--Sube singh sujan (वार्ता) 18:55, 25 जून 2013 (UTC)यह हिंदी साहित्य की विधा है जो ग़ज़ल से काफ़ी मिलती -जुलती है। जिसे मुक्ततक कहा जाता है। आप के सामने पेश है एक मुक्ततक।।

आज पत्थर नहीं अकडता है उसको बादल की याद आती है।।

आम को आम जब नहीं आये, उसको कोयल की याद आती है।