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Dechka astha (वार्ता) 17:03, 16 जनवरी 2016 (UTC)

Dechka astha (वार्ता) 16:47, 16 जनवरी 2016 (UTC)

अलेक्जेंडर फ्लेमिंग

Terrassa a Fleming


प्रारंभिक जीवन और शिक्षा संपादित करें

सर अलेक्जेंडर फ्लेमिंग के जन्म स्कॉटलैंड के लोचफील्ड नमक जगह में ६ अक्तूबर 1881 को हुआ था। लंदन मे जाने से पेहले उनके पढाई लौडेन लंगर स्कूल, डार्वेल स्कूल, और किल्मर्नोक अकादमी मे हुआ और लंदन मे आकर पॉलिटेक्निक में भाग लिया। उन्होंने सेंट मैरी मेडिकल स्कूल, लंदन विश्वविद्यालय में प्रवेश करने से पहले एक शिपिंग कार्यालय में चातर साल बिताए। उन्होंने 1906 में गौरव के साथ अपने पढाई खतम करके सर अल्म्रोत राइट जो वाक्सीन चिकित्सा के क्षेत्र में अग्रणी थे, उनके साथ रिसेर्च करना शुरू किया। उन्होंने 1908 में स्वर्ण पदक के साथ एम बी बी एस प्राप्त की। वे 1914 तक सेंट मैरी में प्राध्यापक बन गए। उन्होंने अर्मी मेडिकल कोर्प्स में एक कप्तान के रूप में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान सेवा की और 1918 में वह सेन्त्मेरींट मेरी लौट आए। उन्होंने कहा कि वह 1943 में फैलो आफ रोयल सोसाईटी चुने गए और 1944 में knight की उपाधि दी गई थी। उनके प्रसिद्द काम 1923 में से है एंजाइम लाइसोसोम का अविष्कार और पेनिसिलियम नोटेटम से एंटीबायोटिक पदार्थ बेंजिलपेनिसिलिन (पेनिसिलिन जी) का आविष्कार जिस के लिये उन्हे हावर्ड फ्लोरे और अर्नस्ट बोरिस चेन के साथ 1945 में फिजियोलॉजी या चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार साझा की है। उन्होंने जीवाणु विज्ञान, इम्यूनोलॉजी, और कीमोथेरेपी पर कई लेख लिखा है।

अनुसंधान संपादित करें

 
Flemming laboratory (1)

प्रथम विश्व युद्ध के बाद, घावों से उत्पन्न पूति से कई सैनिकों की मौत को देख फ्लेमिंग् विरोधी बैक्टीरियल एजेंट की खोज में लग गए। अन्टीसेप्टिकस हमलावर बैक्टीरिया को मार डालने के बजाय मरीजों की प्रतिरक्षा गढ़ को हानी पहुंचाया। युद्ध के दौरान मेडिकल जर्नल "दी लैंसेट" की एक लेख में, फ्लेमिंग उन्होंने अपने एक परीक्षण से उन्होने यह समझाया की विश्व युद्ध एक मे इनफ़ेक्शन से ज्यादा लोग अन्टीसेप्टिकस के कारण मारे जा रहे थे। सतह पर अन्टीसेप्टिकस अच्छे से काम कर लेता लेकिन एंटीसेप्टिक एजेंट के कारण गहरे घाव मे बैक्टीरिया फैल जाता था। उनहोने द्रड निश्चय से यह कहा की अन्टिसेप्टिक्स के कारण ही सैनिक लोग मर रहे थे। । सर अल्म्रोत् राइट फ्लेमिंग के जाँच परिणामो का समर्थन किया है, इस के बावजूद भी चिकित्सा के लिये अन्टिसेप्टिक्स क उपयोग करना जारी रखा।

आधुनिक चिकित्सा के बढ़ते कदमों में एंटीबायोटिक की खोज निःसंदेह एक लंबी छलांग है। विश्व की पहली एंटीबायोटिक पेनिसिलिन की खोज अलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने सन 1928 में की थी। स्काटिश चिकित्सक फ्लेमिंग का जन्म हुआ था 6 अगस्त 1881 को।

 
Flemming laboratory (2)

प्रथम विश्व युद्ध के समय फ्लेमिंग बैक्टीरियोलाजिस्ट आल्मरथ राइट को असिस्ट कर रहा था। उन्होंने पाया कि एण्टीसेप्टिक जख्म के बाहरी हिस्से के लिए तो करगर होते हैं, लेकिन शरीर के भीतरी हिस्सों के लिए हानिकारक होते हैं। क्योंकि ये शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को समाप्त कर देते हैं। एक एक्सपेरीमेन्ट के द्वारा फ्लेमिंग ने दिखाया कि एण्टीसेप्टिक किस तरह रोग प्रतिरोधक क्षमता को रोग से भी ज्यादा तेजी से खत्म करते हैं। आल्मरथ राइट ने फ्लेमिंग की खोज की पुष्टि की लेकिन इसके बावजूद सेना के चिकित्सकों ने एण्टीसेप्टिक का प्रयोग जारी रखा जबकि घायलों की दशा इससे बिगड़ती गयी।

उसी समय फ्लेमिंग ने एक क्रान्तिकारी खोज की। वह उस समय स्टैफिलोकोकी नामक बैक्टीरिया पर शोध कर रहा था। एक सुबह जब वह लैब में पहुंचा तो उसने देखा कि बैक्टीरिया कल्चर की प्लेट पर थोड़ी सी फंफूंदी लगी चुकी है। और खास बात यह थी कि जितनी दूर यह फंफूदी उगी हुई थी उतनी दूर बैक्टीरिया का नामोनिशान नहीं था। उसने इस फफूंदी पर और रिसर्च की और पाया कि यह बैक्टीरिया को मारने में पूरी तरह कारगर थी। शुरूआत में फ्लेमिंगने इसका नाम दिया मोल्ड जूस, जो बाद में पेनिसिलीन में परिवर्तित हो गया। यही थी विश्व की पहली एण्टीबायोटिक यानि बैक्टीरिया किलर।

उसने पाया कि पेनिसिलीन स्कारलेट फीवर निमोनया , मेनिनजाइटिस और डिप्थीरिया जैसी बीमारियों में काफी कारगर है। शुरूआत में पेनिसिलीन की ओर चिकित्सा जगत का आकर्षण कम ही रहा। इसके पीछे कई कारण थे। एक तो इसके प्लांट यानि फफूंदी को उगाना बहुत मुश्किल था, और इससे एण्टीबायोटिक कारक अलग करना और भी दुष्कर था। तो इस वजह से इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन खर्चीला और कठिन था। दूसरी दुश्वारी पेनिसिलीन के साथ यह थी कि यह मानव शरीर में बहुत थोड़ी देर टिकती थी और अधिकतर मूत्र के साथ निकल जाती थी। उस समय के चिकित्सक इसकी कीमत को देखते हुए मूत्र से निकली दवा पुनः उपयोग में ले आते थे।

फ्लेमिंग ने इन कमियों को दूर करने की कोशिश कि किन्तु वह अधिक कामयाब नहीं हो पाया। अतः उसने उसमें रुचि लेनी छोड़ दी किन्तु लैब में उसने अपना शोध जारी रखा और उसके अनेकों गुण धर्म ज्ञात किये। साथ ही उसने उन वैज्ञानिकों को भी पूरा सहयोग दिया जो पेनिसिलीन के बारे में शोध करना चाहते थे।

बाद में 1940 के आसपास अनस्र्ट चेन तथा उसकी टीम ने पेनिसिलीन का स्ट्रक्चर ज्ञात किया और उसका औद्योगिक उत्पादन संभव बनाया। तब अलेक्जेंडर फ्लेमिंग की खोज की महत्ता को पूर्ण रूप से दुनिया ने पहचाना। इन्हें 1945 के नोबुल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

बाद में अनेकों तरह के एण्टीबायोटिक के आविष्कार हुए। फ्लेमिंग ने यह भी ज्ञात कर लिया था कि बैक्टीरिया एण्टीबायोटिक के खिलाफ प्रतिरोध क्षमता भी पैदा कर लेते हैं। अतः उन्होंने इसके प्रयोग में सावधानी बरतने को कहा और बताया कि जब तक बहुत जरूरी न हो इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए। आज अच्छे चिकित्सक इसका प्रयोग कम ही करते हैं।

1927 तक, फ्लेमिंग स्टफैलोकोकी की जांच कर रहे थे। वह पहले से ही अपने काम से अच्छी तरह से जाने जाता था, और एक प्रसिद्ध् शोधकर्ता माने गये थे। लेकिन उनके प्रयोगशाला अक्सर गन्दा हुआ करता था। ३ सितंबर 1928 को अगस्त में अपने परिवार के साथ छुट्टी बिताने के बाद फ्लेमिंग अपने प्रयोगशाला में लौट आए जाने से पहले वह अपनी प्रयोगशाला के एक कोने में एक बेंच पर स्टफैलोकोकी की ढेर लागाकर गए थे। लौटने पर फ्लेमिंग ने देखा कि एक कालोनी, फंगस से दूषित हो चुका था, और तुरंत फंगस आसपास के स्टफैलोकोकी की कालोनियों को नष्ट कर दिया, अन्य स्टफैलोकोकी कालोनियों जो कुछ दूरी मे थे उसे कुछ हानि नही हुई थी। कुछ दिनो बाद उन्होने यह पता किया कि उन कलोनियो से एक पदार्थ उत्पन्न हुआ था जो हानिकारक बाक्टिरियो का नाश कर सकता था। इस तरह से पेनिसिलियम जीनस से पेनिसिलिन का आविष्कार हुआ। जिस् प्रयोगशाला मे फ्लेमिंग ने पेनिसिलिन की आविष्कार की थी उसे अलेक्जेंडर फ्लेमिंग प्रयोगशाला संग्रहालय के नाम से पड्डिंगटन के सेंट मेरी अस्पताल मे संरक्षित की गयी है।

एंटीबायोटिक्स संपादित करें

आधुनिक एंटीबायोटिक की यात्रा फ्लेमिंग की पेनिसिलिन की आविष्कार के सात शुरू हुआ। । इससे पहले, कई वैज्ञानिक यह जान चुके थे कि मोल्ड या पेनिसिलियम पशुओं में जीवाणु संक्रमण के इलाज के लिए और जीवाणु के विकास को बाधित करने में सक्षम है, और थे। लेकिन इन पेनिसिलिन को अलग करके इसे साबित करने वाला पहला व्यक्ती फ्लेमिंग था। से आगे इन अध्ययनों पुश करने के लिए पहली बार था। फ्लेमिंग ने यह भी बोधित किया कि बहुत कम पेनिसिलिन इस्तेमाल करने पर, बैक्टीरिया अप्ने में एंटीबायोटिक प्रतिरोध विकसित किया । फ्लेमिंग दुनिया भर में अपने कई भाषणों में पेनिसिलिन के इस्तेमाल के बारे में आगाह किया है। उनहोने कहा कि बिना कारण के पेनिसिलिन लेना नही चाहिए और अगर उसका उपयोग करे तो छोटी मात्रा मे नही लेना चाहिए क्योंकि इससे बैक्टीरिया का प्रतिरोध विकसित हो जाता है।


पुरस्कार और सम्मान संपादित करें

फ्लेमिंग 1945 में स्वीडन के राजा गुस्ताफ वी (दाएं) से नोबेल पुरस्कार प्राप्त की।

उनकी अन्य अल्मा मेटर (अब वेस्टमिंस्टर विश्वविद्यालय) रॉयल पॉलिटेक्निक संस्थान जो अब् पुरानी स्ट्रीट के पास है,अपने छात्र हॉल को अलेक्जेंडर फ्लेमिंग हाउस से एक नाम दिया गया है।

फ्लेमिंग, फ्लोरे और चैन इन् तीन लोगों को 1945 में चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ। फ्लेमिंग के नोबेल पुरस्कार पदक 1989 में स्कॉटलैंड के राष्ट्रीय संग्रहालय ने हासिल कर लिया और संग्रहालय 2011 में फिर से खोलने के बाद प्रदर्शन पर रखा गया है। फ्लेमिंग पोंटिफिश्यल एकेडमी ऑफ साइंसेज के सदस्य थे। फ्लेमिंग 1943 में रॉयल सोसाइटी के लिए चुने गए थे फ्लेमिंग को इंग्लैंड के रॉयल कॉलेज ऑफ सर्जन द्वारा ह्ंटेरियन प्रोफेसरशिप से सम्मानित किया गया। फ्लेमिंग को 1944 में किंग जॉर्ज VI द्वारा एक नाइट बचलर के रूप में, नाइट की उपाधि दी गई थी


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