ई कृष्णा अय्यर एक प्रसिद्ध नर्तकि है। उनका योगदान इतना महत्वपूर्वक है कि हम भरतनाट्यम का इतिहास का संक्रमण उनके बिना नही हो सकता। उन्होने भरतनाट्यम का स्मपन्न के लिये बहुत जंग लडे है। भरतनाट्यम के अलावा वे एक वकील,स्वत्नत्रता सेनानी और सांस्कृतिक कार्यकर्ता है। उनका योगदान नृत्य के क्षेत्र मे इतना प्रभावशाली है कि कई लोगों के अनुसार उनका जन्मदिन को मनाना चहिये।

बचपन संपादित करें

उनका जन्म ९ अगस्त १८९७, कल्लिडैकुरुचि तमिलनाडु का मे हुआ था। वे एक ब्राह्मिण थे। उनके माता-पिता का नाम अनंतलक्षमी और कैलाशम है। वह उनके १४ मे से ८वा ब्च्चा थ लेकिन उनके ५ जीवीत बच्चों मे से ४ थे। उन्होने अपना पढाई अम्बासमुद्रम हाई स्कूल और स्नातक कि उपाधि उन्हे मद्रास क्रिस्टियन कॉलज से पाया। वे मद्रास लॉ कॉलज मे पढने के बाद वे मद्रास हाई कोर्ट मे १९४३ तक लॉयर थे। वे १९३० मे स्वत्ंत्रता के लडने लगे और ऍ एन सी के सक्रिय सदस्य थे।

कला के साथ उनका सम्बन्ध संपादित करें

अपने स्नातक के उप्लब्धि पाने के बाद, वे एक नाटक म्ंडलि मे हिस्सा लिया और वहॉं उन्होने स्त्रि का रूप अधिनियमित किया। उनमे शास्त्रिय कला कि ओर आकर्शित हुए। वे कर्नाटिक संगीत भी सीखने लगे इस वक्त।

भरतनाट्यम का पुन्ः प्रवर्तन संपादित करें

भरतनाट्यम क प्रवर्तन तब शुरु हुआ जब ई कृष्णा अय्यर सुगुना विलास नामक नाटक मंडल का हिस्सा बने और सदिर नामक एक कामुक नृत्य, जो भरतनाट्य्म का कमतार ज्ञात और इज्जतदार रूप है, सीखने लगे। यह नृत्य देवदासियों द्वारा अभ्यास किया जाता था। इसके कारण उनके अनुसार इस नृत्य को अपना हकदार इज्जत नही मिल रहा था। वे इस नृत्य का महत्व समझ कर उन्होने श्रीमती रुकमिनी देवी अरुणडेल के साथ मद्रास संगीत अकादमी का स्थाप्ना किया।

भरतनाट्यम का गठन संपादित करें

१९२०स मे इस नृत्य को बन्ध करने का बात हो रहा था। इस बन्धन के पीछे मुतुलक्षमी रेड्डी थी। वह देवदासी और सदीर, दोनों को उन्मूलन करना चाहती थी। इसके विरोध करते हुए अय्यर ने कई खत भेजे और उनका उत्तर न आने पर उन्होने इस नृत्य से जुडा नकारात्मक्ता को मिटाने के लिए उसे "भरतनाट्यम" का नाम दिया। इसके बाद उन्होने इस नृत्य और देवदासियों के बीच का संबंध खत्म करने के लिये उन्होने ब्राह्मिन लडकियों यह नृत्य सिखाने लगे। इसके अलावा वह कामुक मात्राओं को निकालकर भरतनात्यम को एक पवित्र नृत्य का रूप दिया।

पुरस्कार संपादित करें

उन्हे दो पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।

  1. १९६६-पद्मश-भारतिय सरकार द्वारा दिया गया
  2. १९५७-संगीत कलसिकमनि-भारतिय कला समाज द्वारा दिया गया

मरण संपादित करें

उनका मृत्यु १९६८ मे हुआ जब वह ७१ वर्ष के थे।

संदर्भों संपादित करें

http://www.narthaki.com/info/tdhc/tdhc11.html [1] http://archives.dailynews.lk/2012/04/11/art11.asp

  1. https://en.wikipedia.org/wiki/E._Krishna_Iyer