सदस्य:Merlin152/प्रयोगपृष्ठ
पाकिस्तान के राष्ट्रपति।
प्रारंभिक जीवन
संपादित करेंजन्म
संपादित करेंपाकिस्तान इस्लामी गणराज्य के भूतपूर्व राष्ट्रपति, सरदार फारूक अहमद खान लेगारी का जन्म छोटी ज़ारीन, पंजाब नामक एक ग्राम में २९ मई, १९४० में हुआ था।[1] वह एक राजनीतिक परिवार से थे। यह परिवार आर्थीक और राजनीतिक रूप से समृद्ध था। उनके पिता नवाब मोहम्मद लेगारी और उनके दादा नवाब जमाल लेगारी, दोनों एक प्रगतिशील मार्गदर्शक थे जिन्होंने अपने कुल में नवीनतम विचारों को प्रस्तावित किया। उनके पिता ने पाकिस्तान आंदोलन में अपनी मुख्य भूमिका निभाई जिसकी वजह से उन्हें १९४६ में राजनीतिय कैदी के तौर पर बन्द कर दिया। भारत के विभाजन के बाद उनके पिता पंजाब में (१९४९ से १९५५ तक) मंत्री पद पर कार्यरत थे। उनके दादा जी नवाब मोहम्मद जमाल खान लेगारी भी मंत्री पद पर कार्य कर चुके थे।
शिक्षा
संपादित करेंवह एक बहुत होशियार बालक थे और अपने स्कूल के समय कई और गतिविधियों में भी हिस्सा लिया करते थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा 'एचिसन कॉलेज' में हुई थी जहाँ वो 'हेड़बॉय' रह चुके थे।[2] स्कूल छोड़ते समय उनको 'र्स्वश्रेष्ट छात्र' घोषित किया गया था। उन्होंने अपना ग्रेजुएशन पूर्व 'क्रिश्चियन कॉलेज', लाहौर से पूरा किया और फिर उच्च शिक्षा के लिए 'ऑक्सफोर्ड़ विश्वविद्यालय' में पढ़ने गए। 'ऑक्सफोर्ड़ विश्वविद्यालय' में उन्होंने राजनीति, अर्थशास्त्र और दर्शन शास्त्र जैसे विषयों में शिक्षा हासिल की। लेगारी एक उत्सुक और बराबरी की मनोभावना रखने वाले खिलाड़ी हुआ करते थे। वे उल्टे हाथ से प्रहार करने वाले टेनिस खिलाड़ी तथा रोज पोलो मैदान में पोलो खेलने वाले खिलाड़ी थे। सन् १९७४ में साँतवे 'एशियन गेम्स' ज्योंकि तेहरान, इरान में आयोजित हुए, उसमें उन्होंने पाकिस्तानी निशानेबाज की तरह अपने आप को प्रस्तुत किया।
राजनीतिक जीवन
संपादित करेंफारूक लेगारी अपने देश में एक प्रमुख ज़मीनदार हुआ करते थे जिनके पास अपनी तकरीबन २५०० एकड़ ज़मीन थे। सरदार फारूक अहमद खान लेगारी ने सन् १९६३ में पढ़ाई पूरी कर पाकिस्तान वापस आए और वे लोक सेवा में शामिल हो गए और कुछ समय तक पूर्व पाकिस्तान में कार्यरत रहे। अपने पिता के देहांत के बाद वो अपने गाँव वापस आए और वहाँ के लोगों की समस्याओं को दूर किया। अपने पिता की मृत्यु के बाद वे अपने जनजाति के मुख्य हुए। सन् १९७३ में पाकिस्तानी राष्ट्रपति जुलफिकर अली भूटो के निमंत्रण पर उन्होंने अपना पद (लोक सेवा) त्याग दिया और 'पाकिस्तान पीपल्स पार्टी' में शामिल हुए। सन् १९७७ में उन्होंने आम चुनाव में लड़ने को तैयार हुए। उनका निर्वाचक क्षेत्र 'ड़ी जी खान' नामक जगह थी, जहाँ उन्होंने 'पाकिस्तान पीपल्स पार्टी' का प्रतिनिधत्व किया। उन्हें विजय प्राप्त हुई। सन् १९८० में जिया ऊल हक के प्रशासन काल में एक मुख्य व्यक्ति के तौर पर जन प्रदर्शन कर वो सामने आये जिसकी वजह से उन्हें पुलिस ने कई बार बन्दी बनाया। लेगारी एक मान्य व्यक्ति थे जिन्होंने कभी घूसखोर एंव जुर्म की दल-दल में फसे राजनेताओं की तरह अपना नाम जुर्म की सूची में नहीं बल्कि अच्छे राजनेताओं की सूची में अपना नाम कमाया। इसलिए उन्हें प्रधानमंत्री भूटो तथा 'पाकिस्तान पीपल्स पार्टी' का पूरा समर्थन मिला और जिसकी वजह से उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में अपना नामांकन पत्र भरा। काफी गहमा गहमी के बाद राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव की बारी आई। कड़े मुकाबले के बाद राष्ट्रपति चुनाव में लेगारी जी की जीत हुई। अगले दिन उन्हें पाकिस्तान का आँठवा राष्ट्रपति पाँच साल के लिए चुन लिया गया।[3] लेकिन उन्होंने अपने ही सरकार को भ्रष्टाचार के आरोप में बरखास्त कर दिया और एक दूसरी पार्टी का आंरभ किया जिसका नाम 'मिल्लट पार्टी' रखा। वह पाकिस्तान के प्रथम राष्ट्रपति थे जिन्होंने अपनी ही सरकार को बरखास्त किया। 'मिल्लट पार्टी' के साथ, सात अन्य पार्टियों का गठबंधन हुआ और इसका नाम 'नेशनल एलायंस' रखा गया। ये उन पार्टियों है जिन्होंने 'मिल्लट पार्टी' के साथ गठबंधन किया है- 'नेशनल पीपल्स पार्टी', 'नेशनल अवामी पार्टी', 'सिंध नेशनल फ्रंट', 'सिंध डेमोक्रेटिक एलायंस', ' निजामी मुस्तफा पार्टी', 'बलूचिस्तान नेशनल पार्टी'। राष्ट्रपति पद संभालने के बाद भी राजनीति में उनका काफी उल्लेखनीय योगदान रहा था।
निधन
संपादित करेंसरदार फारुक अहमद खान लेगारी का निधन २० अक्टूबर, २०१० को रावलपिंड़ी में हुआ। उनका अंतिम संस्कार छोटी ज़रीन गाँव में किया गया।[4] सरदार फारूक अहमद खान लेगारी की अंतिम विदाई में डेरा गाज़ी के सभी लोग और सभी राजनीतिक वर्ग के लोग शामिल थे। वह एक बहुत महान नेता थे और राजनीति में बहुत सफल रहे। आज भी लोग उन्हें उनकी ईमानदारी, प्रतिबद्धता और सरलाता के लिए याद करते है। इतने बड़े और अमीर होने के बाद भी वह एक सरल जीवन बिताने में विशवास रखते थे।