शहीदी पार्क
Shaheedi Park
अवस्थिति दिल्ली
प्रकारबाहरी

हमारे देश की समृद्ध विरासत में प्राचीन वैज्ञानिक ज्ञान का खज़ाना शामिल है, जिसने दुनिया को प्रमुख रूप से आकार दिया है। खगोल विज्ञान और गणित से लेकर चिकित्सा और धातु विज्ञान तक, सदियों पहले रहने वाले वैज्ञानिकों ने अभूतपूर्व खोजें की और उल्लेखनीय सिद्धांत तैयार किए।

भारत में प्राचीन काल में गणित एवं विज्ञानं सबसे अधिक विकसित एवं सर्वाधिक उपलब्धि प्राप्त थे। बहुत सरे प्रसिद्द प्राचीन भारतीय गणितज्ञ हैं जैसे आर्यभट्ट, बौधायन, भास्कराचार्य, ब्रह्मगुप्त और महावीराचार्य। इसके अलावा नागार्जुन, कणाद और वराहमिहिर सबसे प्रसिद्ध वैज्ञानिक थे। इसके बावजूद, प्राचीन भारत में चिकित्सा विज्ञानं बहुत प्रसिद्ध और अत्यधिक विकसित था।

लगभग ११ प्राचीन अविष्कार, खोजें और विज्ञानं की अन्य सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हैं जो सभी वैज्ञानिकों को और दुनिया भर के लोगों को उपहार में मिली हैं। ये अविष्कार हैं पाइथागोरस प्रमेय (७०० ईसा पूर्व), क्रूसिबल स्टील (२०० ईसा पूर्व), प्लास्टिक सर्जरी (२००० ईसा पूर्व), प्राचीन दंत चिकित्सा (७००० ईसा पूर्व), प्राचीन फ्लश टॉयलेट सिस्टम (२५०० ईसा पूर्व), रूलर (२४०० ईसा पूर्व)। इन वैज्ञानिकों की बुद्धिमत्ता और अंतर्दृष्टि दुनिया के बारे में हमारी समझ को प्रेरित और प्रभावित करती रहती है।

विदेशी आक्रांताओं के खिलाफ युद्ध

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जब भारतीय प्रशासकों की ताकत घटने लगी, तो विदेशी शक्तियाँ भारत पर आक्रमण करने के लिए मौका ढूंढने लगीं। विदेशी आक्रमणों के खिलाफ भारतीय लोगों ने लड़ाई लड़ी और अपनी अद्भुत सहस और सामर्थ्य से उनको टक्कर दी। जिसमें महाराणा हमीर देव, मेवाड़ के सिंहासन पर थे। महारनह हमीर देव ने अपने शासनकाल में भारत इतिहास को अपने वीरता और युद्ध कौशल से समृद्ध किया। इसके अतिरिक्त राणाकुंभा का शासनकाल राजस्थान के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है जो उनकी वीरता, कला, संस्कृति और शौर्य से सराहा जाता है। हरिहर और बुक्का ने विजय नगर साम्राज्य की स्थापना की। विजय नगर साम्राज्य ने विदेशी आक्रमणों के खिलाफ भारत को बचाए रखा। राणा सांगा ने अपने शासन काल में भारतीय इतिहास को अपने वीरता, सहस, और युद्ध कौशल से समृद्ध किया। हेमू का साहसिक स्वभाव और शक्तिशाली सम्राट बनने के लिए उनका संघर्ष भारतीय इतिहास में यादगार है।

उनके वीरता और युद्ध कौशल से भरे जीवन ने उन्हें भारतीय इतिहास के धरोहर के रूप में स्थान प्रदान किया है। राजा छत्रसाल भारतीय इतिहास में एक महँ राजा और योद्धा थे। उन्होंने बुन्देलखंड के एक छोटे से राज्य से बड़ा साम्राज्य बनाया और अपने युद्ध कौशल की वजह से मशहूर हुए। जिसमें सबसे बड़ा योगदान पृथ्वीराज चौहान, जो कि भारतीय इतिहास में एक वीर योद्धा के रूप में यद् किए जाते हैं। उनका सहस, युद्ध योग्यता और नेतृत्व भारतीय इतिहास के पन्नों पर अमिट चिन्ह हैं। हालांकि, उनके खिलाफ हुए दोहरे युद्ध में हार, उनके शासनकाल के अंत की शुरुआत बन गई। महाराणा प्रताप ने अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए अकबर से कभी भी समझौता नहीं किया।

महाराणा प्रताप को भारतीय इतिहास में एक वीर योद्धा, स्वतंत्रता सेनानी और देशभक्त राजा के रूप में स्मरण किया जाता है। उनके शासनकाल में कई संघर्षों के बावजूद, उन्होंने अपने युद्ध कौशल और अद्भुत सहस से भारतीय इतिहास में अविश्वसनीय स्थान बनाया। इस दौरान भारतीय राज्यों ने बड़ी संघर्ष करके विदेशी आक्रमणों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और अपने देश को बचाने के लिए संघर्ष किया। भारतीय इतिहास में इस अवधि को वीर योद्धाओं की समृद्धि और देश प्रेम का प्रतिक माना जाता है।

प्रथम स्वाधीनता संग्राम

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प्रथम स्वाधीनता संग्राम १८१८ से १८५८ ई तक भारतीय इतिहास का महत्त्वपूर्ण अध्याय रहा है, जिसमें शानदार वीरता और दृढ संकल्प के साथ अनेक योद्धा अपने राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए लड़े। इस दौरान, भारतीय स्वतंत्रता की दीवारों को बदलने वाले एक संग्रामी की भूमिका निभा रही रानी चेनम्मा ने शानदार युद्ध कौशल के साथ ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष किया। उन्होंने अपनी देशभक्ति और साहस के माध्यम से विद्रोह का सामना किया। इसी समय १८५७ में आहोम विद्रोह ने असम के स्वतंत्रता संग्राम के रूप में अपनी अद्भुत वीरता का प्रदर्शन किया। आहोम विद्रोह ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध किया गया था। मंगल पांडे वीर भारतीय सैन्य के के बहादुर सिपाही थे, जिन्होंने बैरकपुर में विद्रोह किया था और भारतीय स्वतंत्रता की पहली गोली चलाकर भारतीय वीरों की मिसाल गढ़ दी थी।

रानी लक्ष्मीबाई महँ योद्धा और भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थीं, जिन्होंने ज्वारा और कानपुर के युद्ध में ब्रिटिश साईंयों को चुनौती दी। लक्ष्मीबाई ने अपनी वीरता और अद्भुत युद्ध कौशल के साथ झाँसी को राजधानी की रक्षा की और ब्रिटिश के खिलाफ संघर्ष किया। तात्या टोपे ने भी अपने दृढ संकल्प और युद्ध कौशल के साथ भारतीय स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया और वीरता के साथ अपने देशवासियों को प्रेरित किया।

इन दोनों वीरों की वीरता और बलिदान ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को एक नै ऊंचाई तक पहुँचाया। वीर कुंवर सिंह ने १८५७ के स्वतंत्रता संग्राम में वीरता से लड़ाई लड़ी और अपने देश के लिए संघर्ष किया। इन महान वीरों ने अपने प्राणों की आहुति देकर देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी और एक नया संघर्ष का सन्देश दिया। उनके बलिदानी पराक्रम से प्रेरित होकर आज भारत एक स्वतन्त्र और समृद्ध राष्ट्र बना है। इन वीरों का बलिदान हमें गर्व महसूस कराता है और हमें याद दिलाता है कि हमें अपने देश के प्रति अपने कर्तव्यों को निभाना चाहिए और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए।

जनांदोलन, सांस्कृतिक एवं सामाजिक जागरण, स्वदेशी आंदोलन

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इस अवधि में भारतीय समाज में सांस्कृतिक और सामाजिक जागरण हुआ। इस समय के दौरान, महात्मा ज्योतिराव फुले, राजा राम मोहन राय, स्वामी दयानन्द सरस्वती, स्वामी विवेकानंद, बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर जैसे महान विचारक, समाज सुधारक और साहित्यिक उद्दीपकों ने भारतीय सामाजिक जागरण की प्रेरणा दी। उन्होंने जाति और वर्ण संरचना, शिक्षा और महिला सशक्तिकरण को बदलने के लिए सक्रिय रूप से काम किया। जनांदोलन एक सामाजिक और राजनितिक चेतना का चलन था, यह आंदोलन भारतीय विरोधी अधिकारीयों, युवा संगठनों और राष्ट्रवादी नेताओं द्वारा संचालित किया गया था। जिन्होंने समाज और राजनीति को प्रभावित किया और भारतीय राष्ट्रीयता और स्वतंत्रता की मांगों को मजबूत किया। सन्यासी विद्रोह भारतीय इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण घटना थी, जो १८वीं सदी एक आसपास घटित हुई थी। यह विद्रोह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ब्रिटिश साम्राज्य के शासन के खिलाफ हुई थी।

यह विद्रोह स्वतंत्रता संग्राम की पहली कोशिश थी, जो भारतियों द्वारा ब्रिटिश इम्पीरियलिज़्म के खिलाफ भड़की हुई राष्ट्रीय भावना का प्रतीक था। यह विद्रोही विभाजन काल के दौरान ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ हुआ था। यह विद्रोह स्वतंत्रता संग्राम की पहली कोशिश थी, जो भारतियों द्वारा ब्रिटिश इम्पीरियलिज़्म के खिलाफ भड़की हुई राष्ट्रीय भावना का प्रतीक था। सन्यासी विद्रोह ने व्यापक रूप से देश के विभिन्न क्षेत्रों में सन्यासी आंदोलन के रूप में देखा गया था। इस विद्रोह ने भारतीय जनता की एकता को प्रकट किया और इसके जरिए भारतियों ने विदेशी शासन के खिलाफ अपनी विरासत, स्वतंत्रता और स्वाभिमान की रक्षा की।

इसके अतिरिक्त, आदिवासी विद्रोह भारत में आदिवासी समुदायों के बीच हुए विभिन्न आंदोलनों और विरोध प्रदर्शनों को संदर्भित करता है। ये आंदोलन आदिवासी समुदायों की अधिकारों की पहचान, समानता, और सामाजिक न्याय की मांग को उठाने के लिए हुए। ये विद्रोह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की पूर्वस्वर्णिम धारा थी। लोकनायक बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश सर्कार के खिलाफ अपने जनजातीय अधिकारों की रक्षा की। स्वामी विवेकानंद के विचारों में भारतीय जीवन और संस्कृति के मूल्यों, एकता और समरसता के महत्त्व, सामाजिक और आध्यात्मिक पहलुओं को बढ़ावा दिया गया था। उनका जीवन और उपदेश आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं और उनके विचार आज भी एक ऊँचे स्तर पर विचारकी एक्टिविटी के रूप में जाने जाते हैं।

क्रांतिकारी आंदोलन का प्रथम चरण, और असहयोग आंदोलन

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भारतीयों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विभिन्न आंदोलन और क्रांतिकारी कार्यक्रम चलाए। इससे लोगों की सोच में बदलाव आया और राजनीतिक जागरूकता विकसित हुई। आंदोलनों और क्रांतिकारी कार्यक्रमों के माध्यम से भारतीय लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट होकर स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष किया। स्वदेशी आंदोलन भारत में विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार और भारतीय उत्पादों का प्रोत्साहन करने के लिए बनाया गया। लाल बाल पाल भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख नेता थे, जिन्होंने ब्रिटिश सर्कार के खिलाफ विरोध किया और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को मजबूत बनाया। लाला लाजपत राय भारतीय स्वतंत्रता के प्रमुख क्रांतिकारी नेताओं में से एक थे। और स्वदेशी आंदोलन के पक्षधर भी थे। उन्होंने अग्रवाल विद्रोह, साइमन कमीशन के विरोध में भारतीय बच्चों की धारा, और जलियांवाला बाग़ में शांतिपूर्व विरोध में मुख्य भूमिका निभाई। बाल गंगाधर तिलक स्वराज्य पार्टी की स्थापना की और "स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है, और मैं उसे लेकर रहूँगा" के उद्धोष के माध्यम से स्वदेशी आंदोलन को प्रोत्साहित किया। उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में खिलाफत आंदोलन के समर्थन में भी अपना योगदान दिया। तीनों नेता एकजुट होकर भारतीय स्वतंत्रता को प्राप्त करने के लिए काम किया। इनके प्रयासों के कारण भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में उनके नाम लाल बाल पाल के रूप में सम्बोधित किया जाता है।

चापेखर बंधु एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपना योगदान दिया था। और स्वदेशी आंदोलन के पक्षधर रहे। उन्होंने विभिन्न स्वदेशी अभियानों के लिए अपने गांव के लोगों को प्रेरित किया और उनके बीच राष्ट्रीय भावना को जागृत किया। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, चापेखर बंधू ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए नॉन-कॉपरेशन आंदोलन और सत्याग्रह में भी भाग लिया। खुदीराम बोस जिन्होंने अपने जीवन को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की सेवा में समर्पित किया। वीरसावरकर भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ, दार्शनिक और साहित्यकार थे। सावरकर का भारतीय आंदोलन में बड़ा योगदान था और उन्हें एक विदेशी शासन के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता के प्रमुख सिपाही माना जाता है। उन्होंने राष्ट्रीयता, धर्म, संस्कृति, भाषा और समाज को समर्थन दिया और भारतीय जनता को एकता के लिए प्रेरित किया। रास बिहारी बोस भारतीय छात्र संघ की स्थापना की और इसके माध्यम से भारतीय युवा शक्ति को संगठित करने का प्रयास किया। महात्मा गांधी ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के पक्ष धर के रूप में अहिंसा, सत्याग्रह और सिविल अध्यायन के सिद्धांतों को अपनाया। भारतीय इतिहास में महात्मा गांधी को एक महान नेता, विचारधारा के प्रेरक, और शांतिदूत के रूप में याद किया जाता है। उनका योगदान स्वतंत्र भारत के निर्माण में अविस्मरणीय रहेगा और उनकी बातें, सिद्धांत और संदेश आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं।

क्रांतिकारी आंदोलन का दूसरा चरण, दांडी मार्च और आज़ाद हिन्द फौज

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क्रांतिकारी आंदोलन का दूसरा चरण (१९१७ से १९४७ ई०) भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दूसरे चरण को संदर्भित करता है। इस दौरान भारतीय स्वतंत्रता के लिए संघर्ष और लड़ाई जारी रही और राजनीतिक, सामाजिक, और आर्थिक परिवर्तन की लागत बढ़ गई। खिलाफत आंदोलन एक महत्वपूर्ण आंदोलन था जिसमें मुस्लिम समुदाय ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विरोध किया। इस आंदोलन के दौरान मुस्लिम नेताओं ने भारतीय नेशनल कांग्रेस के साथ मिलकर स्वतंत्रता की मांग की और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को अधिक व्यापक बनाने का प्रयास किया और गांधी जी ने इसी दौरान नॉन-कोऑपरेशन आंदोलन (१९२०-१९२२ ई०) की शुरुआत की थी, जिसमें भारतीय लोगों ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सत्याग्रह और अहिंसा के माध्यम से लड़ाई लड़ी। हालांकि, आंदोलन के दौरान हिंसक घटनाएं बढ़ गईं, जिसके कारण गांधीजी ने आंदोलन को विराम कर दिया।

स्वराज पार्टी (१९२३ ई०): भारतीय नेशनल कांग्रेस में विभाजन हुआ और स्वराज पार्टी का स्थापना किया गया। इसमें नेतृत्व में सुभाष चंद्र बोस, जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, और चक्रवर्ती राजगोपालाचारी जैसे महान स्वतंत्रता सेनानी थे। साइमन कमीशन का बहिष्कार (१९२८ ई०): इस आंदोलन में भारतीय नेताओं ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता की मांग की। आंदोलन के दौरान भारतीय लोगों ने विदेशी माल, सेवाओं और प्रशासनिक सुविधाओं का बहिष्कार किया। इस आंदोलन में भारतीय स्वतंत्रता की मांग को बढ़ावा मिला और अंततः १९४७ ई० में भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई। यह चरण भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए महत्वपूर्ण है जिसमें भारतीय लोगों ने अपना स्वाधीनता के लिए लगातार संघर्ष किया।

भारतीय इतिहास में बालक, महिलाएं और कवियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई

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भारतीय इतिहास में बहुत सी बालिकाएं, महिलाएं और कवियों की महत्वपूर्ण भूमिकाएं हैं, जिन्होंने समाज संस्कृति और कला में अपने साहस संपन्न और योगदान से महत्वपूर्ण स्थान बनाया है।

भारतीय इतिहास में बहुत सी बालिकाएं महिलाएं और कवियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है जो भारत के लिए यादगार और प्रशस्तियों में शामिल होती हैं।

झालकारी बाई, दुर्गा भाभी, कोली मंतंगिनी हज़ारा, भीकाजी कामा जैसी नेत्रियों और कवि रवींद्रनाथ टैगोर, बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय, हसरत मोहानी, पिंगला वेंकैया, सुब्रमण्यम भारती, माखनलाल चतुर्वेदी, श्यामलाल गुप्ता, ज्योतिप्रसाद अग्रवाल और रामधारी सिंह दिनकर, जिन्होंने अपने समर्पण, साहस, और साहित्यिक योगदान के माध्यम से भारत के स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

उन्हें सम्मान करने से हम उनके साहित्यिक योगदान और देशभक्ति को याद रख सकते हैं।