पिता जी एवं माता जी :- इंगलैड मे अपना व्यवसाय करते हैं। परिवार :- नन्दन (बडे भाई) , छोटी बहन NASA अमेरिका मे अध्धयनरत हैं। भक्तिमय एवं व्यवसायी परिवार से सम्बन्ध हैं।

प्रभुजी का जन्म इंग्लैड के हाॅलोवे  शहर में 23 नवम्बर 1992 को हुआ।

 प्रभुजी  की प्राम्भिक व उच्च स्तरीय शिक्षा विदेश मे ही सम्पन हुई। प्रभुजी का रूझान परिवार की रूची के अनुसार भक्ति की ओर था।  

   प्रभुजी की दादी माँ भारत के हरियाणा राज्य के अन्तर्गत पानीपत मे रहती हैं जो पेशे से एक उच्च स्तरीय सर्जन हैं। सेवाओ से विश्राम लेकर वह अपना व्यवसाय चलाती हैं। एक दिन अचानक उनकी तबियत बिगडने की खबर सुनकर प्रभुजी का भारत आना हुआ।

    प्रभुजी प्रथम बार श्री धाम उन्ही के साथ गये वहाँ श्री हरि के बाँके विहारी स्वरूप मे दर्शन पाकर आत्मा रूप से वहीं रह गये। वापस आने पर उन्होने परिवार को सूचित किया कि हम श्री हरि भक्ति के लिए घर से दूर जा रहे हैं। यह सुनकर परिवार पर एक क्षण के लिए पहाड टूटने जैसी स्थिती आ गयी। चूकिं परिवार व्यवसाय से सम्बन्धित है, अतः सबके लिए यह बहुत आश्चर्यजनक बात थी। प्रभुजी के पिताजी एवं माता जी हाॅलोवे मे अपना व्यवसा करते हैं। उन्होने बहुत कोशिश की कि किसी तरह यह रूक जाएं पर जिसे श्री हरि ने चुना हो उसका मार्ग कौन रोक सकता है। वह भक्ति के लिए तैयार हो गये। वहाँ से उन्के बडे भाई को फोन द्वारा सूचित किया गया जो कि श्री महादेव के धाम केदारनाथ मे अपने होटल व्यवसाय सम्भाल रहे थे। छोटे भाई को भक्ति मार्ग पर कोई सम्स्या न आए व अकेला महसूस न करे वह अपना जमा जमाया व्यवसाय श्री हरि नाम पर छोड़ कर आ गये।

श्री हरि की असीम कृपा से वृन्दावन धाम मे आगमन हुआ। जहाँ श्री हरि बाँके विहारी जी के दर्शन किये।

परन्तु ह्रदय को चैन नही मिला चूकिं भक्त अधिक होते हैं व समय सीमित होता है।

अतः व्याकुल मन से बहार बैठ गये। परन्तौ श्री हरि अत्यन्त कृपालू हैं अतः वह स्वयं उनके समक्ष एक बाब के रूप मे आ गये जिन्होने उन्हे भक्ति मार्ग पर चलना समझाया एवं ग्रन्थो का ज्ञान प्रदान किया, चूकिं यह सब इतने कम समय मे हो रहा था तो कुछ समझ नही पा रहे थे। बाबा ने पग पग पर उन्हे सम्भाला एवं प्रत्येक सम्सया से बचाया। 

  बाबा ने उन्हे आज्ञा दी श्री मद्ध भागवत जी कथा कहें। परन्तु धन व माया से दूर रहें। अतः प्रभुजी उनकी आज्ञा से पंजाब के चण्डीगड़ शहर मे आ गये। यहाँ सर्वप्रथम प्रभुजी  ने कालका जा कर पहाडियो पर बैठकर वहाँ उपस्थित पेड पौधे, पशु पक्षियो को कथा सुनायी। 

भागवत कथा

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   आज समाज मे चल रहे आडम्बर जिसमे ग्रन्थो को कहने का मूल्य लिया जाता है एवं प्रत्येक कथा को उसके वास्तविक महत्व से न जानकर महज एक सामाजिक प्रतिष्ठा के रूप मे करने एवं कहने का चलन हटाने के लिए प्रयत्न किये। 

   प्रभुजी ने कईं शहर व ग्रामो मे घर घर जाकर कथा की जिससे लोगो की भ्रान्ति दूर हो सके कि माया बिना कथा सम्भव नही है, दूर की।

   प्रभुजी ने श्री बाबा द्वारा बताये गये भक्ति मार्ग पर चलते हुए अपना दायित्व निभाया। 

    प्रभुजी ने मार्ग मे आने वाली बाधाओ को नजरन्दाज करके भक्ति की ओर अपना ध्यान रखा। कुछ लोगो ने इस कार्य को गलत भी ठहराया एवं कुछ ने इसे रोकने की कोशिश भी की परन्तु यह सब श्री हरि की इच्छा से हो रहा है अतः सम्भव नही हो पाया।

 प्रभुजी ने श्री मद्ध भागवत , श्री राम कथा, श्री राधा चरित्र, श्री उद्वव चरित्र, श्री मीरा चरित्र कहे। प्रभुजी ने बाबा द्वारा बतायी गयी बातो का अनुसरण करते हुए किसी को गुरू दीक्षा नही दी। प्रभुजी ने भारत के कईं क्षत्रो मे कथा कही एवं भक्ति मार्ग पर चलाने के बाद वहाँ से दूरी बना लीं। चूकिं एक जगह पर ठहरना सन्तो का स्वभाव नही है। इससे जगह व लोगो से मोह हो जाता है। अतः वह अपने कर्म करते हुए निरन्तर भक्ति पर चलते रहे हैं।।