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इरापल्ली अनंतराओ श्रीनिवास

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इरापल्ली अनंतराओ श्रीनिवास "इ.ए. " प्रसन्ना (जन्म २२ मई १९४०) एक भूतपूर्व भारतीय क्रिकेट खिलाडी थे. वे स्पिन गेंदबाज थे और उनकी विशेषज्ञता ऑफ स्पिन में थी और वे भारतीय स्पिन चौरागा के एक सदस्य भी थे. वे राष्ट्रीय संस्थान इंजीनियरिंग, मैसूर के भूतपूर्व छात्र है. प्रसन्ना ने अपना प्रथम प्रवेश टेस्ट क्रिकेट मैच मद्रास में इंग्लैंड के खिलाफ सन १९६१ खेला था. उनका पहला विदेशी यात्रा वेस्ट इंडीज में था और वह उनके लिए बहुत मुश्किल था और वे उस टेस्ट मैच के बाद अगले पांच साल में कभी टेस्ट मैच नहीं खेला. प्रसन्ना ने कुछ दिन के लिए क्रिकेट खेलना छोड़ दिया था ताकि वे अपनी पढाई ख़तम कर सके फिर १९६७ में वापस आये. इंग्लैंड में सन १९६७ में उन्होंने  नियमित स्थान प्राप्त किया था. वे सन १९७८ में रिटायर हुए, पाकिस्तान के टूर के बाद जो संकेत था बिशें सिंह बेदी और भगवत चंद्रशेकर के पतन का. प्रसन्ना ने कर्नाटक टीम को दो बार नेतृत्व किया था, पहली बार जब बॉम्बे १५ वर्ष में च गए थे. प्रसन्ना नाही भारतीय पिच पे सफल थे परंतु विदेशी पिच पे भी बहुत सफल गेंदबाज रहा चुके है. उन्होंने सबसे तेज़ १०० विकेट का रिकॉर्ड टेस्ट क्रिकेट (२० टेस्ट्स में) में प्राप्त अपने समय में किया. उनका फिर रिकॉर्ड रविचंद्रन आश्विन ने तोडा. वे काफी मशहूर और आदरणीय घरेलू क्रिकेटर थे, उन्हें गेंदबाज़ी उन बल्लेबाज़ों को करना बहुत पसंद था जो उनकी गेंद को मारने की कोशिश करते थे .उनके गेंदबाज़ी स्वच्छ, तेज़, ऊंचा एक्शन और लाइन का अनोखा नियंत्रण और लड़ाई. वे गेंद को क्लासिक ऊंची पाश में बल्लेबाज की तरफ डालते थे, इसलिए ताकि वे अपनी वैरी हवा में बढ़ा सके. जिसका परिणाम था की गेंद काफी ऊंची जाए, उम्मीद से भी ऊंची जाए.

उपलब्धियाँ

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गेंदबाज जिसका मानसिकताकमक आक्रमण था वैसे ही वे बेहद धीरज, और वे बल्ले बाज़ को ओवर के ऊपर ओवर के बाद खेलने का चारा नहीं देते. प्रसन्ना आयी.सी.एल सन २००७ में मैच रेफरी के दौर पर गए थे परन्तु उन्होंने बी.सी.सी.आयी की आम माफ़ी मानकर सन २००९ को उदय राजन मैच में रेफरी की. प्रसन्ना को सन १९७० में पद्मश्री पुरस्कार प्राप्त किया, सन २००६ में कैस्ट्रॉल लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार, २०१२ को बोर्ड ऑफ़ कण्ट्रोल फॉर क्रिकेट इन इंडिया की तरफ से ५० मैच से ऊपर खेलनेको पुरस्कार से नवाजा गया था.प्रसन्ना ४९ टेस्ट, ७३५ रन, १८९ विकेट लेकर दिखाई दिए गए. उनका सबसे श्रेष्ट प्राप्त वास्तु ८/७६ है.

पुरस्कार

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उनके भारतीय क्रिकेट में बकाया प्रदर्शन और योगदान से प्रसन्ना को प्रतिष्ठित पुरस्कार अर्जुन पुरस्कार सन १९६८ को मिला. उनके क्रिकेट की जूनून केलिए प्रसन्ना तेज़ से सफलता की सीडी पर आसानी से छाडे. उनके इंजीनियरिंग की पढाई के बावजूद भी वे वापस आये और क्रिकेट में अपना प्रतिभा दिखाई और अपने व्यवसाय को क्रिकेट की दुनिया में आगे बढे.