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सिंधी त्योहार
संपादित करेंसिंधी समाज के कई सारे त्योहार होते हैं। इनमें से महत्वपूर्ण त्योहार कुछ इस प्रकार हैं:
१)टीजरी
संपादित करेंसिंधी एक महत्वपूर्ण त्योहार मनाते हैं जिसका नाम है टीजरी, जिसमें माता पार्वति और शिव भगवान की आराधना की जाती है। वे दोनो प्रेम और स्नेह के प्रतीक हैं और हर महिला चाहती है कि उन दोनों की तरह उसका प्रेम अपने पति कि तरफ बना रहे। यह त्योहार सावान महिने के तीसरे दिन को मनाया जाता है। इसमे माता पार्वति की पूजा की जाती है और उन्हे तीज माता के नाम से पुकारा जाता है। विवाहित और अविवाहित महिलाएँ इस उपवास को रखती हैं। विवाहित महिलाएँ सुखमय विवाहित जीवन और कुँआरी लडकियाँ अच्छा वर पाने के लिये इस व्रत को रखती है। एसा मानते है कि इस व्रत को रखनेवाली स्त्रियाँ सुहागन मरती है और पति की उमर लम्बी होती है। मरने के बाद वे मोक्ष को प्राप्त करती हैं।
२)चेटी चंद
संपादित करेंसिंधी समुदाय अपने भगवान झुलेलाल के जन्म दिन को बेहद धुम धाम से मनाते हैं जो चेटी चंद के नाम से भी जाना जाता है। सिंधी समाज प्राचीन काल में अधिकतर जल मार्ग से व्यापार करते थे। इसलिए उनके देवता भी जल से जुडे हुए हैं। इनके मान्यतानुसार भगवान झुलेलाल जल देवता के अवतार हैं। वे लाल-साइ के नाम से भी जाने जाते है। झुलेलाल ने जनता को एकता, शांति और सत्य का मार्ग दिखाया। भारत के अलावा पाकिस्तान में भी चेटी चंद मनाया जाता है। झुलेलालजी के अवतरण और चमत्कारों की कथाएँ सिंध से जुडी हुइ है। इसलिए सिंधी समाज हर शुभ कार्य से पहले इनका स्मर्ण करते हैं।
३)थदरी
संपादित करेंसिंधी भाई और बहन इस त्योहार को मनाते हैं और शीतला माता की पूजा करते हैं। इस दिन चुल्हा जलाया नहीं जाता। सप्तमी से दो-तीन दिन पुर्व ही इसे मनाने की तैयारिया शुरु की जाती है क्योंकि शीतला सप्तमी और अष्ट्मी के दिन ठंडा भोजन ही किया जाता है। कहा जाता है शीतल देवी दुर्गा माँ का ही एक रूप है। इनकी पूजा कई रोग जैसे बुखार, ताप, ज्वर आदि से बचने के लिए किया जाता है। मान्यता है कि जो लोग सप्तमी और अष्ट्मी के दिन ठंडा खाते है, और अगर उनके परिवार में रोगों से कोइ पीडित है, तो शीतला माता की कृपा से वह जल्दी ही रोग मुक्त हो जाता है।
४)लाल लोई
संपादित करेंसिंधी समुदाय तेरह जनवरी को लाल लोई हर साल मनाते है, जो लोहरी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन बच्चे लकडियाँ इक्खट्टा करके घर के दहलीज पे कैम्प फायर जलाते हैं। दरवाजे के बाहर रंग बिरंगी रंगोली भी सजाइ जाती है। बच्चे, जवान और बूढ़े कैम्प फायर के चारों अॊर नाचते और झुमते हैं। जिन महिलाओं की मुरादे पूरी हो गयी हो, वे आग में नारियल अर्पन करती हैं और "सीसा" प्रसाद सबको बाँटती हैं।
५)सगरा
संपादित करेंकई साल पहले की बात है, जो सिंधी भाई बन्धु विदेशी शहरों में रहते थे, उनके लिये उनकी पत्नियाँ बहुत ही चिन्तित रहती थी। इस वजह से उन्होंने पूजा और व्रत रखना शुरू कर दिया। सावन के चार सोमवार को यह व्रत रखा जाता है। उसके बाद पूजा करके मीठे चावल बाँटती हैं और सगरा जो पूजा किया हुआ धागा है, उसे अपने कलाइयों पर बाँधती हैं।
६)छौमासा
संपादित करेंसिंधी समुदाय में छौमासा को एक बडा त्योहार माना जाता है। इसमे शिव की पूजा करते है। शिव के मंदिर मे लिंग के उपर दुध, दहि, मक्खन, शहद सब मिलाकर उसके उपर चढ़ाते है। सावन के महिने मे हर सोमवार को चार महिनो तक शिव का व्रत रखते हैं। इसमें एक ही बार दोपहर को खाना खाते हैं और चार महिनो के बाद जोवर और गुड से बनी हुइ कुटी को खाते है। यह व्रत चार सालो तक रखा जाता है। [1] [2] [3]