सदस्य:Sathyarajmagaji1210/खाद्य उद्योग में विदेशी निवेश
खाद्य उद्योग में विदेशी निवेश सम्पादन
प्रस्तावना
संपादित करेंयूपीए सरकार के दौरान जब 2013 में मल्टी ब्रांड रिटेल को विदेशी कंपनियों के लिए खोल दिया गया था, तो उसका देश भर में विरोध किया गया था। विरोध करने वालों में तब भारतीय जनता पार्टी भी शामिल थी। उस विरोध के कारण यूपीए सरकार को अपने कदम वापस लेने पड़े थे। पर आज केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है और इस सरकार ने एक बार फिर भारत के रिटेल बाजार को विदेशी कंपनियों के लिए खोल दिया है। लेकिन इस बार थोड़ा अंतर है। 2015 में मल्टी ब्रांड रिटेल में विदेशी निवेश सिर्फ 51 फीसदी ही होना था, पर इस बार यह निवेश 100 फीसदी तक हो सकता है। दूसरा अंतर यह है कि इस बार सिर्फ खाद्य और खाद्य उत्पादों के खुदरा व्यापार को ही विदेशी निवेश के लिए खोला गया है। एक अनुमान के अनुसार देश का कुल खुदरा व्यापार सालाना 24 लाख करोड़ रुपये का होता है और उसमें खाद्य उत्पादों के खुदरा व्यापार की राशि लगभग 4 लाख करोड़ रुपये है। दूसरे शब्दों में कहा जाय, तो देश के खुदरा व्यापार की 4 लाख करोड़ रुपये का बाजार विदेशी कंपनियों के लिए खोल दिया गया है। हां, 2012 से तुलना की जाय, तो एक फर्क और है और वह यह है कि उस समय कंपनियां दूसरे देशों से भी माल आयातित कर भारतीय बाजार में बेच सकती थी और स्थानीय स्रोतों से खरीद के लिए 30 फीसदी की न्यूनतम सीमा तक सरकार ने तय कर दी थी। इस बार विदेशी कंपनियां अपना 100 फीसदी माल स्थानीय स्रोतों से ही खरीदेंगी।
निवेश में राजनीति
संपादित करेंखाद्य उत्पादों के व्यापार में विदेशी निवेश की इस नीति को रक्षा क्षेत्र में विदेशी निवेश की नीति के साथ ही घोषित किया है। लेकिन दोनों में फर्क है। रक्षा क्षेत्र में निवेश उत्पादन के लिए होगा, जबकि खाद्य क्षेत्र में निवेश मुख्य तौर से व्यापार के लिए होगा। जाहिर है, रक्षा क्षेत्र में निवेश मेक इन इंडिया कार्यक्रम का हिस्सा है, जब खाद्य क्षेत्र में निवेश मेक इन इंडिया कार्यक्रम का हिस्सा नहीं है। हम कह सकते हैं कि यह ट्रेड इन इंडिया कार्यक्रम का हिस्सा है और इसका विरोध 2012 में भारतीय जनता पार्टी ने उस समय किया था, जब वह विपक्ष में थी। लेकिन सत्ता में आते ही राजनैतिक दलों के विचार बदल जाते हैं। दूसरा सच यह है कि सत्तारूढ़ दल के विपक्ष में आने के बाद उसके विचार भी बदल जाते हैं। इसलिए आज जब भाजपा की सरकार खाद्य रिटेल में शत प्रतिशत विदेशी निवेश की इजाजत दे रही है, तो विपक्षी कांग्रेस इसका विरोध कर रही है, जबकि कांग्रेस सत्ता में रहते हुए मल्टी ब्रांड रिटेल में विदेश कंपनियों को आमंत्रित करने की विफल कोशिश कर चुकी है।
निष्कर्ष
संपादित करेंराजनैतिक पार्टियों के बदलते विचारों से भी ज्यादा महत्वपूर्ण सवाल यह है कि सरकार की इस नई नीति से क्या हमारे देश के लोगों को फायदा है या इससे फायदा से ज्यादा नुकसान ही है। इस पर दो तरह के मत हैं। सरकार को लगता है कि इससे फायदा है। उसे लगता है कि इसके कारण देश में खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा, अनाजों की बरबादी थमेगी, किसानों को लाभ होगा और उपभोक्ताओं ...