सदस्य:Nandini kapoor2330764/प्रयोगपृष्ठ
हमारे समाज का कोढ़ : दहेज - प्रथा
प्रस्तावना
दहेज प्रथा आज के भारतीय समाज में एक गंभीर संकट बन चुकी है। इस अव्यवस्था की वजह से न जाने कितनी युवा महिलाएं असमय मौत के मुंह में समा रही हैं। समाचार पत्रों में प्रतिदिन हत्याओं और आत्महत्याओं की भयावह घटनाएं छपती रहती हैं। महिलाओं के प्रति हिंसा और उत्पीड़न की कहानियाँ सुनकर किसी भी संवेदनशील व्यक्ति का मन दुख और शर्म से भर जाता है। यह दहेज का दुष्चक्र भारतीय समाज के लिए एक गहरा कलंक है, जो दिन-प्रतिदिन और विकृत रूप धारण कर रहा है।
यदि समय रहते इस भयानक समस्या का समाधान नहीं किया गया, तो समाज की नैतिक धारणाएं गंभीर खतरे में पड़ जाएँगी और मानव मूल्य तेजी से घटेंगे। इस विकृति पर नियंत्रण पाने के लिए ठोस उपायों की आवश्यकता है।
दहेज का अर्थ
दहेज का सामान्य अर्थ उन वस्तुओं और संपत्तियों से है, जिन्हें विवाह के अवसर पर बहू के परिवार द्वारा वर के परिवार को दिया जाता है। पहले इसका उद्देश्य स्वैच्छिक रूप से सहयोग करना था, लेकिन वर्तमान समय में इसका अर्थ पूरी तरह बदल गया है। आज, दहेज का तात्पर्य उन संपत्तियों या मूल्यवान वस्तुओं से है, जिन्हें कन्या पक्ष विवाह के एक पूर्व या पश्चात् प्रावधान के रूप में वर पक्ष को प्रदान करता है। वास्तव में, इसे दहेज के बजाय 'वर मूल्य' के रूप में संदर्भित करना अधिक उपयुक्त होगा।
दहेज- प्रथा के प्रसार के कारण
दहेज प्रथा के विस्तार के अनेक कारण हैं । इनमें से मुख्य कारण है -
(क) धन के प्रति अधिक आकर्षण - वर्तमान युग भौतिकवाद में डूबा हुआ है, जहां धन का महत्व निरंतर बढ़ता जा रहा है। समाज में धन को सामाजिक और पारिवारिक प्रतिष्ठा के मूल आधार के रूप में देखा जा रहा है। इस बढ़ती प्रतिस्पर्धा में, लोग हर संभव तरीके से धन एकत्रित करने में लगे हैं। वर-पक्ष ऐसे परिवारों से संबंध स्थापित करना चाहता है, जो धनवान हों और जिनसे अधिक से अधिक धन प्राप्त किया जा सके।
(ख) जीवन साथी चुनने का सीमित क्षेत्र - हमारा समाज अनेक जातियों और उपजातियों में विभाजित है। ज्यादातर माता-पिता अपनी बेटियों के लिए विवाह अपने ही जाति या उच्च जाति के लड़कों से करना पसंद करते हैं। ऐसी स्थिति में, उपयुक्त वर खोजने में बहुत कठिनाई होती है। नतीजतन, वर-पक्ष की ओर से दहेज की मांग शुरू हो जाती है।
(ग) बाल विवाह - बाल विवाह के कारण युवाओं को अपने जीवनसाथी का चयन करने का अवसर नहीं मिलता है। इस स्थिति में विवाह का पूरा अधिकार माता-पिता के पास रहता है, जो अक्सर लड़के के माता-पिता को अधिक दहेज की मांग की प्रेरणा देता है।
(घ) शिक्षा और व्यक्तिगत प्रतिष्ठा - आज के समय में शिक्षा बहुत महंगी होती जा रही है। माता-पिता को कभी-कभार अपने बच्चे की शिक्षा के लिए अपनी आर्थिक क्षमता से अधिक खर्च करना पड़ता है। यह खर्च वे दहेज के माध्यम से रेखांकित करना चाहते हैं, जिसे वे पुत्र के विवाह के समय प्राप्त करना चाहते हैं। शिक्षित युवक उच्च पदों पर कार्य करके सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं, लेकिन उनकी संख्या सीमित है। प्रत्येक माता-पिता की इच्छा होती है कि उनकी बेटी का विवाह किसी उच्च पदस्थ और प्रतिष्ठित युवक से हो। इस कारण वर के लिए दहेज की मांग लगातार बढ़ती जा रही है।
(ड) विवाह की अनिवार्यता -
हिंदू धर्म में एक निर्धारित समय पर कन्या का विवाह करना अनिवार्य माना जाता है, जो परिवारों में विवाह के प्रति दबाव को बढ़ाता है।
दहेज प्रथा के दुष्परिणाम
दहेज प्रथा ने हमारे सामाजिक ताने-बाने को बुरी तरह प्रभावित किया है, जिससे समाज स्वार्थी और भटकाव के मार्ग पर चला गया है। यह एक ऐसा अभिशाप है जो इतनी गहराई तक फैल चुका है कि कन्या के माता-पिता, जो दहेज की बुराई के खिलाफ आवाज उठाते हैं, खुद भी अपने पुत्र के विवाह के अवसर पर मुंह मांगे दहेज की इच्छा रखने लगते हैं। इस प्रथा ने समाज में कई विकृतियों को जन्म दिया है और अनेक नई समस्याओं को जन्म दिया है जो दिन-ब-दिन गंभीर होती जा रही हैं।
(क) बेमेल विवाह - दहेज प्रथा के चलते आर्थिक रूप से कमजोर माता-पिता अपनी पुत्रियों के लिए उपयुक्त वर की तलाश करने में असमर्थ रहते हैं। परिणामस्वरूप, वे विवश हो जाते हैं कि अपनी पुत्री का विवाह ऐसे अयोग्य लड़के से करें, जिसकी माता-पिता कम दहेज पर शादी के लिए राजी होते हैं। दहेज की अनुपस्थिति के कारण कई बार माता-पिता अपनी कम उम्र की लड़कियों का विवाह अधिक उम्र के पुरुषों से कर देने पर मजबूर होते हैं।
(ख) ऋणग्रस्तता - दहेज प्रथा के कारण वर पक्ष की मांग को पूरा करने के लिए कई बार कन्या के पिता को ऋण भी लेना पड़ता है। परिणाम स्वरुप अनेक परिवार आजन्म ऋण की चक्की में पिसते रहते हैं।
।(ग) कन्याओं का दुखद वैवाहिक जीवन - वर पक्ष की मांग के अनुसार दहेज न देने अथवा दहेज में किसी प्रकार की कमी रह जाने के कारण नव वधु को ससुराल में अपमानित होना पड़ता है।
(घ) आत्महत्या - दहेज के अभाव में उपयुक्त वर न मिलने के कारण अपने माता-पिता को चिंता मुक्त करने हेतु अनेक लड़कियां आत्महत्या भी कर लेती हैं ।कभी-कभी ससुराल के लोगों के ताने सुनने तथा अपमानित होने पर वैवाहिक स्त्रियां भी अपने स्वाभिमान की रक्षा हेतु आत्महत्या कर लेती हैं।
(ड) अविवाहिताओं की संख्या में वृद्धि - दहेज प्रथा के कारण कई बार निर्धन परिवारों की लड़कियों को उपयुक्त वर नहीं मिल पाते। आर्थिक दृष्टि से दुर्बल परिवारों को जागरूक युवतियां गुणहीन तथा निम्न स्तरीय युवकों से विवाह करने की अपेक्षा अविवाहित रहना पसंद करती हैं। जिससे अनैतिक संबंधों और यौन कुंठाओं जैसी अनेक सामाजिक विकृतियों को बढ़ावा मिलता है।
समस्या का समाधान
दहेज प्रथा समाज के लिए निश्चित ही एक अभिशाप है ।कानून एवं समाज सुधारकों ने दहेज से मुक्ति के अनेक उपाय सुझाए हैं। यहां पर उनके संबंध में संक्षेप में विचार किया जा रहा है।
(क) कानून द्वारा प्रतिबंध- अनेक व्यक्तियों का विचार था कि दहेज के लेनदेन पर कानून द्वारा प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए फलत: 9 मई 1961 ई० को भारतीय संसद में दहेज निरोधक अधिनियम स्वीकार कर लिया गया ।विवाह तय करते समय किसी भी प्रकार की शर्त लगाना कानूनी अपराध होगा जिसके लिए उत्तरदायी व्यक्तियों को 6 मास का कारावास तथा ₹5000 तक का आर्थिक दंड दिया जा सकता है।
(ख) अंतर्जातीय विवाहो को प्रोत्साहन - अंतर्जातीय विवाह को प्रोत्साहन देने से वर का चुनाव करने के क्षेत्र में विस्तार होगा । तथा युवतियों के लिए योग्य वर खोजने में सुविधा होगी। इससे दहेज की मांग में भी कमी आएगी।
(ग) युवकों को स्वावलंबी बनाया जाए- स्वावलंबी होने पर युवक अपनी इच्छा से लड़की का चयन कर सकेंगे ।दहेज की मांग अधिकतर युवकों की ओर से न होकर उनके माता-पिता की ओर से होती है ।स्वावलंबी युवको पर माता-पिता का दबाव कम होने पर दहेज के लेनदेन में स्वत:कमी आएगी ।
(घ) लड़कियों की शिक्षा - जब लड़कियां भी शिक्षित होकर स्वावलंबी बनेगी तो वह अपने जीवन निर्वाह करने में भी समर्थ हो सकेंगी। दहेज की अपेक्षा आजीवन उनके द्वारा कमाया गया धन कहीं अधिक होगा ।इस प्रकार की युवतियों की दृष्टि में विवाह एक विवशता के रूप में भी नहीं होगा ,जिसका वर पक्ष प्रायः अनुचित लाभ उठाता है।
(ड) जीवन साथी चुनने का अधिकार - युवक युवतियों को अपना जीवन साथी चुनने के लिए अधिक छूट मिलनी चाहिए। शिक्षा के प्रसार के साथ-साथ युवक युवतियों में इस प्रकार का वैचारिक परिवर्तन संभव है । इस परिवर्तन के फल स्वरुप विवाह से पूर्व एक दूसरे के विचारों से अवगत होने का पूर्ण अवसर प्राप्त हो सकेगा ।
उपसंहार
दहेज प्रथा एक सामाजिक बुराई है ।अतः इसके विरुद्ध स्वस्थ जनमत का निर्माण करना चाहिए ।जब तक समाज में जागृति नहीं होगी दहेज रूपी दैत्य से मुक्ति कठिन है । राजनेताओं ,समाज - सुधारको तथा युवक युवतियों आदि सभी के सहयोग से ही दहेज प्रथा का अंत हो सकता है ।