सदस्य:Rohanrenukappa/प्रयोगपृष्ठ/1
हुलिवेशा
संपादित करेंहुलिवेशा तुलु क्षेत्र का एक अनोखा लोक नृत्य है। हुलिवेशा नवरात्रि के अवसर पर देवी दुर्गा के सम्मान मे किया जाता है क्योंकि बाघ उनका वाहन माना जाता है। कृष्ण जन्माष्टमी, मंगलोर दसरा और गनेश चतुरती मे भी यह प्रदश्रित केया जाता है। 'हुलि' का अर्थ बाघ है और 'वेशा' का अर्थ पोशाक है।
तरीका
संपादित करेंयह नृत्य सिर्फ़ मर्द ही कर सकते है। एक दल मे पांच से दस लोग होते है और वे सारे मर्द अपने शरीर पर रंगलेप लगाते है ताकि वो बाघ कि तरह दिखे और इस दल को तुलु भाषा में 'थासे' कहेते है। इस दल मे दौ तीन नगाडे बजानेवाले भी होते है। ढोल की अवाज़ इतनी अनोखी है कि उसका ध्वनी दूर से भी पेहचाना जा सकता है। नवरात्री के अवसर पर ये दल सडक घूमते है और बीस मिनट के लिए नाचते है। सडक के पास सारे लोग अपना काम छोडकर उनका नृत्य देखते है। नृत्य के बाद सारे दर्शक उन्हे पैसे दैते है। हर दल में एक व्यक्ति सारे बाघों को बंदूक के साथ डराता है और सारे बाघ डरने का अभिनय करते है पर बाद मे सारे बाघ उस व्यक्ति को घेर लेते है और उसके चारों और कलाबाज़ी करते है। अपने कृत्य में वे बहुत सारे ऐसे चिसे भी करते है जिससे बाघ की शक्ति भी प्रदर्शित होती है जैसे कि भेड को मारना (पर भेड को मारा नहीं जाता है) और गदा को झुलाना।[1] नवरात्री की आक्री दिन सभी दल सारदा बारात मै भाघ लेते है और इसके बाद अगले साल तक वे फ़िर से 'हुलिवेशा' का नृत्य नहीं करते। नृत्य के साथ साथ नर्तकार अग्नि श्वास, हाथ के बल खाडा रहना और जिमनास्टिक भी करते है।
पोशाक
संपादित करेंनर्तकार अपने शरीर पर बाघ या चीता का रंगलेप लगाते है पर यह कर्नाटक की हर एक जगह में अलग नहीं है। रंगलेप के अलाव वे सिर्फ़ एक निकर लगाते है जिसके ऊपर बाघ के चर्म का बनावट होती है। शरीर के शेश-भाग पर वे रंगलेप लगाते है। वे सर पर बाघ का मुखौटा और कभी-कभी नकली पूंच भी लगाते है। उनका रंगलेप लगाने मे लगभग १६ घंटे लगते है। पहले नर्तकार के शरीर पर गोंद लगाया जाता है और उसके बाद कपास का चूर्ण लगाया जाता है जिससे नर्तकार का शरीर बालदार लगता है। उस कपास की आधार पर रंगलेप लगाया जाता है। उनका मुखोटा ऊन से बनाइ जाती है।[2] इस रंगलेप को लगाने से चर्म पर जलने की तरह महसूस होती है और उन्हे कहिं घंटे सीधा कडी रहनी पडती है। पर नर्तकार ये सब सहते है ताकी वे कुछ धन खमा सके और ये उत्सव का एक भाग है। कुछ लोग ये अपने धर्म के लिए भी करते है। यह रंगलेप वे अपने शरीर पर दो तीन दिन तक रहने दैते है।
खतरा
संपादित करेंइस रंगलेप को लगाने से चर्म पर जलने की तरह महसूस होती है और नर्तकार के चर्म पर चकत्ता पढ जाती है। रंगलेप लगते समय उन्हें बहुत दर्द होती है और नाचने के बाद वे कहीं दिनों तक थके होए ही रहते है। [3]
'हुलीवेशा' में भाग लेने में बहुत सारे खतरे है लेकिन लोग भक्ति के कारण या अपने ही रुची के कारण इसमे भाग लेते है।