Sanjai B R 1840722
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|238px|लुई पाश्चर]]
लुई पाश्चर
नाम लुई पास्चर
जन्म तिथि 27 दिसंबर 1822
जन्म स्थान डोल
देश  फ्रांस
नागरिकता फ्रेंच
शिक्षा तथा पेशा
शिक्षा जीवविज्ञानी, माइक्रोबायोलॉजिस्ट और केमिस्ट
विश्वविद्यालय बेसनकॉन का रॉयल कॉलेज।

लुई पास्चर संपादित करें

जन्म और उसका प्रारंभिक जीवन संपादित करें

लुई पाश्चर का जन्म 27 दिसम्बर सन् 1822 को फ्रांस के डोल नामक स्थान में मजदूर परिवार में हुआ था । उनके चमड़े के साधारण व्यवसायी थे । उनके पिता की इच्छा थी कि उनका पुत्र पढ़-लिखकर कोई महान् आदमी बने । वे उसकी पढ़ाई के लिए कर्ज का बोझ भी उठाना चाहते थे । पिता के साथ काम में हाथ बंटाते हुए लुई ने अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिए अरबोय की एक पाठशाला में प्रवेश ले लिया, किन्तु वहा अध्यापकों द्वारा पढ़ाई गयी विद्या उनकी समझ से बाहर थी ।

 

उन्हें मन्दबुद्धि और बुद्ध कहकर चिढाया जाता था । अध्यापकों की उपेक्षा से दुखी होकर लुई ने विद्यालयीन पढ़ाई तो छोड़ दी, किन्तु उन्होंने कुछ ऐसा करने की सोवी, जिससे सारा संसार उन्हें बुद्ध नहीं, कुशाग्र बुद्धि मानकर सम्मानित करे । पिता द्वारा जोर-जबरदस्ती करने पर वे उच्च शिक्षा हेतु पेरिस गये और वहीं पर वैसाको के एक कॉलेज में अध्ययन करने लगे । उनकी विशेष रुचि रसायन शास्त्र में थी । वे रसायन शास्त्र के विद्वान् डॉ॰ ड्‌यूमा से विशेष प्रभावित थे । मैक्स क्लाउडेट लॉज़ी पेस्ट्रीज फ्रेंड था ।[1]

इकोलनारमेल कॉलेज से उपाधि ग्रहण कर पाश्चर ने 26 वर्ष की अवस्था में रसायन की बजाय भौतिक विज्ञान पढ़ाना प्रारम्भ किया । बाधाओं को पार करते हुए वे विज्ञान विभाग के अध्यक्ष बन गये । इस पद को स्वीकारने के बाद उन्होंने अनुसन्धान कार्य प्रारम्भ कर दिया । कॉलेज की पढ़ाई समाप्त कर, अपनी लक्ष्य प्राप्ति के लिए एक रसायन शाला में कार्य करना आरम्भ कर दिया। यहाँ पर आपने क्रिस्टलों का अध्ययन किया तथा कुछ महत्त्वपूर्ण अनुसंधान भी किए। इनसे रसायन के रूप में आप को अच्छा यश मिलने लग गया।

सन् १८४९ ई। में फ्रांस के शिक्षा मंत्री ने आपको दिजोन के विद्यालय में भौतिकी पढ़ाने के लिए नियुक्त कर दिया। एक वर्ष बाद आप स्ट्रॉसबर्ग विश्वविद्यालय में रसायन विज्ञान का स्थानापन्न प्राध्यापक बना दिए गए। इस उन्नति का रहस्य यह था कि विश्वविद्यालय अध्यक्ष की एक कन्या थी जिसका नाम मेरी था। मेरी श्यामल केशों वाली सुन्दर किशोरी थी। आपकी उससे भेंट हुई।[2]

लुई पाश्चर की खोजे: संपादित करें

लुई पाश्चर ने कई अनुसंधान कार्य किये, इनमे से पहला अनुसंधान इमली के अम्ल से अंगूर अम्ल बनाना था। लेकिन उनकी महान खोज का आधार विषैले जानवरो से मानव को काटने पर उनके जीवन की रक्षा थी। लुइस ने इस पर कई बार प्रयोग किये और उन्हें इसमे सफलता मिली।

रेशम के उधोग में रेशम के कीड़ो में कोई बीमारी फेल गयी थी जिससे रेशम के कीड़े मरने लगे। लुई पाश्चर ने इस पर अनुसंधान किया और निष्कर्ष निकाला कि इसकी वजह रेशम के कीड़ो पर सूक्ष्म जीवों की संक्रामकता है। संक्रमण रोग हैजा, फ्लैग पर अनुसंधान किया और इनकी रोकथाम के प्रयास किये थे। कुत्ते के काटने पर रेबीज रोग का टीका बनाने का श्रेय लुइस पास्चर लुई पाश्चर को ही जाता है। इससे पहले रेबीज से पीड़ित लोग पागल होकर मर जाते थे लेकिन लुई ने इस रोग का टीका बनाकर इस रोग की रोकथाम की थी। यह लुई पाश्चर की एक महान खोज थी जिसकी वजह से लाखो लोगो की जिंदगी बचती है।

पाश्चराइजेशन: संपादित करें

पाश्चराइजेशन वह विधि है जिसमें तरल पदार्थों को गरम करके उसके अन्दर के सूक्ष्मजीवों जैसे जीवाणु, कवक, विषाणु आदि को नष्ट किया जाता है। इसका नामकरण फारसी वैज्ञानिक लुई पाश्चर के नाम पर किया गया है। लुई पाश्चर ने पहली बार पाश्चराइजेशन का प्रयोग 20 अप्रैल 1862 को किया था।[3]

 

पास्‍तुरीकरण: संपादित करें

पाश्चुरीकरण विधि का नाम तो आपने सुना होगा, यह विधि लुई पाश्चर Louis Pasteur के नाम से नामित है। यह क्रिया लुई पाश्चर की खोज थी। लुई पाश्चर से पहले लोगो में यह सोच थी कि सूक्ष्म जीवों का स्वत् प्रजनन होता है लेकिन लुई पाश्चर ने यह साबित किया कि सूक्ष्म जीवों का प्रजनन स्वत् नही होता है। लुई पाश्चर ने ही दुनिया को बताया था कि दूध को गर्म करके ठंडा करने पर वो खराब नही होता है। यही क्रिया पाश्चुरीकरण कहलाई। लुई पाश्चर ने प्रयोगों से साबित किया कि हवा में जीवाणु होते है जो किसी भी चीज़ को दूषित कर देते है। लुई ने ही बताया था कि 60 डिग्री तक गर्म करने पर जीवाणु खत्म हो जाते है।[4]

 

जिंदगी परिचय: संपादित करें

फ्रांस के प्रसिद्ध वैज्ञानिक लुई पास्चर का जन्म सन् १८२२ में हुआ। वें नैपोलियन बोनापार्ट के एक व्यवसायी सैनिक के यहां हुए थे। वे बचपन से ही दयालु प्रवृत्तति के थे। अपने शैशवकाल में आपने गांव के आठ व्यक्तियों को पागल भेड़िए के काटने से मरते हुए देखा था। उनकी दर्दभरी चीखों को वे भूल नहीं सके थे। युवावस्था में भी जब यह अतीत की घटना स्मृति पटल पर छा जाती, तो वे बेचैन हो उठते थे। पर वे पढ़ने-लिखने में विशेष तेज नहीं थे। पर उन्में दो गुण मौजूद थे, जो विज्ञान में सफलता के लिए आवश्यक होते हैं - उत्सुकता एवं धीरज। युवावस्था में उन्होंने लिखा था कि शब्दकोश में तीन शब्द अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं: इच्छाशक्ति, काम तथा सफलता।[5]


कॉलेज की पढ़ाई समाप्त कर, अपनी लक्ष्य प्राप्ति के लिए एक रसायन शाला में कार्य करना आरम्भ कर दिया। यहाँ पर आपने क्रिस्टलों का अध्ययन किया तथा कुछ महत्त्वपूर्ण अनुसंधान भी किए। इनसे रसायन के रूप में आप को अच्छा यश मिलने लग गया।

 

सन् 1741ई। में फ्रांस के शिक्षा मंत्री ने आपको दिजोन के विद्यालय में भौतिकी पढ़ाने के लिए नियुक्त कर दिया। एक वर्ष बाद आप स्ट्रॉसबर्ग विश्वविद्यालय में रसायन विज्ञान का स्थानापन्न प्राध्यापक बना दिए गए। इस उन्नति का रहस्य यह था कि विश्वविद्यालय अध्यक्ष की एक कन्या थी जिसका नाम मेरी था। मेरी श्यामल केशों वाली सुन्दर किशोरी थी। आपकी उससे भेंट हुई। मेरी का अछूता लावण्य आपके ह्रदय में घर कर गया। भेंट के एक सप्ताह बाद ही आपने मेरी के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रख दिया। मेरी ने आपके प्रस्ताव को ठुकरा दिया। पर लुई पास्चर एक अच्छे वैज्ञानिक थे। धीरजता आप में थी। मेरी के इंकार करने पर भी आप प्रयत्नशील रहे। एक वर्ष के बाद आपको अपनी इच्छा पूर्ति में सफलता मिली। मेरी ने आपकी पत्नी बनना स्वीकार कर लिया।[6]

विवाह के उपरान्त आपकी रुची रसायन विज्ञान से हट कर जीवविज्ञान की ओर अग्रसर होने लग गई। यह जीवधारियों का विज्ञान है। यह विश्वविद्यालय फ्रांस के अंगूर उत्पादक क्षेत्र के मध्य में है। वहाँ के मदिरा तैयार करने वालों का एक दल, एक दिन लुई पास्चर से मिलने आया। उन्होने आप से पूछा कि हर वर्ष हमारी शराब खट्टी हो जाती है। इसका क्या कारण है? लुई पास्चर ने अपने सूक्ष्मदर्शी यंत्र द्वारा मदिरा की परीक्षा करने में घण्टों बिता दिए। अंत में आपने पाया कि जीवाणु नामक अत्यन्त नन्हें जीव मदिरा को खट्टी कर देते हैं। अब आपने पता लगाया कि यदि मदिरा को २०-३० मिनट तक ६० सेंटीग्रेड पर गरम किया जाता है तो ये जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। ताप उबलने के ताप से नीचा है। इससे मदिरा के स्वाद पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। बाद में आपने दूध को मीठा एवं शुद्ध बनाए रखने के लिए भी इसी सिद्धान्त का उपयोग किया। यही दूध 'पास्चरित दूध' कहलाता है।

सन्दर्भ संपादित करें