सदस्य:Sameeksha2798/प्रयोगपृष्ठ
वोल्गा से गंगा
वोल्गा से गंगा पुस्तक महापंडित राहुल सांकृत्याय्न द्वारा लिखी गई बीस कहानियों का संग्रह है। इस कहानी संग्रह की बीस कहानिया आठ हजार किलोमितटर की परिधि में बॅंधी हुई हैं। इस प्रकार हम कह सकते है कि हर एक कहानि भारोपीय मानवो की सभ्यता के विकास कि पूरी कडी को सामने रखने में सक्ष्म है। राहुल जी द्वारा रचित वोल्गा से गंगा की पहली चार कहानियों ने ६००० ई पू से लेकर २५०० ई पू तक के समाज का चित्रन किया। कहानिया उस काल की हैं जब मनुष्य अपनी आदम अवस्था में था। उस युग के समाज का चित्रन करने में लेखक ने कल्पना का सहारा लिया है।संग्र्ह के दूसरी कहानियों में २००० ई पू से ७०० ई पू तक की सामाजिक विषयों के बारें में लिखा है। उनके नाम अंगिरा, सुरदास, प्रवाहण् और पुरुधान हैं। इन में वेद, पुराण और उपनिष्दो को आधार बनाया गया है।४९० ई पू को प्रकट करती बंधुल मल्ल में बौधकालीन जीवन प्रकट हुआ है।इसी कहानी की प्ररेणा से राहुल जी का नाम सिंह सेनापति रखा गया। ३३५ ई पू को नागदत्त कहानी ने प्रकट कीया।इस में समय की,यवन यात्रियों के भारत आगमन यादें हैं। कहानी प्रभा, में बुधचरित का महसूस हैं। लेखक के विचार अधिक कालप्निक है। इन के विचारो से बहुत प्रेरना मिलता है।६००० ई पु से १९४२ ई तक के कालखडं में मानव समाज के ऐतिहासिक, आर्थिक एवं राजनीतिक अध्ययन को राहुल जी ने इस कहानी संग्रह में बाँधने का प्रयास किया है। लेखक की एक एक कहानी के पीछे उस युग के संबध की वह भारी सामग्री है जो दुनिया की कितनी ही भाषाओं, तुलनात्मक भाषाविज्ञान मिट्टी, पत्थर, ताँबे, पीतल, लोहे प्र सांकेतिक वा लिखीत साहित्य अथवा अलिखित गीतों, कहानीयों रीति-रिवाजों, टोटके टोनों में पाई जाती है।
इस तरह यह किताब अपनी भूमिका में ही अपनी ऐतिहासिक महत्ता और विशेषेता को प्रकट कर देती है। निशा, दिवा और पूरुहुत यह तीनों कहानियों उस काल की हैं जब मनुष्य अपनी आदम अवस्था में था, कबीलों के रुप में रहता था और शिकार करके अपना पेट भरता था। उस युग के समाज का और हालातों का चित्रण करने में राहुल जी ने भले ही कल्पना का सहारा लिया हो, किंतु इन कहानियों में उस समय को देखा जा सकता। संग्रह की अगली चार कहानियाँ- पुरुधान, अंगिरा, सुदास और प्रवाहण हैं। इन कहानियों में मानव सभ्यता के विकास को प्रकट किया जाता है। इसी तरह ५० ई पू के समय को प्रकट करती कहानी प्रभा सौंदरानंद को महसूस किया जा सकता है। सुपर्ण यौधेय भारत में गुप्तकाल अथार्त ४२० ई पू को रघुवंश को अभिज्ञान शाकुंतलम और पाणिनी के समय को प्रकट करती कहानी है। इसी तरह दुर्मुख कहानी है जिसमें ६३० ई का समय प्रकट होता है हर्षचरित, कादम्बरी, हेनसांग और ईत्सिंग के साथ हमें भी ले जाकर जोड देती है।
राहुल जी का यह कथा संग्रह भले ही हिंदी के कथा साहित्य की धरोहर हो, किंतु इस त्थय को नकारा नहीं जा सकता कि ज्ञान विज्ञान की अन्य शाखाअओं में इतिहास भूगोल के अध्ययन में भी यह पुस्तक बहुत महत्त्वपूर्ण और प्रासंगिक है।बहुत सरलता के साथ कथा रस में डुबिकियाँ लगाते हुए मानव सभ्यता के इतिहास को जान लेने के लिए इस पुस्तक से अच्छा माध्यम दूसरा कोई नहीं हो सकता है।