सदस्य:Soniasoney1415451/प्रयोगपृष्ठ

Goswami Tulsidas Awadhi Hindi Poet 
                                                     तुल्सीदास :एक कथात्म्क परिच्य
        प्रयाग से कुच दूर द्क्षिण किनारे पर एक गाव मे एक दिन एक ब्राह्म्ण दमपती के घ्रर बदाइया बचने लगी। म्ंगलाचार होने लगा। सोहर लोकगीत गाए जाने लगे। इस ब्राह्म्ण दमपती को बहुत काल बाद यह अवसर मिला था। गाव के सबी लोग इन्के घ्रर इस कुशि मे श्यामिल होने आये।प्रसव पीडा कुच शान्त हुइ तो ब्रह्म्णी ने शिशु का मुख देखा। मुख देख्ते ही ओह आश्चर्र्य चकित रह गयी।ब्च्चे के मुख मे दानत तो जनमते निकल आये ते।आकार मे  वह बच्चा सामान्य से अधिक बडा प्रतीत हो रहा था।प्रसूति ग्रह मे जित्नी स्त्रिया आए थे ,सबको उस शिशु के अकार-प्रकार पर आश्च्र्य हुआ था और उन स्त्रियो मे चरचा होने लगी।कानफूसी भी होने लगी।कानुफूसी मे किसी ने बच्चे को अभागा कहा।किसी ने उस नवजात शिशु को भाग्यवान भी कहा।जिसे जितना ग्ज्ञान रहा उतना कहा।प्रसूता ब्राम्हणी के काअन मे भी कुछ शब्द पहुन्च्रे।उसने चिन्तित हो कर अपने पति के पास परिचारिका भेजी।पतिदेव आए और सूतिका ग्रह क्र द्वार से ही उस नवजात शिशु को देखा।ब्राम्ह्ण देव्ता ने बाहर से ही उस नवजात शिशु को ध्यान से देखा।उन्होने भी उस नवजात शिशु के मुख मे दान्त देखे।उन्हे भी उस विचित्र शिशु को देखकर आस्च्र्य हुआ।उन्होने गाव क्र जोतिश्य को बुल्वालाया।उस समय उस गाव मे कोई दूस्र्रे जोतिश्य आगए थे जोकाशि मे अध्यय्न कर रहे थे।बालक के जन्मान्त विचार क्रे लिये दो जोतिश्य आ गये।दोनोने अप्ने अप्ने विचार उस ब्राम्हण को सुनाना प्रार्ंब किया।गाव के जोतिश्य भी तो उस ब्राम्ह्ण देव के पुरोहित भि थे।काशी से पद्दकर आए जोतिश्य उसी गाव के निवासी थे।पुरोहित जी ने बताया की यह बालक अभुक्त मूल मे पैदा हुआअ हे ,जिस्के कारण यह अपने माता पिता की सदय: म्र्त्यु क कारण बनेगा। फिर अभाग इध्रर उदर भ्रमण करके जीवन बिताएगा।ब्रह्मण अपने पुरोहितजी के भविश्य्वाणी सुनते रहे और जब वह अप्नी बात पूरी कर चुके तो काशी के जोतिश्य अपने बुद्धि के अनुसार फल सुनाने लगे कि यह बालक अभुक्त मूल मे अवश्य पैदा हुआ है और अभुक्त मूल का फल क्श्टदायक होता है,पर विचार करने से यह पता चलता है कि यह बालक असाधारनण विद्वान,त्यागी।प्रतिभावान और लोख हितकारी होगा।यह विश्व-विश्रुत होगा।यह सन्सार के कल्याण के लिए महान कार्य करेगा।इस बालक की अमर कीर्ति से सारा सान्सार प्रभावित होगा।यह बालक भग्वान का भक्त होकर अपने भक्ति के प्रकाश से सारे सन्सार को प्रकाश प्रदान करेगा और अन्त मे अमर प्राप्त करेगा।ब्रम्हण चिन्ता मे पड गए।अपने स्वार्थ के रक्षा के लिए उनके मन से पुत्र स्नेह जाता रहा।वे अशन्का मे पड गए थे।प्रसुता तो माता थी,उसने अपने भाग्य को भग्वान पर छोड्ना ही उचित समजा।उन्होने अपने विश्वास पात्री धाय को बुलाया और उन्से यह कहा की,जब तक मै जीवित हू,बालक मेरा रहेगा,और मेरे न रह्ने पर तुम्हरा हो जायेगा।माता के आखो*से आसुओ की धार बह रही थी।और धाय ने उन्के बात माने और वचन भि दिए।कुछ दिनो बाद ही माता का म्रुत्यु हो गए।चुनिया धाय उस ब्च्चे को लेकर अपने मैके चली गयी ,और उस बालक का पालन करती रही।उस बालक कि देख रेख करते हुए चुनिया को पान्च साल बीत गए।कभी भी पिता ब्च्चे को देख्ने नही आए।कुछ महीने बाद चुनिया भी मर गए।और वह बालक बिलकुल बेसहरा होगए।तब एक महादेवी बालक को उटाकर उनका पालन करने लगे।एक दिन बामक के पास एक महातमाजी आए। महातमा ने बालक को देखा और पहचाना।उसके अन्य लक्ष्णओ को देखा।बालक महात्माजी के सात चला गया।उन्के देख -रेख मे ही बालक की शिक्षा भी चलने लगी।वह बालक महातमा जी के प्रयत्न से अपनी प्रतिभा का परिचय देना शुरु किया।कुछ समय बाद बालक अध्यय्न के लिये अयोध्या पहुन्चाया गया। और अयोधया से गुरु शिश्य वराणसी पहुन्चे।वराणसी मे लगातार पन्द्रह साल करके वह बालक शास्त्रो मे और पुराणो का प्रगाड विद्वान हो गया।वराण्सी के लोग बालक को रामबोल कहने लगे।राम शैल के महातमाजी ने ही उस बालक का नाम रामबोला रखा था।बाद मे रामबोल अपने अपने जन्म्भुमी का दर्शन कर्ना चाहा और अपने गुरु को बताकर चला जाता है।वहा के लोगो के म्रन मे भग्वान के प्रती प्रकश बनाए ।

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