर्षित किया। "अपने देश के प्रतिनिधित्व बनने से बढ़कर कुछ भी नहीॱ है" ऐसी गहरी सोच रखने वाले एक महान भारतीय हॉकी खिलाडी से मैं आज आपको परिचित कराने जा रहा हूँ। उच्चतम में भारतीय हॉकी का प्रतिनिधित्व करने के बाद, अब वह अपने अकादमी में वंचित बच्चों को प्रशिक्षित करते हैं।

पेशावर जीवन संपादित करें

जूड फेलिक्स १९९३ से १९९५ तक भारतीय हॉकी टीम के कप्तान थे और उच्चतम स्तर पर भारतीय हॉकी को प्रतिनिधित्व किया था। उनकि कुचछ उपलभ्दियाँ है; उन्होंने भारत के लिए २५० से अधिक अंतरराष्ट्रीय हॉकी मैचों में खेला हैं, एफआईएच (इंटरनेशनल हॉकी फेडरेशन) द्वारा सात सर्वश्रेष्ठ अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों में से एक चुने गये थे, १९९३-१९९५ तक भारतीय हॉकी टीम के कप्तान, अर्जुन पुरस्कार विजेता, चार वर्षों तक एफआईएच एथलीटों के पैनल के सदस्य और कई टीमों के लिए खेला है और दुनिया भर के कई खिलाड़ियों को कोच बनकर प्रतिनिधित्व किया है।

बचपन संपादित करें

नौ वर्ष की निविदा उम्र में खेलना शुरू करने के बाद, फ़ेलिक्स ने हमारे राष्ट्रीय खेल में भाग लिया क्योंकि ओलंपिक और विश्व कप में भारत के प्रदर्शन के कारण खेल में काफी प्रचार और रुचि उस समय दिख रही थी। वे फुटबॉल में भी अच्छे थे लेकिन हॉकी ने उनका बहुत ध्यान आकर्षित किया और उन्होंने अपनी स्कूल टीम के लिए हॉकी खेला, कई कार्यक्रमों पर हावी होने और गोल करने के लक्ष्य बनाए। इन्ही कारणों कि वजह से आज वे इतने ऊँँचे पायदान तक पहुँँच पाये। आपने बचपन से ही अप्ने लक्ष की तय्यारी शुरु कर दी थी।

सोच और संदेश संपादित करें

फेलिक्स कई शिविरों में भाग लेने लगे - सबसे महत्वपूर्ण नेहरू हॉकी शिविर था, जिसने उन्हें पूरे भारत के खिलाड़ियों से बातचीत करने की अनुमति दी। वह राज्य-जूनियर स्तर और अंततः राष्ट्रीय स्तर के लिए खेलने के लिए खेलने गया। यहा पर मैंने फेलिक्स के द्वारा कही गयी भारतीय हॉकी कि परिशानियों के बारे में लिखता हूँ- "यहां राजनीति, अनुचित प्रशासन और उचित प्रशिक्षण उपकरण और सुविधाओं की कमी है। भारत में हमारे पास ५०-७५ हॉकी टर्फ हैं, बलकि हॉलैंड जैसे छोटे देश में हजारों से अधिक टर्फ मौजूद है। फेलिक्स ने कहा कि हॉकी एक धन-कताई खेल नहीं है और उसे वित्तीय स्थिरता के लिए विदेश जाना पड़ा"।[1]

पेशावर उपलब्धियाँ संपादित करें

उन्होंने सिंगापुर मनोरंजन क्लब के लिए एक खिलाड़ी कोच के रूप में खेला और उन्हें कई अन्य जीतों के अलावा प्रतिष्ठित मलेशियाई जोहोर बहरु लीग में जीत हासिल की। फ़ेलिक्स ने फ्रांस में रेसिंग हॉकी क्लब, ल्यों के हॉकी कार्यक्रम और लंदन में भारतीय जिमखाना के लिए भी खेला।उन्होंने १९९३ के विश्व कप में और १९९४ में हिरोशिमा में एशियाई खेलों में भारतीय टीम का नेतृत्व किया। उन्होंने १९८८ (कोरिया) और १९९२ (बार्सिलोना) में दो ओलंपिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया, १९९० (पाकिस्तान) और १९९४ (सिडनी) में दो विश्व कप, १९९० (बीजिंग) और १९९४ (हिरोशिमा) और तीन चैंपियंस ट्रॉफी में १९८५ में दो एशियाई खेलों (ऑस्ट्रेलिया), १९८७ (पाकिस्तान) और १९८९ (बर्लिन) में भारत को प्रतिनिधित्व किया।[2]

जूड फेलिक्स हॉकी अकादमी संपादित करें

फेलिक्स हमेशा हॉकी विशेष रूप से वंचित बच्चों में छोटे बच्चों को प्रशिक्षित करना चाहता थे। उन्होंने कुक टाउन में सेंट मैरी अनाथालय से संपर्क किया और वहां से बच्चों को प्रशिक्षित करने का मौका मिला। आपने लगभग 30-40 बच्चों के साथ शुरुआत की और आज हमारे पास सौ से अधिक हैं और निकट भविष्य में ८० और् बच्चों को जोड़ने जा रहे हैं। "जुड फेलिक्स हॉकी अकादमी (जेएफएचए) कैसे धन उत्पन्न करती है?" पूछा तो उनका जवाब था "हमारे पास नियमित प्रायोजक नहीं हैं। कभी-कभी हमारी घटनाएं प्रायोजित होती हैं। अधिकांश कामकाज हमारे दोस्तों और शुभचिंतकों के दान के लिए धन्यवाद है। हमारे पास कुछ महान स्वयंसेवक हैं जिनमें सच्ची वर्की, बिपीन फर्नांडीस, दयालान इत्यादि जैसे हॉकी सितारे है।

जे एफ एच ए क्लब आपका अधिकांश समय लेता है, लेकिन जब भी उनको कुछ समय बिताना पड़ता है, तो वह उसे अपने बच्चों के साथ बिताते है। थाई भोजन के प्रशंसक, फेलिक्स का मानना है कि बैंगलोर में प्रामाणिक थाई भोजन के लिए बहुत कम विकल्प हैं और इसलिए उन्हें कहीं भी खाना अच्छा नहीं लगता है। फ़ेलिक्स लगातार पब-काँलर थे। मौसम के अलावा, उन्हें अपने पब के लिए बैंगलोर पसंद है। उनका पसंन्दीदा पब "वर्ल्ड" था। लेकिन वे वर्षों से एक पब भी नहीं गये हैं।

संदर्भ संपादित करें