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दबाव समूह की राजनीति संपादित करें

दबाव समूह का वर्तमान राजनीतिक व्यवस्थाओं में विशेष स्थान है। इन्हें प्राय: विभिन्न नामों से पुकारा जाता है, जैसे- 'हित समूह', 'अनौपचारिक संगठन' आदि। हालांकि प्रत्येक समाज में अनेक प्रकार के संगठन होते हैं, जो कि वर्ग विशेष या पक्ष की आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं, लेकिन उन सभी को दबाव समूहों की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। दबाव समूहों के संदर्भ में कहा जा सकता है कि जब कोई संगठन अपने सदस्यों के हितों की पूर्ति के लिए राजनीतिक सत्ता को प्रभावित करता है और उनकी पूर्ति के लिए दबाव डालता है तो उस संगठन को 'दबाव समूह' कहते हैं।

महत्त्व: इंग्लैण्ड, फ़्राँस, अमरीका आदि देशों में दबाव समूहों का राजनीतिक जीवन में विशेष महत्त्व है। हालांकि भारत में विभिन्न दबाव समूहों का अस्तित्व है, परंतु सुसंगठित और प्रभावशाली दबाव समूहों को हेय दृष्टि से देखा जाता था तथा लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए इन्हें ख़तरा समझा जाता था। लेकिन आज इन दबाव समूहों को लोकतंत्र का पोषक व सहयोगी समझा जाने लगा है। ये आज न केवल राजनीतिक क्षेत्र बल्कि नीति निर्धारण और प्रशासन संचालन में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं। वर्तमान समय में दबाव समूह प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था में विशेष महत्त्व रखते हैं। भारत में अस्तित्व:भारत में कई प्रकार के दबाव समूह हैं। ये समूह देश की सामाजिक संरचना का प्रतिनिधित्व करते हैं। भारत में दबाव समूहों का अस्तित्व स्वतंत्रता पूर्व से है, लेकिन स्वतंत्रता पश्चात् ही वे विशेष रूप से प्रभावित हुए। ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ की स्थिति भी स्वतंत्रता से पूर्व एक दबाव समूह की ही भाँति थी, जिसका उद्देश्य भारतीयों के हितों का प्रतिनिधित्व करना था। ‘मुस्लिम लीग’ (1906) का उदय भी एक दबाव समूह के रूप में ही हुआ था।

विभिन्न दबाव समूह: स्वतंत्रता के पश्चात् भारत में विभिन्न दबाव समूहों का उदय हुआ। प्रत्येक संगठन व संस्थाओं द्वारा विभिन्न दबाव समूहों का निर्माण किया गया। कुछ दबाव समूहों का निर्माण स्वयं राजनीतिक दलों द्वारा भी किया गया था। इन दबाव समूहों का मुख्य उद्देश्य अपने हितों का प्रतिनिधित्व और उसका संरक्षण करना ही रहा। आज भारत में विभिन्न दबाव समूहों का अस्तित्व है, जैसे- 'मज़दूर संघ', 'किसान संगठन', 'महिला संगठन', 'ब्यापारी संगठन', 'विद्यार्थी संगठन' आदि कुछ ऐसे ही संगठन दबाव समूह की गिनती में आते हैं, जिसका अपना कार्यक्रम व आधार है। दबाव समूह के तरीके एवं रणनीति: दबाव समूह विभिन्न स्तरों पर राज्य निकायों द्वारा निर्मित एवं लागु की जाने वाली नीतियों को प्रभावित करते हैं। इसलिए दबाव समूहों की सफलता नीति-निर्माण प्रक्रिया पर नियंत्रण पा लेने में मानी जाती है। इस संदर्भ में भारत में अनौपचारिक माध्यम से नीति निर्माण की प्रक्रिया पर दबाव डालने का प्रयास किया जाता है जैसे कि संसद की विशिष्ट समितियों पर दबाव डालकर जो कि ज्यादातर व्यवस्थापिका अधिनियमों की जांच करती है। ये दबाव समूह न केवल संसदीय समितियों को ज्ञापन भेजते हैं अपितु उनसे बातचीत भी करते हैं। सरकार की कई सलाहकारी एवं प्रतिनिधियात्मक समितियां भी होती हैं जिन पर दबाव समूह प्रभाव डालते हैं। दबाव समूह सरकारी तंत्र पर दhलीय एवं विधायी माध्यमों से अनौपचारिक रूप से दबाव डालने के प्रयत्न भी करते हैं। जिसके लिए वे ज्ञापन, व्यक्तिगत मुलाकात, अधिकारियों से संबंध बनाने एवं विधायिका एवं सांसदों से लॉबिंग इत्यादि साधनों का प्रयोग करते हैं। भारत में दबाव समूह प्रत्यक्ष रूप से विशेषतया प्रशासन तथा नीतियों को लागू करने की प्रक्रिया को प्रभावित करने का प्रयत्न करते हैं। इसकी सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि सरकार की कुछ निश्चित कार्यवाहियों को रोकना या नीतियों में सुधार कराना है न कि उन्हें लागू कराना। प्रांतीय एवं स्थानीय प्रशासनिक स्तर पर सरकार इस प्रकार के दबावों से खासकर प्रभावित रही है। गौरतलब है कि सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए दबाव समूह प्रायः धरना, ज्ञापन, हड़ताल, तथा नागरिक अवज्ञा आन्दोलन जैसे साधनों को भी अपनाते हैं। यह विशेषकर छात्रों, शिक्षकों, सरकारी कर्मचारियों तथा श्रमिक संघों के द्वारा अपने हितों को मनवाने के लिए अपनाएं जाते हैं। कई संगठन उग्रवादी गतिविधियों का भी सहारा लेते हैं। सामान्यतः दबाव समूह सदैव एक ही विधि या केवल एक ही विधि के प्रयोग तक सिमित नहीं रहते।

दबाव समूहों की भूमिका: कई ऐसे संगठित समूह होते हैं, जो नीति-निर्माण को अपनी दबाव प्रणाली के माध्यम से प्रभावित करते हैं। भारत में इन समूहों का उदय उपनिवेशकाल से ही आरम्भ हो गया था। यद्यपि ये समूह चुनाव की राजनीति में सीधे भाग नहीं लेते परंतु ये राजनीतिक प्रक्रिया के मूल्यांकन, आलोचना और इसकी दिशा निर्धारण में सक्रिय भाग लेते हैं। दबाव समूह सामाजिक एकीकरण का वाहन है। इनके द्वारा व्यक्तियों को सामूहिक हित की अभिव्यक्ति के लिए लाया जाता है। इससे केवल जनता एवं अभिजनों में एक पुल के रूप में दूरी ही कम नहीं होती अपितु सम्पूर्ण समाज में विभिन्न परम्परागत विभाजन भी होते हैं। इस प्रकार दबाव समूह समरूप एवं समतल दोनों प्रकार के एकीकरण को बढ़ाते हैं। दबाव समूह अपनी पसंद के व्यक्ति के विधानमण्डल में चुने जाने का प्रयास करते हैं। वे राजनीतिक दलों को चुनाव के समय मदद करते हैं और चुनावी घोषणापत्र तैयार करते हैं। दबाव समूह अपने पसंद के व्यक्ति के ऊंची कार्यपालिका पद जैसे कैबिनेट में, उचित विभाग का आवंटन एवं गठबंधन सरकार के चलते प्रधानमंत्री, पर चुने जाने का प्रयास करते हैं तथा इस प्रकार नीति क्रियान्वयन प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। एक तरफ भारत में दबाव समूह प्रशासन को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं दूसरी तरफ हितों को हमेशा संयुक्त चैनल से नहीं बताया जाता है तथा ना ही दबाव हमेशा समूह के दबाव का रूप ले पाता है। हितों के ढांचे में अत्यधिक अंतर होने के बावजूद भी व्यक्तिगत व्यापारिक घराने, व्यक्तिगत आस्था पर नियमित संबंध बनाए रखते हैं।