सदस्य:SmilyMe/प्रयोगपृष्ठ

तुलसीदास जी का जन्म उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले में स्थित राजापुर नामक ग्राम में एक किसान परिवार में संवत् १५५४(1497) को हुआ था| उनके पिता का नाम आत्माराम दुबे तथा माता का नाम हुलसी देवी था| उनका जन्म बारा महा गर्व मे रहने के प्श्चात हुआ था| जन्म लेते ही उनके मुख से पहला श्ब्द राम निकला और उनके मुख मे बत्तीस दाँत थे| उनका कद पाँच वर्ष के बालक के समान था| तुलसीदास जी के पिता ने उनको अपशकुन सोच कर अपने घर मे ना रखने का निर्णया लिया, इस प्रकार उन्होने अपने बाकपन क पाँच वर्ष छ महा नानी के घर बिताए| नानी का दिहांत होने के प्श्चात श्री अनन्तानन्द के शिष्य श्री नरहर्यानन्द उसे अयोध्या ले जा कर उसका लालन-पालन करने लगे| बालक का नाम रामबोला रखा गया| रामबोला के विद्याध्ययन की भी व्यवस्था उन्होंने कर दी| बालक तीव्र बुद्धि तथा विलक्षण प्रतिभा वाला था| अतः शीघ्र ही बालक समस्त विद्याओं में पारंगत हो गया| वे अपनी जन्मभूमि वापस आ गये| उनका परिवार नष्ट हो चुका था| उन्होंने अपने पिता तथा पूर्वजों का विधिपूर्वक श्राद्ध किया| वह वहीं रह कर लोगों को राम कथा सुनाने लगे| इस प्रकार उनका नाम तुलसीदास कालाने लगा| सन १५८३ में रत्नावली नम की एक सुंदरी एवं विदुषी कन्या के साथ उनका विवाह हो गया| वहा अपनी वाइफ से बहुत प्यार करते थे| सुखपूर्बक जीवन यापन करने लगे|एक बार रत्नावली का भाई उनको अपने साथ घर लेकर चला गया तो तुलसीदास वियोग नहीं सह पाये और उनके पीछे अपने ससुराल रात्रि के समाया पहुचगये| उस समय वर्षा बहुत तेज़ हो रही थी| वह घर के पीछे गए और एक पेड़ पर चढ़ गए| जल्दी में, वह एक साँप को पकड़ा एवं खिड़की तक पहुँच गए और खटखटाया| यह बात रत्नबाली जी को सही नाही लगी तथा उन्होने गुस्से मे आकर तुलसीदास जी से कहा जितना प्रेम आप मुजसे करते हो उतना ईस्वर् से करोगे तो मोक्षा की प्राप्ति हो जाएगी| रत्नावली के ये वाक्य तुलसीदास के दिल को छू गये| रत्नावली की फटकार ने तुलसीदास के ज्ञान नेत्र खोल दिये थे| वे प्रयाग पहुँचे| उन्होने चौदह वर्षों तक निरंतर तीर्थाटन किया (चारों धामों- बदरीनाथ, रामेश्वरम, जगन्नाथ पुरी और द्वारिका की पैदल यात्रा की|) ज्ञान प्राप्ति के बाद उन्होंने अनेक काव्यों की रचना की जिनमें से रामचरितमानस, कवितावली, दोहावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा, , संकट मोचन, कोष मञ्जूषा इत्यादि अत्यंत प्रसिद्ध /लोकप्रिय हैं। तुलसीदास को हनुमान जी का वरदान प्राप्त था। उन्होंने 2 वर्ष 7 माह 26 दिनों में रामचरित मानस लिखना पूर्ण किया| सन १६८० (1680) उनकी मृत्यु हो गयी.