सदस्य:Prithviraj Sarangi/प्रयोगपृष्ठ

भारत में कुपोषण की समस्या

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भारत में कुपोषण: एक चुनौती जो हमें मिलकर सुलझानी होगी  

भारत में कुपोषण एक ऐसी समस्या है, जिसे हममें से कई लोग जानते तो हैं, लेकिन इसे जितनी गंभीरता से लेना चाहिए, उतना नहीं लेते। खासकर गरीब परिवारों के बच्चों और महिलाओं पर इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। यह सिर्फ एक स्वास्थ्य समस्या नहीं है, बल्कि यह समाज और देश के भविष्य से जुड़ा मुद्दा है।  

क्या है कुपोषण?  

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कुपोषण तब होता है जब किसी व्यक्ति के शरीर को उसकी ज़रूरत के मुताबिक सही पोषण नहीं मिलता। यह समस्या दो रूपों में देखी जाती है:  

1. अल्पपोषण: जब शरीर को पर्याप्त खाना या पोषक तत्व नहीं मिलते।

जब लोग ज़रूरत से ज्यादा, लेकिन अस्वस्थ खाना खाते हैं, जिससे मोटापा और अन्य बीमारियां होती हैं।  

भारत में समस्या मुख्य रूप से अल्पपोषण की है, जहां बच्चों को भरपेट और पौष्टिक खाना नहीं मिलता।  

भारत में कुपोषण की स्थिति  

आज भी भारत में लाखों बच्चे और महिलाएं कुपोषण से जूझ रहे हैं। गांवों में छोटे बच्चों को दूध, दाल और हरी सब्जियां जैसे पोषक तत्व नहीं मिलते। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS-5) के अनुसार, हर तीन में से एक बच्चा कुपोषित है। सोचिए, ऐसे बच्चे न तो पढ़ाई में अच्छा कर पाते हैं और न ही बड़े होकर शारीरिक या मानसिक रूप से पूरी तरह सक्षम बन पाते हैं।  

कुपोषण के कारण  

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कुपोषण के पीछे कई वजहें हैं, जो हमारी सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था से गहराई से जुड़ी हैं:  

1. गरीबी: गरीब परिवारों के पास इतना पैसा नहीं होता कि वे पोषक खाना खरीद सकें।  

2.अज्ञानता: कई बार परिवार के लोग यह नहीं जानते कि बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए क्या खाना जरूरी है।  

3. स्वास्थ्य सेवाओं की कमी: खासकर गांवों में न तो डॉक्टर आसानी से मिलते हैं और न ही पोषण से जुड़ी कोई मदद।  

4. गंदगी और बीमारियां: दूषित पानी और गंदगी के कारण बच्चे बार-बार बीमार पड़ते हैं, जिससे उनका शरीर कमजोर हो जाता है।  

5. लड़कियों के साथ भेदभाव:कई परिवार आज भी लड़कों को प्राथमिकता देते हैं, जिससे लड़कियां पौष्टिक खाने से वंचित रह जाती हैं।  

यह समस्या इतनी बड़ी क्यों है?  

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सोचिए, जब एक बच्चा कमजोर होगा, तो क्या वह स्कूल जाकर पढ़ाई कर पाएगा? क्या वह बड़ा होकर मेहनत करने के लिए तैयार होगा? कुपोषण बच्चों की शारीरिक और मानसिक विकास को रोक देता है। यही बच्चे जब बड़े होंगे, तो वे न तो समाज के लिए और न ही खुद के लिए कुछ बेहतर कर पाएंगे।  

सरकार और समाज के प्रयास  

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सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए कई योजनाएं चलाई हैं।  

1.मिड-डे मील: स्कूलों में बच्चों को मुफ्त में खाना दिया जाता है, ताकि वे स्कूल भी आएं और पोषण भी मिले।  

2. आंगनवाड़ी केंद्र: गर्भवती महिलाओं और छोटे बच्चों को पोषण और स्वास्थ्य सेवाएं देने के लिए बनाए गए केंद्र।  

3. राष्ट्रीय पोषण मिशन: बच्चों और महिलाओं में कुपोषण को खत्म करने के लिए एक विशेष अभियान।  

लेकिन सवाल यह है कि क्या ये सभी प्रयास काफी हैं? नहीं। हमें यह समझना होगा कि सरकार अकेले कुछ नहीं कर सकती। समाज को भी इसमें अपनी भूमिका निभानी होगी।  

क्या कर सकते हैं हम?  

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1. शिक्षा का प्रसार: अगर आप अपने आसपास किसी गरीब परिवार को जानते हैं, तो उन्हें समझाएं कि बच्चों को दूध, दाल और हरी सब्जियां देना कितना जरूरी है।  

2. खुद आगे आएं: त्योहारों या किसी खास मौके पर गरीब बच्चों को खाना खिलाएं, लेकिन यह सुनिश्चित करें कि वह पौष्टिक हो।  

3. स्वच्छता पर ध्यान दें:आसपास सफाई रखें और लोगों को स्वच्छ पानी और हाथ धोने की आदत के लिए प्रेरित करें।  

4. लड़कियों को प्रोत्साहित करें:यह सुनिश्चित करें कि लड़कियां भी पौष्टिक खाना खाएं और उनके साथ कोई भेदभाव न हो।  

उम्मीद की किरण  

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भारत जैसे बड़े देश में समस्याएं भी बड़ी होती हैं, लेकिन अगर हम सब मिलकर छोटे-छोटे कदम उठाएं, तो समाधान भी निकलेगा। एक बच्चा अगर कुपोषण से बचा, तो वह पढ़ाई करेगा, नौकरी करेगा, और परिवार और समाज के लिए एक प्रेरणा बनेगा।  

कुपोषण केवल एक व्यक्ति की समस्या नहीं है; यह हमारे समाज का आइना है। जब हर बच्चा स्वस्थ होगा, तभी हमारा देश भी सशक्त होगा। तो आइए, हम सब मिलकर इस समस्या से लड़ें और एक बेहतर भारत का निर्माण करें।