सदस्य:Rathour027/प्रयोगपृष्ठ

'कर्म योगी बाबू प्रसिद्ध नारायण सिंह[1] एक महान दार्शनिक व लेखक' उन्नीस वीं सदी में पूर्वांचल का महान व्यक्तित्व जिसने देश के शैक्षणिक विकास एवं सामाजिक उत्थान में महत्त्वपूर्ण योगदान किया था |

पारिवारिक एवं शैक्षणिक पृष्ठभूमि संपादित करें

बाबू प्रसिद्ध नारायण सिंह का जन्म चंदौली जनपद (पूर्व में वाराणसी की एक तहसील )में महाइच परगना के कादिराबाद गांव के गहडवाल क्षत्रिय जमींदार परिवार में ठाकुर रघुराई सिंह जी के यहां हुआ था जो कि एक प्रगतिशील विचारधारा के जमींदार थे । कादिराबाद महाईच परगना का एक प्रमुख गाँव है ,जो 1925 से पूर्व गाज़ीपुर जनपद के जमानियां तहसील का अंग था |

शिक्षा संपादित करें

बाबू साहिब की प्रारंभिक शिक्षा गहमर (गाजीपुर)में हुई।वहां से मिडिल की परीक्षा उत्तीर्ण की ।सन 1876 में सेंट्रल म्योर कालेज इलाहाबाद से स्नातक की उपाधि प्राप्त की ।इसके साथ ही बाबू प्रसिद्ध नारायण सिंह को देश स्तर पर क्षत्रिय वंश में प्रथम स्नातक होने के साथ वाराणसी जनपद का प्रथम स्नातक बनने का महान गौरव प्राप्त हुआ ।अपने प्रथम स्नातक युवक को देखने के लिए जन समुदाय वाराणसी में उमड़ पड़ा ।प्रतिदिन लोगों की बढ़ती भीड़ के कारण तत्कालीन काशी नरेश महाराजा ईश्वरी प्रसाद नारायण सिंह जी ने बाबू साहिब को काशी आमंत्रित कर राजकीय सम्मान प्रदान किया और अपने साथ हाथी पर बैठा कर काशी में घुमाया ।शाही हाथी काशी की सड़कों पर घूम रहा था और जनता गगनभेदी नारों से अपने जनपद के स्नातक युवक का फूलों से स्वागत कर रही थी ।किसी के लिए ऐसा ऐतिहासिक स्वागत गौरव की बात थी ।इस स्वागत ने बाबू प्रसिद्ध नारायण सिंह जी को भावुक बना दिया और वे पूर्वांचल में व्याप्त अशिक्षा को दूर कर नवयुवकों को अपने जैसा ही शिक्षित बनाने के लिए एक कालेज की स्थापना का स्वप्न देखने लगे ।

'समाज के शैक्षणिक विकास एवं उत्थान के लिए उन्मुख' संपादित करें

कुछ ही समय बाद आप कलकत्ता से कानून की डिग्री लेंकर वापस आये तो पिता जी ने उनको सरकारी अथवा वेतन पर नौकरी न करने की सौगंध दे डाली ।यहीं से बाबू साहिब अपने क्षत्रिय समाज सेवा की ओर उन्मुख हुये ।बाबू साहिब अपने छात्र जीवन से ही पूर्वांचल के क्षत्रियों में व्याप्त अशिक्षा से चिंतित रहते थे ।इस लिए उन्होंने शिक्षा के प्रसार द्वारा सामाजिक सेवा और क्षत्रिय स्वाभिमान के उत्थान को अपना प्रमुख कार्यक्षेत्र चुना ।

देश के कुछ राजपरिवारों को शैक्षिणक विकास एवं सामाजिक उत्थान के लिए किया प्रेरित संपादित करें

बाबू प्रसिद्ध नारायण सिंह जी ने विभिन्न प्रमुख रियासतों का व्यापक भृमण किया और राजा -महाराजाओं को शिक्षा प्रसार के लिए प्रेरित करते रहे ।अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आपने विभिन्न रियासतों मुख्यतः ग्वालियर ,अवागढ़ ,कुरीसुडौली ,भिनगा ,विजयपुर ,मांडा ,तिलोई ,और मझौली आदि रियासतों के सलाहकार के रूप में कार्य किया और कई शिक्षण संस्थाओं की स्थापना कराई। राजाओं द्वारा इस दिशा में पूर्ण सहयोग न मिलने के कारण बहुत निराश हुये फिर भी समाज उत्थान में लगे रहे ।अपने मिशन के प्रति समर्पित बाबू प्रसिद्ध नारायण सिंह जी ने क्षत्रिय सामाजिक संगठन का सहारा लिया क्षात्र -धर्म के संरक्षण ,सुरक्षा और अपने स्वप्नों की शिक्षा संस्था के स्थापनार्थ संसाधन के एकत्रीकरण हेतु एक मंच प्राप्त करने की दृष्टि से उन्होंने ठा0 छेदा सिंह जी और बाबू सांवल सिंह जी वनारस के सहयोग से मृतावस्था में पडी क्षत्रिय हितकारिणी सभा को पुर्नजीवित किया ।

क्षत्रिय महासभा के गठन में योगदान संपादित करें

बाबू प्रसिद्ध नारायण सिंह जी के इस पुण्य कार्य में कुछ महानुभावों ने ,जिनमें पूर्वी क्षेत्र से राजा खड्ग बहादुर मल्ल मझौली , राजर्षि राजा उदयप्रताप सिंह जी बिसेन भिनगाऔर ठा0 रामदीन सिंह जी बांकीपुर तथा पश्चिमी क्षेत्र से राजा बलबंत सिंह जी अवागढ़ ,ठा0 उमराव सिंह जी और उनके छोटे भाई कुंवर नौनिहाल सिंह जी कोटला-जाटउ ने तन ,मन और धन से सहयोग प्रदान किया ।आप लोगों ने निश्चय किया कि देश के समस्त क्षत्रियों का प्रतिनिधित्व करने वाली एक सभा संगठित की जाय ।19 अक्टूबर 1897 को क्षत्रिय महासभा का गठन किया गया जिसमें राजा बलबंत सिंह जी अवागढ़ को संस्थापक एवं प्रथम अध्यक्ष बनाया गया ।19-20 जनवरी 1898 को बनारस केबाबू सांवल सिंह जी की सभापतित्व में क्षत्रिय महासभा का प्रथम अधिवेशन आगरा में ठाकुर उमराव सिंह और उनकेछोटे भाई की कोठी "बाघ फरजाना "जो बाद में राजपूत बोर्डिंग हाउस के नाम से जानी गयी उसमे सम्पन्न हुई ।इस अधिवेशन में पूरब -पश्चिम से 300 से अधिक प्रतिष्ठित क्षत्रियों ने भाग लिया जिसमे देशकेकोने -कोने में क्षत्रिय सभाओं की स्थापना तथा क्षत्रियों में शिक्षा काप्रसार करने का प्रस्ताव स्वीकृत हुये ।

हिवेट क्षत्रिय हाईस्कूल की स्थापना संपादित करें

सन 1908 में राजर्षि ने साढे दस लाख रूपये का अमर दान देकर काशी में एक विद्यालय खोलने का संकल्प लिया ।स्थान के चयन और विद्यालय के स्थापना की जिम्मेदारी बाबू प्रसिद्ध नारायण सिंह ने सम्हाली ।राजर्षि की इच्छा थी कि विद्यालय शहर से दूर हो ।तदनुसार वरूणा पार काशी के पश्चिमोत्तर सीमा पर कुर्ग स्टेट (कर्नाटक)की 50 एकड़ के भू -खण्ड का चुनाव कियागया ।इसके लिए राजर्षि ने संयुक्तप्रान्त के गवर्नर सर जान हिवेट को पत्र लिखा ।बाबू साहिब ने भी जान हिवेट से अपनी मित्रता का उपयोग कियाऔर उस भू -खण्ड को सांकेतिक मूल्य पर "क्षत्रिया खैरात सोसाइटी "के पक्ष में अधिग्रहीत कराया।बाबू प्रसिद्ध नारायण सिंह की देख -रेख में 25 नवम्बर 1909 को तत्कालीन गवर्नर सर जान हिवेट ने विद्यालय का शिलान्यास किया ।बाबू साहिब ने नींव पूजन का संकल्प लिया ।सात नदियों के जल से भूमि का शोधन किया गया ।गर्वरनर के नाम पर विद्यालय का नाम "हिवेट क्षत्रिय हाई स्कूल "पड़ा ।बाबू प्रसिद्ध नारायण सिंह जी को प्रबंध सिमित का अध्यक्ष बनाया गया| बाबू प्रसिद्ध नारायण सिंह जी चाहते थे वाराणसी में सेंट्रल क्षत्रिय कॉलेज स्थापित करना

अपनी इस आकांक्षा की पूर्ति हेतु बाबु साहिब 1917 में "क्षत्रिय उपकारिणी महासभा कालेज -बनारस का प्रस्ताव लेकर एक बार पुनः कर्मभूमि में उतर पड़े । प्रस्तावित कॉलेज की स्थापना और संचालन के लिए क्षत्रिय उपकारिणी महासभा की प्रतिनिधि सभा द्वारा निर्वाचित 25 सदस्यों से एक प्रोविजनल बोर्ड ऑफ ट्रास्ट्रीज का गठन किया गया ।इस ट्रस्ट के सचिव कुरीसुडौली के राजा सर रामपाल सिंह जी तथा अध्यक्ष जम्बू और कश्मीर के महाराजा प्रताप सिंह जी थे ।परंतु बाबु साहिब का ये पवित्र प्रयास भी पुनः असफल रहा ।अब तो भिनगा नरेश और अवगढ़नारेश का भी साथ और संरक्षण भी नही था ।इस योजना हेतु 6 लाख रुपया एकत्र किया गया था ।योजना के असफल होने पर इस धन का उपयोग कुछ मेघावी क्षत्रिय विद्यार्थियों को अध्ययन हेतु छात्रवर्ती देने /विदेश भेजने में किया ।ऐसे विद्यार्थीयों में डा0 रामकरन सिंह जी ,भूतपूर्व प्राचार्य राजा बलवंत सिंह कॉलेज आगरा प्रमुख थे ।

पुस्तक लिखवाने ,अनुवाद कराने और सबको प्रकाशित कराने का बीड़ा उठाया | आपने स्वयं साहित्य दर्शन , योग और इतिहास पर कुल ११ पुस्तकों की रचना की जो निम्नलिखित है -
१. राजयोग[2]
[3] २. हठयोग
३. प्राणायाम
४. योग की कुछ विभूतियाँ
५. योगत्रयी
६. योगशास्त्रान्तर्गत धर्म
[4] ७. सीधे पंडित (उपन्यास )
८. प्रबुद्ध योगी (उपन्यास )
९. संसार रहस्य (दर्शन )
१०. जीवन मरण रहस्य (विज्ञानं/ दर्शन )
११. वर्त्तमान विद्यार्थी

सभी पुस्तकें देश सुधार ग्रंथमाला कार्यालय वाराणसी /गंगा ग्रंथागार ३६ लाटूश रोड लखनऊ से प्रकाशित हुई |

References संपादित करें

  1. "प्रसिद्ध नारायण सिंह". wikipedia. wikipedia. अभिगमन तिथि 25 April 2021.
  2. "RAJYOG MANSIK VIKAAR". |website=National Digital library Of India |publisher=NDLI (supported by Ministry of human resource development) |access-date=25 April 2021}}
  3. "प्रसिद्ध नारायण सिंह के द्वारा रचित राजयोग अर्थात् मानसिक विकार". INTERNET ARCHIVE. अभिगमन तिथि 25 April 2021.
  4. "Yogshastrantargat Dharm". internet archive. Desh Sudhar Granth Mala, Varanasi ( Re- published by Digital Library Of India). अभिगमन तिथि 29 July 2015.