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सलीम अज़ीज़ दुरानी
संपादित करेंव्यक्तिगत जानकारी | |
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पूरा नाम | सलीम अज़ीज़ दुरानी |
जन्म | 11 दिसम्बर 1934 |
बल्लेबाजी की शैली | बाएं हाथ से |
गेंदबाजी की शैली | बाएं हाथ से,धीमीगति से |
सलीम अज़ीज़ दुरानी का जन्म ११ दिसंबर १९३४ को हुआ था। उनका जन्म काबुल,अफगानिस्तान में हुआ था, लेकिन उनका परिवार कराची से जाम नगर चले गए जब वे केवल आठ महीने के थे। वे एकमात्र भारतीय टेस्ट क्रिकेट खिलाड़ी हैं, जो अफगानिस्तान में पैदा हुए थे। लोग उन्हें प्यार से “ प्रिंस सलीम “ बुलाते थे।
प्रारम्भिक जीवन
संपादित करेंउन्हें कराची से जाम नगर जाना पड़ा क्योंकि उनके पिता, जाम नगर के शासक के लिए काम करते थे। वे एक खेल वातावरण में बड़ा हुए थे। उन्हें क्रिकेटखेलना पसंद था। परन्तु, फुट बॉल, टेनिस जैसे अन्य खेल खेलने मे उन्हें बड़ी दिलचस्पी थी। १९४७ में जब ब्रिटिश भारत को भारत और पाकिस्तान का विभाजित किया गया था। उसके के बाद, सलीम दुरानी और उनकी माँ, जाम नगर में रहते थे। परंतु उनके पिता, अब्दुल अज़ीज़ दुरानी कराची चले गए जहां वे एक प्रसिद्ध क्रिकेट कोच थे। ऐसा माना जाता है कि, अब्दुल अज़ीज़ दुरानी के एक छात्र और कोई नहीं बलकी पाकिस्तान के महान बल्लेबाज हनीफ मुहम्मद थे। अनौपचारिक टेस्ट मैचों में अब्दुल अज़ीज़ दुरानी ने भारत के लिए खेला था। वे विकेट-कीपर थे।
व्यक्तिगत रिकॉर्ड
संपादित करेंउन्होंने १९६० से १९७३ तक २९ टेस्ट क्रिकेट मैचों में हिस्सा लिया है। वे एक ऑलराउंडर थे। वे धीमी बाएं हाथ के रूढ़िवादी गेंदबाजी में माहिर थे और वे उनके बाएं हाथ के बल्लेबाज के लिए बहुत प्रसिद्ध थे। उनके पिता अब्दुल अज़ीज़ भी एक क्रिकेट खिलाड़ी थे, जिन्होंने १९३५-३६ में ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों के खिलाफ 'अनौपचारिक' टेस्ट मैच में भारत के लिए खेला था।
राजस्थान चले जाने से पहले उन्होंने ने गुजरात के लिए कुछ घरेलू मैच खेले थे। वे उदयपुर के महाराणा, भागवत सिंह मेवा के समर्थन से वे राजस्थान चले गए थे। राजस्थान की टीम १९६० के दशक में बहुत अच्छाई खेलती थी और रणजी ट्रॉफी फाइनल में सात बार पहुंच गई थी।
उन्होंने १ जनवरी १९६० में मुंबई में ऑस्ट्रेलियाई की टीम ( रिची बेनाद के नेतृत्व में थीं ऑस्ट्रेलियाई की टीम ) के खिलाफ २५ साल की उम्र में अपनी टेस्ट क्रिकेट शुरुआत की थीं। दिलचस्प बात यह है कि उन्हें अपना मौका मिला क्योंकि ऑफ स्पिनर जसु पटेल, जिन्होंने भारत के लिए कानपुर में खेले गए पिछले टेस्ट मैच में कई सारे विकेट लेकर भारत को जिताया था, खाद्य विषाक्तता से बीमार थीं। १९६६ में उन्हें घुटने की चोट का सामना करना पड़ा और चयनकर्ताओं युवा खिलाड़ियों के तलाश में थे, पर वे खेलने की परिस्थिति में नहीं थे। उन्होंने १९७१ वापसी की जब उन्होंने क्लाइव लॉयड और गैरी सोबर्स के विकेट लेकर, पोर्ट ऑफ स्पेन में वेस्टइंडीज़ के खिलाफ भारत की जीत हासिल करने में उनका बड़ा योगदान दिया। उन्होंने ६ फरवरी १९७३ में मुंबई के ब्राबोरने स्टेडियम में इंग्लैंडके खिलाफ अपना आखिरी टेस्ट क्रिकेट मैच खेली थी। असल में, उन्होंने उसी स्टेडियम में अपना पहले टेस्ट क्रिकेट मैच खेली थी।
आज भी लोग उनकी छक्का मारने वाली शक्ति के लिए उन्हें याद करते हैं। वे लोगों के माँगने पर छक्के मारा करते थे। उनके के पास बल्ले या गेंद के साथ मैच को बदलने की क्षमता थी, और कभी-कबार वे ऐसा किया करते थे। उनके अंतिम आंकड़े २५.०४ पर १,२०२ रन बनाने का हैं। उन्होंने २९ टेस्ट में १५ छक्के मारे थे। उन्होंने घरेलू मैचों में गुजरात, राजस्थान और सौराष्ट्र के लिए खेला था और उन्होंने रणजी ट्रॉफी भी जीती थी।
लोकप्रियता
संपादित करेंउन्होंने “ चरित्र ” नामक एक फिल्म में अभिनय किया १९७३ में जिसमें परवीन बाबी अभिनेत्री थीं। "हीरो बनोगे?" बॉलीवुड आइकन और उसके दोस्त देव आनंद ने उनसे पूछता था और सलीम दुरानी ने “हाँ” कहा था और वे हीरो बन गए। उस फिल्म के बाद परवीन बाबी उसकी अच्छाई दोस्त बन गई। उद्योगपति से लेकर राजनेताओं और महाराजा तक, हर कोई उनको पसंद करते है। दुकानदार अक्सर उससे पैसे लेने से इनकार करते हैं। आम जनता उन्हें बेहद प्यार करती है। १९७२-७३ इंग्लैंड के खिलाफ घरेलू श्रृंखला के दौरान, कानपुर में चौथे टेस्ट के लिए जब दुरानी को ग्यारह खिलाड़ियों में शामिल नहीं किया गया था। तब, ˞मुंबई मे एक भीड़ ने पांचवें और अंतिम टेस्ट मैच के लिए दुरानी को शामिल करने की मांग करते हुए नारा लगाई। “ नो दुरानी, नो टेस्ट “ बोल कर लोगों ने नारा लगाया। इस प्रकार दुरानी को मैच में शामिल किया गया था। एक बार, जब सुनील गावस्कर घरेलू खेल के लिए दुरानी के साथ ट्रेन में यात्रा कर रहे थे। गावस्कर अपना कंबल भूल गए थे और मौसम काफी ठंडा था। गावस्कर किसी भी तरह सो गया, लेकिन जब वे जग गए, तो उन्होंने उन पर दुरानी के कंबल को पाया। इससे पता चलता है कि दुरानी हमेशा दूसरों के कल्याण के बारे में सोचा करते थे।
पुरस्कार
संपादित करेंसलीम दुरानी १९६२ में अर्जुन पुरस्कार जीतने वाले पहले क्रिकेट खिलाड़ी थे। १९६१-६२ में इंग्लैंड के खिलाफ भारत की सीरीज़ में भारत को जिताने में उनका बहुत बड़ा हाथ था। २०११ में, उन्हें बी.सी.सी.आई द्वारा सी.के. नायडू लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड के साथ सम्मानित किया गया था।
संदर्भ
संपादित करें- ↑ https://en.wikipedia.org/wiki/Salim_Durani
- ↑ https://www.cricbuzz.com/profiles/5594/salim-durani
- ↑ https://www.thequint.com/sports/cricket/salim-durani-hit-sixes-on-demand
- ↑ https://www.sportskeeda.com/cricket/india-six-hitter-icon-salim-durani-interview
- ↑ https://indianexpress.com/sports/india-vs-england-2016/they-dont-make-em-like-salim-durani-anymore-3740646/
- ↑ https://www.tribuneindia.com/news/sport/durani-the-great-indian-afghan-icon/605641.html
- ↑ https://indianexpress.com/sports/india-vs-england-2016/they-dont-make-em-like-salim-durani-anymore-3740646/